योगी आदित्यनाथ सरकार के तीन मंत्रियों और लगभग एक दर्जन विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है। इन नेताओं में सबसे ज्यादा ओबीसी वर्ग के नेता शामिल हैं। सरकार और पार्टी छोड़ते समय इन नेताओं ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार में ओबीसी और दलित हितों की उपेक्षा की जा रही थी, जिससे पीड़ित होकर यह पार्टी छोड़ने का कदम उठा रहे हैं। इससे भाजपा की ओबीसी दलित राजनीति को नुकसान पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है, लेकिन इससे भाजपा की चुनावी रणनीति पर कितना असर पड़ेगा, इस पर नेताओं की राय बंटी हुई है।
दरअसल, 2014, 2017 और 2019 में भाजपा को मिली शानदार सफलता के पीछे उसे अति पिछड़ा, ओबीसी और अति दलित जातियों का समर्थन मिलना बताया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुलकर खुद को पिछड़ा वर्ग का 'बेटा' बताते हुए इन वर्गों का साथ पाने की कोशिश की थी। उन्हें इसका चुनावी फायदा भी मिला। लेकिन बदले हालात में इन समीकरणों में कुछ बदलाव आने की आशंका जताई जा रही है।
लेकिन भाजपा की रणनीति में ओबीसी-दलित समाज हमेशा से केंद्र में रहा है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह हमेशा 51 फीसदी से अधिक वोटों की राजनीति करने की बात कहते रहे हैं। 51 फीसदी से अधिक वोट बैंक की राजनीति केवल अगड़ी जातियों के भरोसे नहीं की जा सकती। इसके लिए समाज से पिछड़े वर्ग और दलित जातियों का समर्थन मिलना बेहद आवश्यक है। यही कारण है कि भाजपा अपनी किसी भी रणनीति में ओबीसी और दलित जातियों को सबसे आगे रखकर चलती रही है।
केंद्र के इरादे पर संदेह
दलित महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रितु चौधरी ने अमर उजाला से कहा कि मोदी सरकार और योगी आदित्यनाथ सरकार खुद को दलित हितैषी साबित करने की कोशिश जरूर करती रही है, लेकिन दलित समाज को यह बात अच्छी तरह से याद है कि इसी सरकार ने दलितों को संरक्षण देने वाली कानून की धाराओं में परिवर्तन करने का प्रयास किया था। दलित समाज के कठोर विरोध के बाद उसे यह फैसला वापस लेना पड़ा था, लेकिन इससे केंद्र के इरादे सामने आ गए थे।
उनका आरोप है कि इसी प्रकार ओबीसी-दलित जातियों को मिल रहे आरक्षण से भी छेड़छाड़ करने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि दलित समुदाय मोदी सरकार और योगी आदित्यनाथ सरकार को अपना समर्थन देकर आज पछता रहा है और अब वह एक नए विकल्प की तलाश कर रहा है। कांग्रेस ने ही दलित समुदाय को आगे बढ़ाने में सबसे बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, यही कारण है कि दलित समुदाय एक बार फिर से उम्मीद भरी नजरों से कांग्रेस की ओर देख रहा है।
ओबीसी-दलितों को सबसे ज्यादा लाभ
वहीं भाजपा के एससी/एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री संजय निर्मल ने अमर उजाला से कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और योगी आदित्यनाथ की सरकार में जितनी भी योजनाएं लागू की गईं, वे किसी भी जाति और धर्म पर आधारित नहीं थीं। सरकार ने समाज के हर वर्ग- हर जाति और हर धर्म को एक तराजू में तोला और सबके लिए एक समान कार्य किया। लेकिन समाज में ज्यादा संख्या में भागीदारी होने के कारण इन योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ ओबीसी, अति पिछड़े, दलित और अति दलित जातियों को ही मिला।
संजय निर्मल ने कहा कि दलित जातियों ने बड़ी उम्मीद के साथ कांशीराम के कहने पर मायावती में अपना भरोसा जताया था, लेकिन मायावती का कार्यकाल इस बात का गवाह है कि उसी समय दलितों पर सबसे ज्यादा उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए। समाजवादी पार्टी सरकार की अगुवाई में एक जाति विशेष ने दलित समुदाय के लोगों पर अत्याचार किया। इस तरह दलित समुदाय का भरोसा सपा और बसपा दोनों से ही उठ चुका है।
दलित समुदाय अंबेडकर को अपना आदर्श मानता है।
अंबेडकर की राजनीति को स्थापित करने, उसे आगे बढ़ाने, उनके जन्मदिन पर अवकाश घोषित करने और दलित समुदाय के छात्रों को आगे बढ़ने के लिए जितना अवसर मोदी सरकार ने उपलब्ध कराया है, उतना दलित समुदाय की होने वाली मायावती ने भी नहीं उपलब्ध कराया। यही कारण है कि दलित समुदाय का भरोसा अब मायावती से हट चुका है और उनका समर्थन भाजपा की ओर जा सकता है।
जहां आरक्षण नहीं, वहां भी भागीदारी
