सरकार ने भले ही कह दिया हो कि आरक्षण के लिए "आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों" (सवर्णों) के लिए वहीं मापदंड होंगे जो अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के लिए निर्धारित किए गए हैं, लेकिन सरकार के आदेश से नए कोटा श्रेणीवालों के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी किए गए विभागीय ज्ञापन में कहा गया है कि जिन परिवारों की "वार्षिक घरेलू आय" आठ लाख रुपए से कम हैं उन्हें आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईडब्ल्यूएस) माना जाएगा। ज्ञापन के मुताबिक "आय" का मतबल सभी स्रोतों से होने वाली आय होगी।
यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है जो मंडल कमिशन के बाद आरक्षण का लाभ मिलने वाली जातियों में "क्रीमी लेयर" की पहचान के लिए मापदंड तय किए गए थे। "क्रीमी लेयर" में उन लोगों को शामिल किया जाता है जिनकी "वार्षिक घरेलू आय" आठ लाख रुपये या ज्यादा है। इस आय में "वेतन या खेती से होने वाली आय" शामिल नहीं होती।
आरक्षण के लिए इन दो मापदंड के बीच का अंतर यह है कि कोटा के लिए जिन सवर्णों की पात्रता होगी, उन्हें आर्थिक रूप से काफी कमजोर होना पड़ेगा। क्योंकि उनके माता-पिता का वेतन और खेती से मिलने वाला पैसा भी आय में शामिल किया जाएगा।
इसके अलावा ईडब्ल्यूएस श्रेणी के परिवार आरक्षण के फायदे से अपने आप ही बाहर हो जाएंगे अगर उनके पास पांच एकड़ जमीन, 1000 स्क्वायर फीट का मकान या निगम में 100 स्क्वायर यार्ड का आवासीय प्लाट या फिर निगम के बाहर 200 स्क्वायर यार्ड की जमीन है।
आरक्षण के फायदे से बाहर कारण के इतने कड़े मापदंडों के कारण नई कोटा व्यवस्था में खासतौर पर निम्न मध्यम वर्गों में गैर- अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/पिछड़ी जातियों का एक विशाल हिस्सा छूट जाएगा।
हालांकि सामाजिक न्याय की वकालत करनेवालों का तर्क है कि सवर्णों के लिए "आय/संपत्ति के मानदंड" पिछड़ी जातियों के बराबर नहीं हो सकते। यह अंतर शायद इस तथ्य से पैदा हुआ है कि मंडल जातियों को कोटा आर्थिक के बजाय उनके सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ेपन की वजह से दिया जाता है।
आरक्षण में आर्थिक पहलू बाद में डाला गया ताकि पिछड़े वर्गों के जरूरतमंदों को कोटा का लाभ मिल सके नहीं तो वे "पिछड़ों के बीच अगड़ों" से पीछे रह जाएंगे।
सरकार ने भले ही कह दिया हो कि आरक्षण के लिए "आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों" (सवर्णों) के लिए वहीं मापदंड होंगे जो अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के लिए निर्धारित किए गए हैं, लेकिन सरकार के आदेश से नए कोटा श्रेणीवालों के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी किए गए विभागीय ज्ञापन में कहा गया है कि जिन परिवारों की "वार्षिक घरेलू आय" आठ लाख रुपए से कम हैं उन्हें आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईडब्ल्यूएस) माना जाएगा। ज्ञापन के मुताबिक "आय" का मतबल सभी स्रोतों से होने वाली आय होगी।
यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है जो मंडल कमिशन के बाद आरक्षण का लाभ मिलने वाली जातियों में "क्रीमी लेयर" की पहचान के लिए मापदंड तय किए गए थे। "क्रीमी लेयर" में उन लोगों को शामिल किया जाता है जिनकी "वार्षिक घरेलू आय" आठ लाख रुपये या ज्यादा है। इस आय में "वेतन या खेती से होने वाली आय" शामिल नहीं होती।
आरक्षण के लिए इन दो मापदंड के बीच का अंतर यह है कि कोटा के लिए जिन सवर्णों की पात्रता होगी, उन्हें आर्थिक रूप से काफी कमजोर होना पड़ेगा। क्योंकि उनके माता-पिता का वेतन और खेती से मिलने वाला पैसा भी आय में शामिल किया जाएगा।
इसके अलावा ईडब्ल्यूएस श्रेणी के परिवार आरक्षण के फायदे से अपने आप ही बाहर हो जाएंगे अगर उनके पास पांच एकड़ जमीन, 1000 स्क्वायर फीट का मकान या निगम में 100 स्क्वायर यार्ड का आवासीय प्लाट या फिर निगम के बाहर 200 स्क्वायर यार्ड की जमीन है।
आरक्षण के फायदे से बाहर कारण के इतने कड़े मापदंडों के कारण नई कोटा व्यवस्था में खासतौर पर निम्न मध्यम वर्गों में गैर- अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/पिछड़ी जातियों का एक विशाल हिस्सा छूट जाएगा।
हालांकि सामाजिक न्याय की वकालत करनेवालों का तर्क है कि सवर्णों के लिए "आय/संपत्ति के मानदंड" पिछड़ी जातियों के बराबर नहीं हो सकते। यह अंतर शायद इस तथ्य से पैदा हुआ है कि मंडल जातियों को कोटा आर्थिक के बजाय उनके सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ेपन की वजह से दिया जाता है।
आरक्षण में आर्थिक पहलू बाद में डाला गया ताकि पिछड़े वर्गों के जरूरतमंदों को कोटा का लाभ मिल सके नहीं तो वे "पिछड़ों के बीच अगड़ों" से पीछे रह जाएंगे।