दिल्ली एनसीआर के लिए पराली जानलेवा बन चुकी है। मगर किसान इसे जलाने की अपनी मजबूरियां गिना रहे हैं। हालांकि हमारे आसपास के कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनसे यह सीखा जा सकता है कि अगर मन में चाह तो रास्ते निकल ही आते हैं। हरियाणा के जींद में रहने वाले किसान वीरेंद्र सिंह अंबाला के सुखविंदर और झज्जर के प्रमोद समेत कई किसान हैं, जिन्होंने पराली जलाने के विकल्प को तलाश लिया है। चाहें तो हम भी उनसे सीखकर समस्या का समाधान तलाश सकते हैं।
जींद के जलालपुरा गांव के रहने वाले किसान वीरेंद्र सिंह पराली को जलाते नहीं बल्कि उसका इस्तेमाल पशुचारे में करते हैं। इसके अलावा बची पराली को वह गत्ता मिल में भेज देते हैं, जहां पराली का 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिल जाता है। वीरेंद्र का कहना है कि इससे एक ओर इसे जलाना नहीं पड़ता, दूसरे फायदा भी हो जाता है। अंबाला के गांव सपेड़ा के रहने वाले सुखविंदर 2012 से हैप्पी सीडर से गेहूं की बिजाई कर रहे हैं। उनका कहना है कि इसकी जानकारी उन्हें कृषि ज्ञान केंद्र से मिली। वह बिना अवशेष जलाए गेहूं की सीधी बिजाई कर रहे हैं। जिससे उनको पहले की अपेक्षा दो क्विंटल प्रति एकड़ ज्यादा फायदा हुआ है।
झज्जर के गांव बूपनियां के किसान प्रमोद का कहना है कि वह 10-12 एकड़ में जीरी की खेती करते हैं और पराली को कभी भी जलाते नहीं। वह उसको पशुचारे में प्रयोग करने के अलावा गत्ता मिल में बेच देते हैं। जिससे काफी फायदा मिलता है। प्रमोद के अनुसार पराली जलाने के दो नुकसान हैं। एक तो वायु प्रदूषण होता है दूसरा इसको जलाने से कीट मर जाते हैं।
रोहतक में कलानौर के गांव बसाना के रहने वाले किसान अशोक कुमार धान की खेती करते हैं। गांव में 95 प्रतिशत धान की खेती की जाती है। यहां पराली पशुओं के चारे में इस्तेमाल की जा रही है, साथ ही ज्यादा होने पर गऊशाला मे दान दे दी जाती है। उनका कहना है कि हमारे इलाके मे इस तरह का कोई भी पराली जलाने का मामला नहीं है क्योंकि पशुओं के लिए इसे इस्तेमाल में लाया जा रहा है।
साथ ही फैक्टरियो मे भी इसे गत्ता बनाने के इस्तेमाल में लाया जा रहा है । 2000 रुपये तक किसान को पराली बेचने के प्रति एकड़ मिल जाते हैं। ऐसे में किसानो को बदनाम किया जा रहा है । लगभग सभी किसान कस्बे में पराली को इस्तेमाल में ला रहे हैं। यदि फिर भी पराली बच जाती है तो इसे एक जगह इकट्ठा कर दिया जाता है जो लावारिस पशुओं का पेट भरने के काम आती है ।
कैथल में सीवन के गांव अमरेंद्र खारा के निवासी किसान अंग्रेज सिंह ने बताया कि वहां सरकार ने पराली से गैस के जरिये बिजली बनाने की फैक्टरी लगाई है। 15 एकड़ में पराली इकट्ठी की जाती है। किसान यहां पराली लाकर बेच सकते हैं। पराली की कीमत 137 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही है। अंग्रेज सिंह अन्य किसानों से अपील कर रहे हैं कि वे भी पराली को यहां लाकर बेचें। अंग्रेज सिंह का सरकार से कहना है कि अन्य जिलों में भी ऐसी फैक्टरियां लगाई जाएं।
सिरसा से किसान बख्शीश सिंह का कहना है कि वह 2015 से हैप्पी सीडर का प्रयोग कर रहे हैं। यह पराली अवशेष को मिक्स कर देती है। इसके रिजल्ट अच्छे हैं। इसके इस्तेमाल से चावल की क्वालिटी भी बढ़िया निकल रही है। उनका कहना है कि वह कनक की बिजाई आगे भी ऐसे ही करेंगे।
