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RAF Anniversary: RAF was made a dragon fighter with the American military contingent
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RAF Anniversary: अमेरिकी सैन्य टुकड़ी के साथ ड्रैगन फाइटर बनी थी ‘आरएएफ’, क्यों होते हैं दोगुने अफसर?
RAF Anniversary: सीआरपीएफ के रिटायर्ड एडीजी एसएस संधू, जो कई वर्षों तक आरएएफ में तैनात रहे हैं, उन्होंने कहा, यह एक स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग वाली फोर्स है। ड्यूटी चाहे कानून व्यवस्था बनाए रखने की हो या दंगा व उपद्रव पर काबू करना, इसमें आरएएफ ने खुद को साबित कर दिखाया है...
देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल 'सीआरपीएफ' की ही एक इकाई 'आरएएफ' यानी रेपिड एक्शन फोर्स है। सात अक्तूबर को इस बल का 30वां स्थापना दिवस मनाया गया। इस बल की खूबी ये है कि इसने देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कानून व्यवस्था बनाए रखने में अपना योगदान दिया है। आरएएफ ने हैती में संयुक्त राष्ट्र मिशन के अंतर्गत अमेरिकी सैन्य टुकड़ी के साथ मिलकर 504 सैन्य पुलिस बटालियन (ड्रैगन फाइटर) के एक दस्ते के रूप में वहां मुश्किल परिस्थितियों में चुनाव संपन्न कराए थे। मौजूदा समय में आरएएफ की 15 बटालियन हैं। इस बल की खासियत ये है कि यहां पर अन्य बटालियनों के मुकाबले अफसर दो-तीन गुना ज्यादा होते हैं। आरएएफ को अपना एक अलग ध्वज प्रदान किया गया है।
आरएएफ ने खुद को साबित कर दिखाया है: एसएस संधू
सीआरपीएफ के रिटायर्ड एडीजी एसएस संधू, जो कई वर्षों तक आरएएफ में तैनात रहे हैं, उन्होंने कहा, यह एक स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग वाली फोर्स है। ड्यूटी चाहे कानून व्यवस्था बनाए रखने की हो या दंगा व उपद्रव पर काबू करना, इसमें आरएएफ ने खुद को साबित कर दिखाया है। अगर कोई संवेदनशील मामला है तो वहां इस बल की भूमिका और ज्यादा अहम बन जाती है। ऐसे क्षेत्रों में आरएएफ स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर एक्सरसाइज करती है। दंगा व उपद्रव करने वाले आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के अलावा आम लोगों में भरोसा जताने के लिए भी इस बल के दस्ते बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते हैं। इसके लिए आरएएफ दस्ते को 'फेमिलीराइजेशन' में पारंगत बनाया जाता है।
आरएएफ की एक बटालियन में आठ 'सीओ'
आरएएफ की अहम भूमिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विभिन्न राज्यों में 'डीएम' को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी आपात स्थिति में बिना केंद्र की मंजूरी के तीन दिन के लिए आरएएफ की तैनाती का आदेश जारी कर सकता है। इसकी एक बटालियन में 1300 से अधिक जवान होते हैं। आरएएफ में अन्य बलों या उनकी इकाइयों के मुकाबले, अफसरों की संख्या ज्यादा रहती है। बतौर संधू, सीआरपीएफ की अन्य बटालियन में जहां तीन कमांडिंग अफसर 'सीओ' होते हैं, वहीं आरएएफ में आठ 'सीओ' रहते हैं। यह बल संवेदनशील विषयों पर नियमित वर्कशॉप करता है। दंगा या उपद्रव वाले संभावित स्थानों पर विशेष एक्सरसाइज की जाती है। इसके जवान, वरुण वाटर गन, रॉयट ड्रिल, रॉयट गीयर व दूसरे उपकरणों से लैस रहते हैं। इस बल में सब इंस्पेक्टर भी अन्य बलों के मुकाबले तीन गुणा ज्यादा होते हैं। देश में यह एक अलग फोर्स है, इसका अलग कलर है। आरएएफ का अपना झंडा है।
साल 2010 में आरएएफ स्थापना दिवस समारोह में डीआईजी एसएस संधू