संजय निर्मल ने कहा कि जिन पदों पर संविधान में कोई आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं है, वहां पर भी नरेंद्र मोदी सरकार ने दलित और ओबीसी जातियों को पर्याप्त भागीदारी देकर इनके उत्थान के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है। राष्ट्रपति, राज्यपाल, राज्यसभा सदस्य, मंत्रिमंडल और अन्य जगहों पर भी ओबीसी और दलित समुदाय को पर्याप्त भागीदारी दी गई है। इससे भाजपा सरकार पर ओबीसी, दलित समुदाय की हितैषी होने की सोच पर प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा किया जा सकता।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एससी मोर्चा के प्रभारी की भूमिका निभा रहे संजय निर्मल ने कहा कि दलित समुदाय यह देख रहा है कि मायावती मैदान छोड़ चुकी हैं। पूर्व के कड़वे अनुभव के कारण उसके लिए समाजवादी पार्टी एक आकर्षक विकल्प नहीं हो सकता है। यही कारण है कि दलित समुदाय और ओबीसी इस चुनाव में भी भाजपा के साथ रहेंगे और अवसरवादी ओबीसी नेताओं के पार्टी छोड़ने से भाजपा पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
पीएम की छवि सबसे बड़ा ब्रांड
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल कहते हैं कि आज जो नेता ओबीसी और दलित जातियों के हितैषी होने के नाम पर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं, उनकी अपनी भूमिका संदेह के घेरे में रही है। कुछ लोगों ने जातिवाद को सत्ता पाने का माध्यम बनाया। ओबीसी और दलित जातियों के हित के नाम पर उनका वोट लेने के बाद केवल अपने परिवार का हित किया। उन्होंने अपने भ्रष्टाचार को जातिवाद के पीछे छिपाने का काम किया।
लेकिन आज के सोशल मीडिया के दौर में जनता बहुत अच्छी तरीके से यह जान चुकी है कि कौन उनकी जातियों के लिए वास्तविक लड़ाई लड़ रहा है और कौन केवल उनका वोट लेने के लिए राजनीति कर रहा है। उन्होंने कहा कि इन अवसरवादी नेताओं के कारण प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की विश्वसनीयता में कहीं कोई कमी नहीं आएगी। उन्होंने भरोसा जताया कि योगी आदित्यनाथ सरकार एक बार फिर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रहेगी।
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योगी आदित्यनाथ सरकार के तीन मंत्रियों और लगभग एक दर्जन विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है। इन नेताओं में सबसे ज्यादा ओबीसी वर्ग के नेता शामिल हैं। सरकार और पार्टी छोड़ते समय इन नेताओं ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार में ओबीसी और दलित हितों की उपेक्षा की जा रही थी, जिससे पीड़ित होकर यह पार्टी छोड़ने का कदम उठा रहे हैं। इससे भाजपा की ओबीसी दलित राजनीति को नुकसान पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है, लेकिन इससे भाजपा की चुनावी रणनीति पर कितना असर पड़ेगा, इस पर नेताओं की राय बंटी हुई है।
दरअसल, 2014, 2017 और 2019 में भाजपा को मिली शानदार सफलता के पीछे उसे अति पिछड़ा, ओबीसी और अति दलित जातियों का समर्थन मिलना बताया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुलकर खुद को पिछड़ा वर्ग का 'बेटा' बताते हुए इन वर्गों का साथ पाने की कोशिश की थी। उन्हें इसका चुनावी फायदा भी मिला। लेकिन बदले हालात में इन समीकरणों में कुछ बदलाव आने की आशंका जताई जा रही है।
लेकिन भाजपा की रणनीति में ओबीसी-दलित समाज हमेशा से केंद्र में रहा है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह हमेशा 51 फीसदी से अधिक वोटों की राजनीति करने की बात कहते रहे हैं। 51 फीसदी से अधिक वोट बैंक की राजनीति केवल अगड़ी जातियों के भरोसे नहीं की जा सकती। इसके लिए समाज से पिछड़े वर्ग और दलित जातियों का समर्थन मिलना बेहद आवश्यक है। यही कारण है कि भाजपा अपनी किसी भी रणनीति में ओबीसी और दलित जातियों को सबसे आगे रखकर चलती रही है।
केंद्र के इरादे पर संदेह
दलित महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रितु चौधरी ने अमर उजाला से कहा कि मोदी सरकार और योगी आदित्यनाथ सरकार खुद को दलित हितैषी साबित करने की कोशिश जरूर करती रही है, लेकिन दलित समाज को यह बात अच्छी तरह से याद है कि इसी सरकार ने दलितों को संरक्षण देने वाली कानून की धाराओं में परिवर्तन करने का प्रयास किया था। दलित समाज के कठोर विरोध के बाद उसे यह फैसला वापस लेना पड़ा था, लेकिन इससे केंद्र के इरादे सामने आ गए थे।