भिवानी जिले के गांव धनाना के किसान संदीप लगभग 50 से 60 एकड़ में धान की बुआई कर रहे हैं। उनका कहना है कि वह पराली जलाते नहीं बल्कि राजस्थानी भाइयों को दे देते हैं। इसका इस्तेमाल पशुओं के चारे में किया जा रहा है।
प्रदूषण की वजह से अस्थमा और सांस के रोगियों की समस्या बढ़ी
दिल्ली एनसीआर में हवा में घुले जहर की वजह से लोगों की जान पर बन आई है। देश की राजधानी और आसपास के राज्यों में अस्थमा और सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गई है। अमर उजाला से बातचीत में कई लोगों ने अपनी समस्याओं के बारे में बताया।
अपने बच्चे की बीमारी से परेशान अंबाला के सुमित ने बताया कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चें को काफी परेशानी हो रही है। इस कारण इसे दिखाने लाया हूं। अंबाला में अपने बच्चे को हुए खांसी-जुकाम से परेशान राजकुमार ने कहा कि दो तीन-साल से बच्चा खांसी जुकाम से पीड़ित है। वायु प्रदूषण बढ़ जाने से और समस्या बढ़ गई है।
अंबाला के सिविल अस्पताल के मेडिकल अधिकारी डॉक्टर राजेश के मुताबिक स्मॉग और वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा और सांस के रोगियों की संख्या बढ़ गई है। उन्होंने सलाह दी की कि धूल व मिट्टी से बचाव के लिए चेहरे पर मास्क और कपड़ा लगाकर घर से बाहर निकलें। सुबह-शाम घर से बाहर नहीं निकलें।
भिवानी के सिविल अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हरजीत ने भी बताया कि वायु प्रदूषण और स्मॉग के कारण आंखों में जलन और संक्रमण की समस्या हो रही है। साथ ही खुजली के केस भी सामने आ रहे हैं। वायु प्रदूषण से बचाव के लिए चश्मा लगाएं। हर एक घंटे बाद आंखों को साफ पानी से धोएं।
दिल्ली एनसीआर के लिए पराली जानलेवा बन चुकी है। मगर किसान इसे जलाने की अपनी मजबूरियां गिना रहे हैं। हालांकि हमारे आसपास के कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनसे यह सीखा जा सकता है कि अगर मन में चाह तो रास्ते निकल ही आते हैं। हरियाणा के जींद में रहने वाले किसान वीरेंद्र सिंह अंबाला के सुखविंदर और झज्जर के प्रमोद समेत कई किसान हैं, जिन्होंने पराली जलाने के विकल्प को तलाश लिया है। चाहें तो हम भी उनसे सीखकर समस्या का समाधान तलाश सकते हैं।
जींद के जलालपुरा गांव के रहने वाले किसान वीरेंद्र सिंह पराली को जलाते नहीं बल्कि उसका इस्तेमाल पशुचारे में करते हैं। इसके अलावा बची पराली को वह गत्ता मिल में भेज देते हैं, जहां पराली का 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिल जाता है। वीरेंद्र का कहना है कि इससे एक ओर इसे जलाना नहीं पड़ता, दूसरे फायदा भी हो जाता है। अंबाला के गांव सपेड़ा के रहने वाले सुखविंदर 2012 से हैप्पी सीडर से गेहूं की बिजाई कर रहे हैं। उनका कहना है कि इसकी जानकारी उन्हें कृषि ज्ञान केंद्र से मिली। वह बिना अवशेष जलाए गेहूं की सीधी बिजाई कर रहे हैं। जिससे उनको पहले की अपेक्षा दो क्विंटल प्रति एकड़ ज्यादा फायदा हुआ है।
झज्जर के गांव बूपनियां के किसान प्रमोद का कहना है कि वह 10-12 एकड़ में जीरी की खेती करते हैं और पराली को कभी भी जलाते नहीं। वह उसको पशुचारे में प्रयोग करने के अलावा गत्ता मिल में बेच देते हैं। जिससे काफी फायदा मिलता है। प्रमोद के अनुसार पराली जलाने के दो नुकसान हैं। एक तो वायु प्रदूषण होता है दूसरा इसको जलाने से कीट मर जाते हैं।
