उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए रविवार का दिन बड़ा तनाव भरा था। उन्हें फिर चुनावी मंच से मुख्यमंत्री की ताकत दिखानी पड़ी। जब ताकत दिखा रहे थे तो दिल्ली आए भाजपा नेता और उनके सहयोगी के मुंह से तंज के फव्वारे फूट रहे थे। इससे पता चल रहा था कि लखनऊ की गोमती नदी में अभी साफ पानी नहीं बह रहा है। योगी ने कहा कि वह टीईटी परीक्षा पेपर लीक दोषियों के घर पर बुलडोजर चलवा देंगे, रासुका लगवा देंगे। तंज भरे जवाब में भाजपा नेता ने कहा कि हमारे मुख्यमंत्री जी हर जगह बस बुलडोजर चलवाने में लगे रहते हैं। बाहुबली मुख्तार अंसारी हों या बिकरु गांव के विकास दुबे...हर जगह बस बुलडोजर ही चल रहा है। दरअसल इनके जैसे तमाम भाजपाइयों को लग रहा है कि योगी के चेहरे पर 2022 में वापसी कठिन है, लेकिन अब तस्वीर बदलनी भी मुश्किल है। दूसरा बड़ा खतरा टिकट बंटवारे पर भी मंडरा सकता है। टीम अमित शाह और जेपी नड्डा टिकट बंटवारे को पारदर्शी तरीके से चाह रही है। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी पसंद के 125 उम्मीदवारों को लेकर दबदबा बनाने की जमीन तैयार करनी शुरू कर दी है। ताकि 2022 में चुनाव बाद दावेदारी कमजोर न पड़े। ऐसा हुआ तो योगी के प्रभाव वाले इनके जैसे तमाम नेताओं का नंबर लगना मुश्किल हो जाएगा। तीन-चार भावी उम्मीदवारों को राजस्थान के गवर्नर से कृपा मिलने की उम्मीद है। उनके सपनों पर भी बुलडोजर चल सकता है।
वसुंधरा की सक्रियता बढ़ते ही बढ़ने लगीं भाजपा नेताओं की मुश्किलें
राजस्थान भाजपा ने वसुंधरा राजे के राजनीतिक अभियान पर काक दृष्टि लगा रखी है और राजे भी इस खेल की चतुर खिलाड़ी हैं। लिहाजा केंद्र के लाख हाथ रखने के बाद भी अभी राजस्थान भाजपा में कोई उनका दमदार विकल्प उभर ही नहीं पा रहा है। गजेंद्र सिंह शेखावत सरीखे केंद्रीय नेताओं को भी सहारे का ही आसरा है। अब जबकि दो साल बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, वसुंधरा धीरे-धीरे सक्रियता बढ़ा रही हैं। हाल में उन्होंने राज्य के छह जिलों में धार्मिक यात्रा और कोविड-19 के दौरान जान गंवाने वाले भाजपा नेताओं के परिजनों से मिलने की यात्रा शुरू की। इस यात्रा में भाजपा के नेताओं और जनता का उत्साह देखकर राजस्थान भाजपा नेताओं के होश उड़ गए। दरअसल उन्हें डर सता रहा है कि वसुंधरा सक्रिय हो गईं, तो नेतृत्व संभालने के लिए दूसरे का नंबर लगना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में प्रदेश के पदाधिकारियों को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का ही आसरा है और वसुंधरा तो ठहरी वसुंधरा। बस चलती जाती हैं, बिना किसी परवाह के।
लोग समझ नहीं पाते, वह सोनिया गांधी हैं
सोनिया से लेकर राहुल गांधी तक के दरबार में इन दिनों बड़ी हलचल है। इन हलचलों के बीच में प्रियंका गांधी वाड्रा ने पंजाब में सिद्धू की इंट्री कराने के बाद फिलहाल अपना सारा फोकस उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर कर लिया है। पार्टी में प्रियंका के विरोधी भी बढ़ रहे हैं और उनका कहना है कि सलाह मशविरे से परहेज करने और मनमाने अंदाज में आगे बढ़ने के कारण प्रियंका का उत्तर प्रदेश में कोई कमाल नहीं दिखने वाला है। पार्टी 10-15 सीट निकाल ले तो बड़ी बात होगी। दूसरी तरफ, राहुल गांधी ने जिन नेताओं के खिलाफ सख्त रूख अख्तियार किए जाने के संकेत दिए थे, उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया के राज में लगातार जिम्मेदारियां मिलनी जारी हैं। राजीव गांधी के जमाने के वफादार और गुड़गांव में शांति से रह रहे विंसेंट जार्ज की भी धीरे-धीरे भूमिका बढ़ रही है। तमाम हलचलों के बीच में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का अपनी निर्धारित नीति के तहत राजनीतिक पहल जारी है। दो पूर्व केंद्रीय मंत्री पार्टी की दशा, दिशा से निराश होकर घर बैठ गए थे। एक दिन अचानक सोनिया का संदेश गया, तो उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आया। इनमें से एक साहब तो आलोचना कर रहे थे। अब कहते हैं कि कुछ भी हो लोग समझ नहीं पाते, वह सोनिया गांधी हैं। देखिए न राजस्थान सुलझा दिया। बस! उनका स्वास्थ्य ठीक रहे और पूरी ऊर्जा से अपना काम करती रहें।
ममता दीदी 'झालमुड़ी' खाएंगी!
