फिल्म निर्देशक जेम्स कैमरून उन गिनती के फिल्मकारों में हैं जो हर बार अपनी ही खींची लकीर को लंबी करने में लगे रहते हैं। समुद्र के सबसे गहरे तल तक अकेले ही चले जाने का उनका अनुभव अब उनकी अगली फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ में दिखने वाला है। अपनी पिछली फिल्म ‘अवतार’ के 13 साल बाद उसकी सीक्वल लेकर आ रहे कैमरून ने अपनी इस फिल्म का प्रीमियर भी लंदन में किया क्योंकि लंदन को वह अपने लिए सौभाग्यशाली मानते हैं। इस दौरान समय निकालकर जेम्स कैमरून ने लंदन से ही ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल से ये खास बातचीत की...
लंदन में फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ का प्रीमियर करने की वजह?
मुझे लगता है कि लंदन हमारे लिए भाग्यशाली रहा है। ‘अवतार’ सीरीज की पहली फिल्म का प्रीमियर भी हमने यहीं किया था और ये शहर इसलिए भी थोड़ा बेहतर है क्योंकि यहां रहकर मैं दुनिया भर के पत्रकारों से उनकी सहूलियत के अनुसार बात कर सकता हूं।
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भाग्य, परंपराओं के साथ साथ आप भारतीय पौराणिक कथाओं में वर्णित पांच मूल तत्वों धरती, जल, अग्नि, आकाश और वायु से भी काफी प्रभावित दिखते हैं, इस बार इनमें से किस तत्व की तरफ आपका ध्यान केंद्रित रहा?
भारतीय संस्कृति में ये तत्व मानवीय विचारों को भी प्रकट करते हैं। हम दुनिया को किस तरह से देखते हैं, ये इनके भी प्रतीक हैं। अगर मैं कोई काल्पनिक दुनिया इस तरह से बनाता हूं कि जो दुनिया के प्रतीकों के विपरीत है तो शायद लोग उसे ढंग से समझ न सकें। तो ‘वे ऑफ वाटर’ का विचार मेरे मन में तब आया जब मैं पहली ‘अवतार’ के लिए एक नए विचार पर काम कर रहा था। इसकी नायिका नेयत्री वह सब कुछ करती है जिसे वह ‘वे ऑफ एयर’ कहती है। वह हवाओं को समझती है, इनसे उस तक वापस आने वाली संवेदनाओं को समझती है और जिस तरह वह अपने प्रिय प्राणी पर सवार होकर उसके डैनों के साथ हवा में घूमती है, तो वह सब उसकी सोच को प्रभावित करते हैं। और, ये उसकी पूरी जिंदगी के अनुभव से आता है कि वह कैसे एक सर्वश्रेष्ठ उड़ाकू बन सकती है।
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और, इसी विचार का विस्तार है, ‘द वे ऑफ वाटर’?
हां, जब हम समुद्र पर आधारित एक फिल्म बनाने जा रहे थे तो हमने सोचा कि इस बार ‘वे ऑफ वाटर’ को केंद्र में रखते हैं। ‘द वे ऑफ वाटर’ सिर्फ फिल्म का शीर्षक भर नहीं है। ये दरअसल एक अभ्यास है जिसे फिल्म के किरदार लगातार करते हैं। ये एक मंत्र की तरह है। एक प्रार्थना की तरह। ये इन किरदारों की सांसों में एक सतत चलती रहने वाली धुन की तरह। जब भी वह समंदर की गहराइयों में डुबकियां लगाते हैं तो ये उनकी धुन बन जाती है कि उन्हें कितनी देर तक सांसे छोड़ती रहनी है। इस तरह से देखें तो ‘वे ऑफ वाटर’ का न कोई आदि है और न ही कोई अंत।
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हाल ही में अमेरिका में हुए डी 23 कार्यक्रम में मैंने फिल्म ‘अवतार द वे ऑफ वाटर’ के करीब 30 मिनट के अंश थ्रीडी में देखे थे, उन्हें देखकर यूं लगता है कि जैसे पानी भी इस फिल्म का एक किरदार है...
हां, बिल्कुल ठीक कहा आपने। ये तकरीबन एक किरदार की ही तरह है इस फिल्म में। फिल्म में सागर का दृष्टांत देने के लिए एक किरदार है पेलिकन। अब ये क्या है ये जानने के लिए आपको पूरी फिल्म देखनी ही होगी। लेकिन, मैं इतना बता सकता हूं ये एक संपूर्ण, समृद्ध किरदार है जिसका अतीत उसके किरदार का अहम हिस्सा है। उसका अपना दर्द है। इसलिए हम उसकी संवेदनाओं को फिल्म देखते हुए समझ सकते हैं। वह न तो इंसान है और न ही नावी। वह बहुत कुछ व्हेल सरीखा है। इस समय जो आप समझ पा रहे हैं, दरअसल वह उसी का पैंडारा प्रतिरूप है।
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