उनका आरोप है कि इसी प्रकार ओबीसी-दलित जातियों को मिल रहे आरक्षण से भी छेड़छाड़ करने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि दलित समुदाय मोदी सरकार और योगी आदित्यनाथ सरकार को अपना समर्थन देकर आज पछता रहा है और अब वह एक नए विकल्प की तलाश कर रहा है। कांग्रेस ने ही दलित समुदाय को आगे बढ़ाने में सबसे बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, यही कारण है कि दलित समुदाय एक बार फिर से उम्मीद भरी नजरों से कांग्रेस की ओर देख रहा है।
ओबीसी-दलितों को सबसे ज्यादा लाभ
वहीं भाजपा के एससी/एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री संजय निर्मल ने अमर उजाला से कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और योगी आदित्यनाथ की सरकार में जितनी भी योजनाएं लागू की गईं, वे किसी भी जाति और धर्म पर आधारित नहीं थीं। सरकार ने समाज के हर वर्ग- हर जाति और हर धर्म को एक तराजू में तोला और सबके लिए एक समान कार्य किया। लेकिन समाज में ज्यादा संख्या में भागीदारी होने के कारण इन योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ ओबीसी, अति पिछड़े, दलित और अति दलित जातियों को ही मिला।
संजय निर्मल ने कहा कि दलित जातियों ने बड़ी उम्मीद के साथ कांशीराम के कहने पर मायावती में अपना भरोसा जताया था, लेकिन मायावती का कार्यकाल इस बात का गवाह है कि उसी समय दलितों पर सबसे ज्यादा उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए। समाजवादी पार्टी सरकार की अगुवाई में एक जाति विशेष ने दलित समुदाय के लोगों पर अत्याचार किया। इस तरह दलित समुदाय का भरोसा सपा और बसपा दोनों से ही उठ चुका है।
दलित समुदाय अंबेडकर को अपना आदर्श मानता है।
अंबेडकर की राजनीति को स्थापित करने, उसे आगे बढ़ाने, उनके जन्मदिन पर अवकाश घोषित करने और दलित समुदाय के छात्रों को आगे बढ़ने के लिए जितना अवसर मोदी सरकार ने उपलब्ध कराया है, उतना दलित समुदाय की होने वाली मायावती ने भी नहीं उपलब्ध कराया। यही कारण है कि दलित समुदाय का भरोसा अब मायावती से हट चुका है और उनका समर्थन भाजपा की ओर जा सकता है।
जहां आरक्षण नहीं, वहां भी भागीदारी
संजय निर्मल ने कहा कि जिन पदों पर संविधान में कोई आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं है, वहां पर भी नरेंद्र मोदी सरकार ने दलित और ओबीसी जातियों को पर्याप्त भागीदारी देकर इनके उत्थान के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है। राष्ट्रपति, राज्यपाल, राज्यसभा सदस्य, मंत्रिमंडल और अन्य जगहों पर भी ओबीसी और दलित समुदाय को पर्याप्त भागीदारी दी गई है। इससे भाजपा सरकार पर ओबीसी, दलित समुदाय की हितैषी होने की सोच पर प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा किया जा सकता।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एससी मोर्चा के प्रभारी की भूमिका निभा रहे संजय निर्मल ने कहा कि दलित समुदाय यह देख रहा है कि मायावती मैदान छोड़ चुकी हैं। पूर्व के कड़वे अनुभव के कारण उसके लिए समाजवादी पार्टी एक आकर्षक विकल्प नहीं हो सकता है। यही कारण है कि दलित समुदाय और ओबीसी इस चुनाव में भी भाजपा के साथ रहेंगे और अवसरवादी ओबीसी नेताओं के पार्टी छोड़ने से भाजपा पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
पीएम की छवि सबसे बड़ा ब्रांड
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल कहते हैं कि आज जो नेता ओबीसी और दलित जातियों के हितैषी होने के नाम पर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं, उनकी अपनी भूमिका संदेह के घेरे में रही है। कुछ लोगों ने जातिवाद को सत्ता पाने का माध्यम बनाया। ओबीसी और दलित जातियों के हित के नाम पर उनका वोट लेने के बाद केवल अपने परिवार का हित किया। उन्होंने अपने भ्रष्टाचार को जातिवाद के पीछे छिपाने का काम किया।
लेकिन आज के सोशल मीडिया के दौर में जनता बहुत अच्छी तरीके से यह जान चुकी है कि कौन उनकी जातियों के लिए वास्तविक लड़ाई लड़ रहा है और कौन केवल उनका वोट लेने के लिए राजनीति कर रहा है। उन्होंने कहा कि इन अवसरवादी नेताओं के कारण प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की विश्वसनीयता में कहीं कोई कमी नहीं आएगी। उन्होंने भरोसा जताया कि योगी आदित्यनाथ सरकार एक बार फिर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रहेगी।