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Gujarat Election: इस बार गुजरात में चुनावी मैदान से इसलिए कम हो गए 200 प्रत्याशी! क्या हैं इसके सियासी मायने?

Ashish Tiwari आशीष तिवारी
Updated Wed, 30 Nov 2022 04:59 PM IST
सार

Gujarat Election: राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों में पहले चरण के इन्हीं जिलों की 89 सीटों पर 977  प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। जबकि इस बार 19 जिलों की इतनी ही सीटों पर महज 788 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में गुजरात में 65 राजनीतिक दलों ने चुनावी मैदान में अपने प्रत्याशी उतारे थे...

Gujarat Election
Gujarat Election - फोटो : Agency (File Photo)

विस्तार

गुजरात में गुरुवार को पहले चरण का मतदान होगा। यह मतदान 2017 के चुनावों से कई मायनों में सबसे अलग है। सबसे अहम बात तो यह है कि इस बार होने वाले पहले चरण के विधानसभा के चुनावों में 2017 की तुलना में तकरीबन 200 प्रत्याशी चुनावी मैदान में कम हो चुके हैं। यानी कि जितने प्रत्याशी 2017 में चुनाव लड़े थे, उससे 200 प्रत्याशी कम इस बार चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इसके अलावा इस बार गुजरात में चले आंदोलनों का असर भी कम है। तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि इस बार गुजरात में दो सबसे प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के अलावा इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी मैदान में डटी हुई है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गुजरात की सत्ता का रास्ता सौराष्ट्र के राजनैतिक गलियारों से होकर ही गुजरता है। इसलिए सभी राजनीतिक दलों ने यहां पर ना सिर्फ जमकर मेहनत की है, बल्कि चुनावी लिहाज से जीत हासिल करने के लिए सियासत की बिसात पर सभी राजनीतिक मोहरे सजा दिए हैं।

महज 788 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में

राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों में पहले चरण के इन्हीं जिलों की 89 सीटों पर 977  प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। जबकि इस बार 19 जिलों की इतनी ही सीटों पर महज 788 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में गुजरात में 65 राजनीतिक दलों ने चुनावी मैदान में अपने प्रत्याशी उतारे थे। गुजरात में इस बार हो रहे विधानसभा चुनावों में 200 प्रत्याशियों की कम संख्या होने के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार ओम भाई राबरिया कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनावों में जिस तरीके से आंदोलनों की हवा चल रही थी और भाजपा का विरोध भी बहुत ज्यादा था। यही वजह थी कि ज्यादातर लोग भाजपा के विरोध में चुनावी मैदान में उतरे थे। हालांकि कांटे की टक्कर के बीच में भारतीय भाजपा सरकार में तो आई, लेकिन अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई थी।

इस बार सत्ता पक्ष का विरोध कम

ओम भाई कहते हैं कि इस बार 190 प्रत्याशियों का चुनावी मैदान में कम उतरना इस बात को दर्शाता है कि सत्ता पक्ष का विरोध उस कदर नहीं है, जितना कि 2017 के विधानसभा चुनावों में था। हालांकि उनका कहना है कि इस बार आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में मजबूत तरीके से शिरकत करने से कई जगहों पर चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है। सियासी जानकारों का मानना है कि प्रत्याशियों की कम संख्या यह जरूर बताती है कि इस बार करीब दो सौ प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि चुनावी संघर्ष नहीं हो रहा है। वरिष्ठ पत्रकार अनमोल दवे कहते हैं कि गुजरात में 2017 के हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। वह कहते हैं कि गुजरात में सत्ता का रास्ता सौराष्ट्र के गलियारों से होकर के ही गुजरता है। पहले चरण में होने वाले चुनावों में सौराष्ट्र कच्छ के साथ दक्षिण गुजरात की भी सीटें शामिल होती हैं। भाजपा को 2017 के चुनावों में दक्षिण गुजरात में मिली सफलता ने सत्ता तक तो पहुंचा दिया था, लेकिन सौराष्ट्र में कई जिले ऐसे थे, जहां भाजपा अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। पहले चरण की 89 सीटों पर भाजपा ने 48 सीटें जीती। इस बार इन 89 सीटों पर चुनावी समीकरण बहुत हद तक बदले हुए हैं।

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