-निर्माताः शीतल भाटिया, जयंतीलाल गाडा
-निर्देशकः नीरज पांडे
-सितारेः मनोज बाजपेयी, सिद्धार्थ मल्होत्रा, कुमुद मिश्रा, रकुल प्रीत सिंह, पूजा चोपड़ा
रेटिंग **1/2
-अ वेडनस डे और स्पेशल छब्बीस बनाने वाले नीरज पांडे से आप अय्यारी जैसी फिल्म की उम्मीद नहीं रखते। सेना में भ्रष्टाचार दिखाने वाली अय्यारी जटिल कथानक और घुमावदार
रास्तों से होकर दो घंटे 40 मिनट तक बांधने की कोशिश करती है, लेकिन तमाम सिरे ढीले रह जाते हैं। आधे घंटे में ही निर्देशक की पकड़ से छूटने लगती है।
देश के दुश्मनों को ढूंढने के लिए सेना के मुख्य अधिकारी जनरल प्रताप मलिक (विक्रम गोखले) कर्नल अजय सिंह (मनोज बाजपेयी) के नेतृत्व में सात सदस्यीय यूनिट का गठन करते हैं। इसमें मेजर जय बख्शी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) शामिल है। जय ने प्रताप मलिक से बहुत कुछ सीखा है और उन्हें अपने जीवन में खास जगह देता है। यूनिट को खास मिशन के लिए जनरल प्रताप सिंह ने बीस करोड़ रुपये दिलाए हैं। उन्होंने जय को कंप्यूटरों और लैपटॉप की हैकिंग द्वारा दुश्मनों का पता लगाने का जिम्मा सौंपा है। चार लोगों पर गद्दारी का शक है।
हैकर सोनिया गुप्ता (रकुल प्रीत सिंह) की मदद से जय को जब राज पता लगने लगते हैं तो शक का दायरा 22 लोगों तक फैल जाता है और कुछ चौंकाने वाली जानकारियां मिलती है। सेना के लिए चौगुने दाम पर हथियार खरीदे जा रहे हैं और इसके तार मुंबई में शहीद सैनिकों की विधवाओं के लिए बन रही एक हाउसिंग सोसायटी में भ्रष्टाचार से जा जुड़ते हैं। कहानी के संवाद यहां राजनीतिक होने लगते हैं और पिछली सरकारें कठघरे में आने लगती हैं। कौन बिक रहा है, कौन देश को गद्दारों से बचा रहा है? जय-अजय में टकराव शुरू होता है।
दिग्गज अधिकारी तमाम बातें मीडिया में आने से हैरान हैं। अजय-जय के बीच गलतफहमियां बढ़ती हैं लेकिन अंत में दुश्मन ठिकाने लग जाते हैं। फ्लैशबैक के अंदर फ्लैशबैक दिखाने वाली इस उलझाऊ कहानी में रोमांच जल्दी खत्म हो जाता है और नीरस च्युइंगम की तरह सिर्फ जुगाली चलती रहती है। नीरज पांडे कोई अय्यारी पैदा नहीं कर पाते, जो जादू से चौंका सके। थ्रिलर का फील देने के बावजूद फिल्म लंबी लगती है। मुख्य घटनाक्रम के बीच सिद्धार्थ-रकुल प्रीत की कहानी जबर्दस्ती ठूंसी है। नाटकीयता गायब है।
एक बात जरूर फिल्म के पक्ष में है, कैमरावर्क। कई लोकेशन खूबसूरत हैं। रकुल सुंदर लगी हैं परंतु उनका काम प्रभावित नहीं करता। मनोज बाजपेयी ने प्रतिष्ठा के अनुरूप अभिनय किया है लेकिन सिद्धार्थ मल्होत्रा सेना के अफसर के रूप में प्रभावित नहीं करते। गीत-संगीत में असर नहीं है। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट के रूप में कुमुद मिश्रा जमे हैं। नसीरूद्दीन शाह, अनुपम खेर, आदिल हुसैन जैसे अभिनेताओं ने भी अपनी भूमिकाएं ढंग से निभाई हैं। अगर आप सिनेमा की बाजीगरी को वक्त काटने से अधिक नहीं मानते तो ही इस फिल्म को देख सकते हैं।