रोहतक में कलानौर के गांव बसाना के रहने वाले किसान अशोक कुमार धान की खेती करते हैं। गांव में 95 प्रतिशत धान की खेती की जाती है। यहां पराली पशुओं के चारे में इस्तेमाल की जा रही है, साथ ही ज्यादा होने पर गऊशाला मे दान दे दी जाती है। उनका कहना है कि हमारे इलाके मे इस तरह का कोई भी पराली जलाने का मामला नहीं है क्योंकि पशुओं के लिए इसे इस्तेमाल में लाया जा रहा है।
साथ ही फैक्टरियो मे भी इसे गत्ता बनाने के इस्तेमाल में लाया जा रहा है । 2000 रुपये तक किसान को पराली बेचने के प्रति एकड़ मिल जाते हैं। ऐसे में किसानो को बदनाम किया जा रहा है । लगभग सभी किसान कस्बे में पराली को इस्तेमाल में ला रहे हैं। यदि फिर भी पराली बच जाती है तो इसे एक जगह इकट्ठा कर दिया जाता है जो लावारिस पशुओं का पेट भरने के काम आती है ।
कैथल में सीवन के गांव अमरेंद्र खारा के निवासी किसान अंग्रेज सिंह ने बताया कि वहां सरकार ने पराली से गैस के जरिये बिजली बनाने की फैक्टरी लगाई है। 15 एकड़ में पराली इकट्ठी की जाती है। किसान यहां पराली लाकर बेच सकते हैं। पराली की कीमत 137 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही है। अंग्रेज सिंह अन्य किसानों से अपील कर रहे हैं कि वे भी पराली को यहां लाकर बेचें। अंग्रेज सिंह का सरकार से कहना है कि अन्य जिलों में भी ऐसी फैक्टरियां लगाई जाएं।
सिरसा से किसान बख्शीश सिंह का कहना है कि वह 2015 से हैप्पी सीडर का प्रयोग कर रहे हैं। यह पराली अवशेष को मिक्स कर देती है। इसके रिजल्ट अच्छे हैं। इसके इस्तेमाल से चावल की क्वालिटी भी बढ़िया निकल रही है। उनका कहना है कि वह कनक की बिजाई आगे भी ऐसे ही करेंगे।
भिवानी जिले के गांव धनाना के किसान संदीप लगभग 50 से 60 एकड़ में धान की बुआई कर रहे हैं। उनका कहना है कि वह पराली जलाते नहीं बल्कि राजस्थानी भाइयों को दे देते हैं। इसका इस्तेमाल पशुओं के चारे में किया जा रहा है।
प्रदूषण की वजह से अस्थमा और सांस के रोगियों की समस्या बढ़ी
दिल्ली एनसीआर में हवा में घुले जहर की वजह से लोगों की जान पर बन आई है। देश की राजधानी और आसपास के राज्यों में अस्थमा और सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गई है। अमर उजाला से बातचीत में कई लोगों ने अपनी समस्याओं के बारे में बताया।
अपने बच्चे की बीमारी से परेशान अंबाला के सुमित ने बताया कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चें को काफी परेशानी हो रही है। इस कारण इसे दिखाने लाया हूं। अंबाला में अपने बच्चे को हुए खांसी-जुकाम से परेशान राजकुमार ने कहा कि दो तीन-साल से बच्चा खांसी जुकाम से पीड़ित है। वायु प्रदूषण बढ़ जाने से और समस्या बढ़ गई है।
अंबाला के सिविल अस्पताल के मेडिकल अधिकारी डॉक्टर राजेश के मुताबिक स्मॉग और वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा और सांस के रोगियों की संख्या बढ़ गई है। उन्होंने सलाह दी की कि धूल व मिट्टी से बचाव के लिए चेहरे पर मास्क और कपड़ा लगाकर घर से बाहर निकलें। सुबह-शाम घर से बाहर नहीं निकलें।
भिवानी के सिविल अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हरजीत ने भी बताया कि वायु प्रदूषण और स्मॉग के कारण आंखों में जलन और संक्रमण की समस्या हो रही है। साथ ही खुजली के केस भी सामने आ रहे हैं। वायु प्रदूषण से बचाव के लिए चश्मा लगाएं। हर एक घंटे बाद आंखों को साफ पानी से धोएं।