- फोटो : Amar Ujala
प्रारंभ में दस बटालियनों से हुई शुरुआत
आरएएफ का तात्पर्य द्रुत कार्य बल से हैं। यह एक विशिष्ट बल है। प्रारंभ में 10 बटालियनों के साथ इसे 7 अक्तूबर, 1992 में खड़ा किया गया था। साल 2018 के दौरान आरएएफ में 5 नई बटालियन शामिल की गई। दंगे जैसी स्थितियों से निपटने, समाज के विभिन्न वर्गो में परस्पर आत्मविश्वास का माहौल पैदा करने व आंतरिक सुरक्षा ड्यूटी में योगदान, ये आरएएफ का मुख्य कार्य है। सीआरपीएफ और आरएएफ यूनिटों से 120 पुरुष कार्मिकों की एक सैनिक टुकड़ी का गठन कर उसे 103 बटालियन नई दिल्ली में प्रशिक्षण दिया गया। इस सैन्य टुकड़ी को 31 मार्च 1993 को हैती के लिए रवाना किया गया। इस सैन्य टुकड़ी को उस दौरान कंपनी का नाम दिया गया, जिसने हैती में संयुक्त राष्ट्र मिशन के अंतर्गत अमेरिकी सैन्य टुकड़ी के साथ मिलकर 504 सैन्य पुलिस बटालियन (ड्रैगन फाइटर) के एक दस्ते के रूप में वहां चुनावों के दौरान विभिन्न ड्यूटियों का निर्वहन किया था।
कोसोवो में संयुक्त राष्ट्र मिशन में तैनात है आरएएफ
वर्तमान में द्रुत कार्य बल की 240 कर्मियों की एक टुकड़ी कोसोवो में संयुक्त राष्ट्र मिशन के रूप में तैनात है। इसे वहां संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों/संयुक्त राष्ट्र सिविल पुलिस के संरक्षण एवं सुरक्षा, भीड़ नियंत्रण इत्यादि के लिए तैनात किया गया है। द्रुत कार्य बल की कम्पनियां, हिंसात्मक प्रदर्शन के समय उत्तेजित भीड़ को नियंत्रित करने तथा शहर के विभिन्न मानवतावादी क्रियाकलाप करने में स्थानीय पुलिस की सहायता करती हैं। नामीबिया, सोमालिया, हैती, मालदीव तथा बोसनिया में भी संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के रूप में आरएएफ को तैनात किया गया था। हैती में तत्कालीन कमांडेंट, आरएसएचएस सहोता सैन्य टुकड़ी के कमांडर थे। शानदार उपलब्धि के लिए इस सैन्य टुकड़ी को यूएस आर्मी प्रशंसा पदक, यूएस आर्मी उपलब्धि पदक-5, प्रशंसा सिक्के-80 के अलावा सभी 120 कार्मिकों को संयुक्त राष्ट्र पदक से अलंकृत किया गया है। सौंपे गए कार्यों को सफलापूर्वक पूर्ण करने के पश्चात् इस सैन्य टुकड़ी को नवंबर 1995 के दौरान हैती से स्वदेश वापस भेजा गया।
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में बल की महिलाएं भी शामिल
संयुक्त राष्ट्र के विशेष अनुरोध एवं भारत सरकार/गृह मंत्रालय के निर्देश पर सीआरपीएफ 'महिला पुलिस इकाई' (एफएफपीयु) को फरवरी 2007 के दौरान संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के रूप में संघर्ष से जुझ रहे अफ्रिकन राष्ट्र लाइबेरिया में तैनात किया गया। वहां 23 राष्ट्रों की तैनाती में केवल भारत ही ऐसा राष्ट्र था, जिसके पास एक विशिष्ट महिला सैन्य टुकड़ी थी। प्रत्येक सैन्य टुकड़ी की तैनाती की अवधि एक वर्ष है। पूरी तरह से गठित महिला पुलिस इकाई (एफएफपीयु) को विदेश मंत्रालय, लाइबेरिया के राष्ट्रपति के मुख्यालय का सुरक्षा कवच, यूएनपीओएल व एलएनपी (लाइबेरिया राष्ट्रीय पुलिस) के साथ मोबाइल संयुक्त कार्य बल गश्त (जेटीएफपी) एवं किसी भी आपात स्थिति के दौरान जवाबी कार्रवाई करना, जैसी जिम्मेदारी सौंपी गई है। अपराध पर अंकुश, लाइबेरिया राष्ट्रीय पुलिस के साथ पैदल गश्त, हिंसा की आशंका वाले क्षेत्रों में डकैती विरोधी गश्त, घेराबंदी और तलाशी सहित विशेष अभियान एवं यूएनएमआईएल कर्मचारियों और परिसंपत्तियों का संरक्षण, ये सब भी आरएएफ की ड्यूटी का हिस्सा है।
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