पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में विरासत बनाम विकास की जंग देखने के लिए मिलेगी। पीएम नरेंद्र मोदी की साख और विपक्षी दलों के अस्तित्व का सवाल भी है। चूंकि ये चुनाव अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, कृषि कानूनों की वापसी, कोरोना महामारी की तीसरी लहर के बीच हो रहे हैं। ऐसे में नतीजे से इन मामलों का भी जनादेश तय होगा। फिर इन चुनावों में दमदार प्रदर्शन भाजपा की अगुवाई वाले राजग को उच्च सदन में बहुमत देगा, तो औसत प्रदर्शन राज्यसभा में उसकी स्थिति कमजोर करेगा।
चुनाव कांग्रेस सहित कई क्षेत्रीय दलों के लिए भी अग्निपरीक्षा साबित होंगे। सपा, बसपा, अकाली दल के लिए ‘करो या मरो’ का सवाल भी खड़ा हुआ है। इसके अलावा अपने प्रभाव वाले राज्यों से बाहर के राज्यों में टीएमसी, आप जैसे दलों का बेहतर प्रदर्शन राष्ट्रीय राजनीति में नए समीकरणों को जन्म देगा।
उत्तर प्रदेश : बिखरे विपक्ष से बहुकोणीय मुकाबला
भाजपा-सपा के बीच सीधी टक्कर के संकेत। बिखरे विपक्ष के कारण ज्यादातर सीटों पर बहुकोणीय मुकाबले की तस्वीर है, जो भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। राज्य में मुख्य विपक्षी दल सपा और बसपा बेहतर प्रदर्शन की स्थिति में भी करीब 30 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई है। जबकि बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को 50 फीसदी मत हासिल हुए थे। यह चुनाव योगी-मोदी की साख के साथ सपा, बसपा और कांग्रेस के अस्तित्व का सवाल है।
उत्तराखंड : आप ने दिलचस्प की सियासी जंग
हर चुनाव में अलग-अलग जनादेश देवभूमि का राजनीतिक चरित्र रहा है। यूं तो सूबे में हमेशा से भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई रही है, मगर इस बार आम आदमी पार्टी ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। इस बार के नतीजे तय करेंगे कि यह सूबा हर चुनाव में अपनी पसंद बदलने के चरित्र पर कायम रहता है या फिर पुरानी सरकार में ही आस्था व्यक्त करता है?
पंजाब : कांग्रेस में चरम पर अंतर्कलह
किसान आंदोलन ने राज्य के सियासी समीकरण उलट पुलट दिए हैं। भाजपा पहली बार अकाली दल के बगैर चुनाव मैदान में है। वहीं, कांग्रेस में अंतर्कलह चरम पर है। सिद्धू बनाम नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के बीच जंग जारी है, तो मनीष तिवारी, सुनील जाखड़ अलग राग अलाप रहे हैं। अकाली ने बसपा से समझौता किया है तो आम आदमी पार्टी एक बार फिर से पूरी मजबूती से चुनाव मैदान में डटी है।
गोवा : दलों की भीड़ में मतदाता की परीक्षा
दलों की भीड़ के कारण मतदाता उहापोह में हैं। भाजपा तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने की कोशिश में है, वहीं सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी सरकार बनाने में नाकाम कांग्रेस इस बार इस कमी को दूर करने की कोशिश में है। आप भी मैदान में है।
मणिपुर : अफ्स्पा से कैसे पार पाएगी भाजपा
पिछली बार बहुमत से महज तीन सीट दूर कांग्रेस भाजपा के दांव के आगे चित हो गई थी। भाजपा इस बार अपनी स्थिति बेहतर करना चाहती है। हालांकि इसकी राह में बाधा अफस्पा है। देखना होगा कि भाजपा इससे कैसे पार पाती है।
नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर
- भाजपा के बेहतर प्रदर्शन से ब्रांड मोदी होगा मजबूत। कृषि कानून, राम मंदिर, कोरोना का लिटमस टेस्ट।
- तय होगी राज्यसभा की भावी तस्वीर। इसी साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर पड़ेगा असर।
- आप, टीएमसी की मजबूती से बढ़ेंगी कांग्रेस की मुश्किलें। क्षेत्रीय दलों सपा, बसपा, अकाली दल का तय होगा भविष्य।
विस्तार
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में विरासत बनाम विकास की जंग देखने के लिए मिलेगी। पीएम नरेंद्र मोदी की साख और विपक्षी दलों के अस्तित्व का सवाल भी है। चूंकि ये चुनाव अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, कृषि कानूनों की वापसी, कोरोना महामारी की तीसरी लहर के बीच हो रहे हैं। ऐसे में नतीजे से इन मामलों का भी जनादेश तय होगा। फिर इन चुनावों में दमदार प्रदर्शन भाजपा की अगुवाई वाले राजग को उच्च सदन में बहुमत देगा, तो औसत प्रदर्शन राज्यसभा में उसकी स्थिति कमजोर करेगा।
चुनाव कांग्रेस सहित कई क्षेत्रीय दलों के लिए भी अग्निपरीक्षा साबित होंगे। सपा, बसपा, अकाली दल के लिए ‘करो या मरो’ का सवाल भी खड़ा हुआ है। इसके अलावा अपने प्रभाव वाले राज्यों से बाहर के राज्यों में टीएमसी, आप जैसे दलों का बेहतर प्रदर्शन राष्ट्रीय राजनीति में नए समीकरणों को जन्म देगा।
उत्तर प्रदेश : बिखरे विपक्ष से बहुकोणीय मुकाबला
भाजपा-सपा के बीच सीधी टक्कर के संकेत। बिखरे विपक्ष के कारण ज्यादातर सीटों पर बहुकोणीय मुकाबले की तस्वीर है, जो भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। राज्य में मुख्य विपक्षी दल सपा और बसपा बेहतर प्रदर्शन की स्थिति में भी करीब 30 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई है। जबकि बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को 50 फीसदी मत हासिल हुए थे। यह चुनाव योगी-मोदी की साख के साथ सपा, बसपा और कांग्रेस के अस्तित्व का सवाल है।