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता दीदी का सिक्का चल रहा है। ममता से कांग्रेस के लोकसभा में नेता अधीर रंजन चौधरी के समीकरण ठीक नहीं हैं। जबकि शेष कांग्रेसी तृणमूल से अपने तार ठीक से जोडऩे में लगे हैं। इससे उत्साहित ममता दीदी ने दूसरे राज्यों में पांव पसारने की महत्वाकांक्षा को अंजाम देना शुरू कर दिया है। उनकी मंशा को राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के माथे पर इससे कोई शिकन नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष के एक करीबी सलाहकार का कहना है कि ममता बनर्जी आक्रामक राजनीति करने वाली उत्साही नेता हैं। यह बना भी रहना चाहिए। हमारी नेता थोड़ा सोच समझकर धीरे-धीरे चलती हैं। उनको पता है कि बंगाल के बाहर झालमुड़ी नहीं मिलती। नई जगह पर लोगों को नया स्वाद अपनाने में जरा समय लगता है। उसके लिए कुछ करना भी पड़ता है।
अनुराग ठाकुर और जेपी नड्डा ने बिगाड़ दिया जयराम ठाकुर का समीकरण
हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर साल भर पहले तक ठीक चल रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी बिना लाग लपेट के काम करने का उनका कौशल पसंद आ रहा था। लेकिन अब उनके विकल्प की तरफ देखा जा रहा है। हालांकि जयराम ठाकुर के करीबियों का कहना है कि उनके हाथ में बहुत कुछ नहीं है। सेब के बागानों और किसानों के लिए भी वह कुछ खास नहीं कर सकते थे। कुछ मजबूरियां थीं। दूसरे पेट्रोल और डीजल के बढ़े दामों ने भी हिमालयी राज्य के लोगों को परेशान कर दिया था। इससे भी ज्यादा परेशानी पार्टी के भीतर की गुटबाजी से थी। धूमल परिवार अपनी पकड़ बनाने को बेताब है, लेकिन अनुराग ठाकुर और जेपी नड्डा का समीकरण सबको पता है। नड्डा अब राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के कद्दावर नेता हैं। ऐसे में ठाकुर की स्थिति 'दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय' वाली हो गई है। बताते हैं एक ठाकुर की कुर्सी पर दूसरे ठाकुर के बैठने की प्रबल इच्छा है, लेकिन वह भी परिस्थितियों को देखकर मन में ही दबाए चल रहे हैं। देखिए आगे क्या होता है।
विस्तार
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए रविवार का दिन बड़ा तनाव भरा था। उन्हें फिर चुनावी मंच से मुख्यमंत्री की ताकत दिखानी पड़ी। जब ताकत दिखा रहे थे तो दिल्ली आए भाजपा नेता और उनके सहयोगी के मुंह से तंज के फव्वारे फूट रहे थे। इससे पता चल रहा था कि लखनऊ की गोमती नदी में अभी साफ पानी नहीं बह रहा है। योगी ने कहा कि वह टीईटी परीक्षा पेपर लीक दोषियों के घर पर बुलडोजर चलवा देंगे, रासुका लगवा देंगे। तंज भरे जवाब में भाजपा नेता ने कहा कि हमारे मुख्यमंत्री जी हर जगह बस बुलडोजर चलवाने में लगे रहते हैं। बाहुबली मुख्तार अंसारी हों या बिकरु गांव के विकास दुबे...हर जगह बस बुलडोजर ही चल रहा है। दरअसल इनके जैसे तमाम भाजपाइयों को लग रहा है कि योगी के चेहरे पर 2022 में वापसी कठिन है, लेकिन अब तस्वीर बदलनी भी मुश्किल है। दूसरा बड़ा खतरा टिकट बंटवारे पर भी मंडरा सकता है। टीम अमित शाह और जेपी नड्डा टिकट बंटवारे को पारदर्शी तरीके से चाह रही है। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी पसंद के 125 उम्मीदवारों को लेकर दबदबा बनाने की जमीन तैयार करनी शुरू कर दी है। ताकि 2022 में चुनाव बाद दावेदारी कमजोर न पड़े। ऐसा हुआ तो योगी के प्रभाव वाले इनके जैसे तमाम नेताओं का नंबर लगना मुश्किल हो जाएगा। तीन-चार भावी उम्मीदवारों को राजस्थान के गवर्नर से कृपा मिलने की उम्मीद है। उनके सपनों पर भी बुलडोजर चल सकता है।