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Earthquake Risk in India, Check which parts of India are in top seismic zone
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Earthquake: भारत के इन हिस्सों में भूकंप से सर्वाधिक खतरा, कहीं आपका क्षेत्र भी डेंजर जोन में तो नहीं
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: संजीव कुमार झा
Updated Tue, 07 Feb 2023 06:46 PM IST
सार
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तुर्किये और सीरिया में आए महाविनाशकारी भूकंप के बीच एक सवाल जो मन में आता है वह यह है कि 'भारत भूकंप के प्रति कितना संवेदनशील है? आइए जानते हैं देश का कौन-कौन सा हिस्सा भूकंप के लिहाज से खतरनाक है।
तुर्किये और सीरिया में आए महाविनाशकारी भूकंप में अब तक पांच हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है जबकि 25 हजार से अधिक लोग घायल हैं। लोगों की मदद के लिए अन्य देशों से राहत सामग्री भेजी जा रही है। लेकिन इनसब के बीच एक सवाल जो मन में आता है वह यह है कि 'भारत भूकंप के प्रति कितना संवेदनशील है?' सरकार के अनुसार, भारत का लगभग 59 प्रतिशत भूभाग अलग-अलग तीव्रता के भूकंपों के प्रति संवेदनशील है। आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शहर और कस्बे जोन-5 में हैं और यहां सबसे ज्यादा तीव्रता वाले भूकंप का खतरा है। यहां तक कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भी जोन-4 में है, जो दूसरी सबसे ऊंची श्रेणी है।
जोन 5 सबसे अधिक खतरनाक
विज्ञान और प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री, जितेंद्र सिंह ने जुलाई 2021 में लोकसभा को सूचित किया था कि देश में भूकंपों के रिकॉर्ड किए गए इतिहास को देखते हुए, भारत की कुल भूमि का 59% हिस्सा अलग-अलग भूकंपों के लिए प्रवण है। उन्होंने कहा कि देश के भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र के अनुसार, कुल क्षेत्र को चार भूकंपीय क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया था। जोन 5 वह क्षेत्र है जहां सबसे तीव्र भूकंप आते हैं, जबकि सबसे कम तीव्र भूकंप जोन 2 में आते हैं। देश का लगभग 11% क्षेत्र जोन 5 में, 18% क्षेत्र जोन 4 में, 30% क्षेत्र जोन 3 में और शेष क्षेत्र जोन 2 में आता है।
इन राज्यों में भूकंप का सबसे अधिक खतरा
जोन 5 में शहरों और कस्बों वाले राज्य और केंद्रशासित प्रदेश गुजरात, हिमाचल प्रदेश, बिहार, असम, मणिपुर, नागालैंड, जम्मू और कश्मीर और अंडमान और निकोबार हैं। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी देश में और आसपास भूकंप की निगरानी के लिए नोडल सरकारी एजेंसी है। देश भर में, राष्ट्रीय भूकंपीय नेटवर्क है, जिसमें 115 वेधशालाएं हैं जो भूकंपीय गतिविधियों पर नज़र रखती हैं।
हिमालय में जोखिम
मध्य हिमालयी क्षेत्र दुनिया में सबसे भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है। 1905 में, हिमाचल का कांगड़ा एक बड़े भूकंप से प्रभावित हुआ था। 1934 में, बिहार-नेपाल भूकंप आया था, जिसकी तीव्रता 8.2 मापी गई थी और इसमें 10,000 लोग मारे गए थे। 1991 में, उत्तरकाशी में 6.8 तीव्रता के भूकंप में 800 से अधिक लोग मारे गए थे। 2005 में, कश्मीर में 7.6 तीव्रता के भूकंप के बाद इस क्षेत्र में 80,000 लोग मारे गए थे।
भूकंपविज्ञानी के मुताबिक 700 से अधिक वर्षों से इस क्षेत्र में विवर्तनिक तनाव रहा है जो अभी या 200 वर्षों के बाद जारी हो सकता है, जैसा कि 2016 में अध्ययनों से संकेत मिलता है। इसका मध्य हिमालय पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। यह भूकंप इंडो-ऑस्ट्रेलियाई और एशियाई टेक्टोनिक प्लेटों के बीच टक्कर है, जिन्होंने पिछले पांच करोड़ वर्षों में हिमालय के पहाड़ों का निर्माण किया है।
कैसे आता है भूकंप?
भूकंप के आने की मुख्य वजह धरती के अंदर प्लेटों का टकरना है। धरती के भीतर सात प्लेट्स होती हैं जो लगातार घूमती रहती हैं। जब ये प्लेटें किसी जगह पर आपस में टकराती हैं, तो वहां फॉल्ट लाइन जोन बन जाता है और सतह के कोने मुड़ जाते हैं। सतह के कोने मुड़ने की वजह से वहां दबाव बनता है और प्लेट्स टूटने लगती हैं। इन प्लेट्स के टूटने से अंदर की एनर्जी बाहर आने का रास्ता खोजती है, जिसकी वजह से धरती हिलती है और हम इसे भूकंप मानते हैं।
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भूकंप की तीव्रता क्या है?
रिक्टर स्केल पर 2.0 से कम तीव्रता वाले भूकंप को माइक्रो कैटेगरी में रखा जाता है और यह भूकंप महसूस नहीं किए जाते। रिक्टर स्केल पर माइक्रो कैटेगरी के 8,000 भूकंप दुनियाभर में रोजाना दर्ज किए जाते हैं। इसी तरह 2.0 से 2.9 तीव्रता वाले भूकंप को माइनर कैटेगरी में रखा जाता है। ऐसे 1,000 भूकंप प्रतिदिन आते हैं इसे भी सामान्य तौर पर हम महसूस नहीं करते। वेरी लाइट कैटेगरी के भूकंप 3.0 से 3.9 तीव्रता वाले होते हैं, जो एक साल में 49,000 बार दर्ज किए जाते हैं। इन्हें महसूस तो किया जाता है लेकिन शायद ही इनसे कोई नुकसान पहुंचता है।
लाइट कैटेगरी के भूकंप 4.0 से 4.9 तीव्रता वाले होते हैं जो पूरी दुनिया में एक साल में करीब 6,200 बार रिक्टर स्केल पर दर्ज किए जाते हैं। इन झटकों को महसूस किया जाता है और इनसे घर के सामान हिलते नजर आते हैं। हालांकि इनसे न के बराबर ही नुकसान होता है।
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