आजादी के बाद भारत 565 देशी रियासतों में बंटा था। ये देशी रियासतें स्वतंत्र शासन में यकीन रखती थीं जो सशक्त भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा थी। हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर को छोड़कर 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी। आजादी के बाद देश के पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बने सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सभी रियासतों से बात करके उन्हें भारतीय परिसंघ में शामिल होने के लिए मनाया।
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आजादी के बाद भारत 565 देशी रियासतों में बंटा था। ये देशी रियासतें स्वतंत्र शासन में यकीन रखती थीं जो सशक्त भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा थी। हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर को छोड़कर 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी। आजादी के बाद देश के पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बने सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सभी रियासतों से बात करके उन्हें भारतीय परिसंघ में शामिल होने के लिए मनाया।
हम सभी जानते हैं कि कुछ रियासतों के विलय में काफी दिक्कतें भी आई थीं। लेकिन यह समस्या क्यों आई और क्या केवल भारत में ही ऐसी स्थिति बनी थी? किन रियासतों ने भारत में विलय का विरोध किया था ? ऐसे ही कई सवालों के जवाब आपको यहां मिलेंगे।
1947 भारत के अंतर्गत तीन तरह के क्षेत्र थेः
- ब्रिटिश भारत के क्षेत्र
- देसी राज्य (Princely states)
- फ्रांस और पुर्तगाल के औपनिवेशिक क्षेत्र
बंटवारे से पहले हिंदुस्तान में 579 रियासतें थीं। जब अंग्रेजों के भारत छोड़ने का समय आया तो उन्होंने देश को तीन हिस्सों में बांट दिया। भारत का पश्चिमी हिस्सा मगरिबी पाकिस्तान बना तो पूर्वी हिस्सा मशरिकी पाकिस्तान कहलाया। यही पूर्वी हिस्सा अब बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। इस बंटवारे के बाद 550 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों को भारत कहा गया। इसमें कई स्वतंत्र राज्य और रियासतें शामिल थीं। कुछ रियासतें तो चंद गांवों तक सिमटी हुई थीं। इन सभी को खत्म करने राज्यों का गठन करते हुए भारत संघ की कहानी लिखी गई थी।
भारत में अंग्रेजों के अंतिम वायसराय लुइस माउंटबेटन ने बंटवारे के दौरान सभी राज्यों और रियासतों को यह सलाह दी कि वे भौगोलिक स्थिति के अनुकूल भारत या पाकिस्तान साथ मिल जाएं। साथ ही उन्हें चेतावनी दी गई कि 15 अगस्त के बाद उन्हें ब्रिटेन से कोई मदद नहीं मिलेगी। अधिकांश राजाओं ने इस सलाह को मान लिया। लेकिन कुछ राजा इसके खिलाफ थे।
जाते-जाते भी फूट डालने में लगे रहे अंग्रेज
जब देश को आजादी मिलना तय हो गया तब कुछ रियासतों ने खुद को स्वतंत्र रखने का मन बनाया था। वे स्वतंत्र भारत में अपना अस्तित्व बनाये रखने की फिराक में थे। उनकी ये इच्छा उस समय और बढ़ गई जब अंग्रेजों ने भारतीय रियासतों को अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का अधिकार दे दिया। लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया कि ब्रिटेन स्वतंत्र रियासतों में किसी को भी अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देगा।