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जब ज्योतिषी ने अमृता से कहा कि आपका और इमरोज़ का रिश्ता सिर्फ़ ढाई घंटे का है
यह क़िस्सा पेंगुइन बुक्स से प्रकाशित किताब 'अमृता इमरोज़' में दर्ज है, इसकी लेखिका उमा त्रिलोक हैं। इमरोज़ के साथ रहने से पहले अमृता एक ज्योतिषी से मिलने गई थीं और उससे एक सीधा-सपाट सवाल कर दिया, "यह रिश्ता बनेगा या नहीं?" ज्योतिषी ने कुछ लाइनें खींची, कुछ हिसाब लगाया और बोला, "यह रिश्ता सिर्फ़ ढाई घंटे का है।" गुस्से में भरकर अमृता जी ने कहा था, "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।" ज्योतिषी ने फिर से हिसाब लगाया और अबकी बार बोला, "अगर ढाई घंटे का नहीं, तो फिर ढाई दिन या ढाई साल का हो सकता है।" "अगर यह ढाई का ही हिसाब-किताब है, तो फिर ढाई जन्म का क्यों नहीं हो सकता?" अमृता ने तपाक से कहा। "मेरा आधा जीवन ख़त्म हो गया है और दो जन्म अभी बाक़ी हैं।" ऐसा आवेश, मानसिक बल और तर्क़ शायद ज्योतिषी ने पहले कभी नहीं देखा होगा। वे ज्योतिषी के कमरे से बहुत खिन्न मन से बाहर निकलीं और सोचने लगीं कि वे शायद एक दीवानगी की राह से गुज़र रही हैं। अब वे ईडन गार्डन से निकलकर कांटेदार झाड़ियों में प्रवेश कर रही हैं। अमृता जी को लोगों ने बहुत समझाया कि वे जिस व्यक्ति के साथ रहना चाहें, रहें लेकिन दुनिया से नाता न तोड़ें। कौन बताता उन लोगों कि उन्हें दुनिया की क्या परवाह! उन्हें दुनिया की नहीं, बल्कि अपने रांझे को मनाना था। मैं सोच रही थी कि क्या अमृता जी को आज भी ज्योतिषी से कही अपनी बात याद आती होगी कि यह रिश्ता ढाई जन्म का है। क्या यही आत्मबल होता है जिससे ऋषि-मुनि कायनात को भी अपने सामने झुका लेते थे, अपनी मर्ज़ी के अनुसार मोड़ लेते थे? निश्चय ही उनका रिश्ता केवल इस जन्म का नहीं है, इसका संबंध पिछले जन्मों से है।
यह क़िस्सा पेंगुइन बुक्स से प्रकाशित किताब 'अमृता इमरोज़' में दर्ज है, इसकी लेखिका उमा त्रिलोक हैं। इमरोज़ के साथ रहने से पहले अमृता एक ज्योतिषी से मिलने गई थीं और उससे एक सीधा-सपाट सवाल कर दिया, "यह रिश्ता बनेगा या नहीं?" ज्योतिषी ने कुछ लाइनें खींची, कुछ हिसाब लगाया और बोला, "यह रिश्ता सिर्फ़ ढाई घंटे का है।" गुस्से में भरकर अमृता जी ने कहा था, "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।" ज्योतिषी ने फिर से हिसाब लगाया और अबकी बार बोला, "अगर ढाई घंटे का नहीं, तो फिर ढाई दिन या ढाई साल का हो सकता है।" "अगर यह ढाई का ही हिसाब-किताब है, तो फिर ढाई जन्म का क्यों नहीं हो सकता?" अमृता ने तपाक से कहा। "मेरा आधा जीवन ख़त्म हो गया है और दो जन्म अभी बाक़ी हैं।" ऐसा आवेश, मानसिक बल और तर्क़ शायद ज्योतिषी ने पहले कभी नहीं देखा होगा। वे ज्योतिषी के कमरे से बहुत खिन्न मन से बाहर निकलीं और सोचने लगीं कि वे शायद एक दीवानगी की राह से गुज़र रही हैं। अब वे ईडन गार्डन से निकलकर कांटेदार झाड़ियों में प्रवेश कर रही हैं। अमृता जी को लोगों ने बहुत समझाया कि वे जिस व्यक्ति के साथ रहना चाहें, रहें लेकिन दुनिया से नाता न तोड़ें। कौन बताता उन लोगों कि उन्हें दुनिया की क्या परवाह! उन्हें दुनिया की नहीं, बल्कि अपने रांझे को मनाना था। मैं सोच रही थी कि क्या अमृता जी को आज भी ज्योतिषी से कही अपनी बात याद आती होगी कि यह रिश्ता ढाई जन्म का है। क्या यही आत्मबल होता है जिससे ऋषि-मुनि कायनात को भी अपने सामने झुका लेते थे, अपनी मर्ज़ी के अनुसार मोड़ लेते थे? निश्चय ही उनका रिश्ता केवल इस जन्म का नहीं है, इसका संबंध पिछले जन्मों से है।
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