विन्सटन चर्चिल की योजनाएं भारत में आए उस अकाल की जिम्मेदार हैं, जिसमें तीस लाख लोगों की मौत हो गई थी। इस बात का खुलासा एक शोध में हुआ है। उस वक्त चर्चिल ब्रिटेन का प्रधानमंत्री था। ये अकाल साल 1943 में आया था।
शोध में पहली बार मिट्टी में मौजूद नमी का विश्लेषण करने के बाद ये निष्कर्ष सामने आया है। इससे ये साबित हो जाता है कि आधुनिक भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा ये अकाल कोई प्राकृतिक घटना नहीं थी।
भारतीय और अमेरिकी शोधकर्ताओं ने 1873 और 1943 के बीच उपमहाद्वीप में छह प्रमुख अकालों के दौरान मिट्टी में नमी की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए मौसम के आंकड़ों का विश्लेषण किया। शोध में कहा गया है कि इस भारी तबाही का कारण सूखा नहीं था।
इस शोध से जुड़े भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के प्रमुख शोधकर्ता और सहायक प्रोफेसर, विमल मिश्रा ने सीएनएन को बताया, "यह एक अनूठा अकाल था और उसके लिए सूखा नहीं नीतिगत विफलता जिम्मेदार थी।"
शोध में पता चला कि पांच अकाल सूखे के कारण आए थे जबकि 1943 में जब बंगाल में अकाल आया, उस वक्त वर्षा का स्तर औसत से अधिक था। ये लेख जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर में प्रकाशित किया गया है।
मिश्रा ने कहा कि नीतिगत चूक ये थी कि सेना की आपूर्ति को प्राथमिकता देते हुए तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया ने बंगाल में चावल के आयात को रोक दिया था। उसने इस आपदा को अकाल घोषित करने से भी इनकार कर दिया था। जिस कारण अकाल में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई।
मिश्रा के मुताबिक, 1943 से पहले पड़े, 1873-74 के अकालों की जांच से पता चलता है कि इन अकालों से लगभग 2.5 करोड़ लोग प्रभावित तो हुए थे। लेकिन प्रभावी नीतियों के कारण मरने वालों की संख्या ना के बराबर थी।
मिश्रा ने कहा, तब मरने वालों की संख्या कम इसलिए थी क्योंकि खाने का आयात बर्मा (अब म्यांमार) से हो रहा था। इसके अलावा तत्कालीन ब्रिटिश सरकार भी लोगों तक राहत सामग्री पहुंचा रही थी। तत्कालीन बंगाल के उपराज्यपाल रिचर्ड टेंपल ने खाने का आयात कर लोगों तक पहुंचाया और बहुत लोगों की जान बचा ली।
हालांकि बाद में ब्रिटिश सरकार ने टेंपल की काफी आलोचना की क्योंकि उन्होंने भारतीयों की जान बचाई थी। इसके बाद 19वीं सदी में आए सूखे के दौरान टेंपल की नीतियों को बदल दिया गया। जिससे लाखों लोगों की मौत हुई।
नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने साल 1981 में कहा था कि 1943 में बंगाल में पर्याप्त खाद्य आपूर्ति होनी चाहिए थी। हाल ही में आई अपनी किताब में मधुश्री मुखर्जी ने लिखा है कि अकाल चर्चिल के गलत फैसलों के कारण पड़ा था। उन्होंने लिखा कि भारत से बड़े पैमाने पर खाने का निर्यात किया जा रहा था जिसके चलते अकाल पड़ा।
मुखर्जी का कहना है, भारत ने 1943 में जनवरी से जुलाई के बीच में 70 हजार टन चावल का निर्यात किया था।
विन्सटन चर्चिल की योजनाएं भारत में आए उस अकाल की जिम्मेदार हैं, जिसमें तीस लाख लोगों की मौत हो गई थी। इस बात का खुलासा एक शोध में हुआ है। उस वक्त चर्चिल ब्रिटेन का प्रधानमंत्री था। ये अकाल साल 1943 में आया था।
आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
विन्सटन चर्चिल की योजनाएं भारत में आए उस अकाल की जिम्मेदार हैं, जिसमें तीस लाख लोगों की मौत हो गई थी। इस बात का खुलासा एक शोध में हुआ है। उस वक्त चर्चिल ब्रिटेन का प्रधानमंत्री था। ये अकाल साल 1943 में आया था।
शोध में पहली बार मिट्टी में मौजूद नमी का विश्लेषण करने के बाद ये निष्कर्ष सामने आया है। इससे ये साबित हो जाता है कि आधुनिक भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा ये अकाल कोई प्राकृतिक घटना नहीं थी।
भारतीय और अमेरिकी शोधकर्ताओं ने 1873 और 1943 के बीच उपमहाद्वीप में छह प्रमुख अकालों के दौरान मिट्टी में नमी की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए मौसम के आंकड़ों का विश्लेषण किया। शोध में कहा गया है कि इस भारी तबाही का कारण सूखा नहीं था।
इस शोध से जुड़े भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के प्रमुख शोधकर्ता और सहायक प्रोफेसर, विमल मिश्रा ने सीएनएन को बताया, "यह एक अनूठा अकाल था और उसके लिए सूखा नहीं नीतिगत विफलता जिम्मेदार थी।"
शोध में पता चला कि पांच अकाल सूखे के कारण आए थे जबकि 1943 में जब बंगाल में अकाल आया, उस वक्त वर्षा का स्तर औसत से अधिक था। ये लेख जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर में प्रकाशित किया गया है।