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bhanupratappur by-election: importance of margin more than loss-win for bjp-cong
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भानुप्रतापपुर उपचुनाव: भाजपा-कांग्रेस के लिए 'लिटमस टेस्ट', हार-जीत से ज्यादा मार्जिन के मायने
रवि भोई
Published by: मोहनीश श्रीवास्तव
Updated Tue, 22 Nov 2022 12:56 PM IST
सार
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कांग्रेस भानुप्रतापपुर उपचुनाव में 2014 के अंतागढ़ उपचुनाव का बदला भाजपा से लेना चाहती थी, लेकिन उसका दांव चल नहीं पाया। कांग्रेस नेता अनाचार आरोप को अस्त्र बनाकर भाजपा प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम का नामांकन रद्द करवाना चाहते थे, पर ऐसा हो नहीं सका। 2014 के अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी मंतूराम पवार ने नामांकन से एक दिन पहले चुनाव मैदान से बाहर होकर भाजपा को वाकओवर दे दिया था।
छत्तीसगढ़ में कांकेर के भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में हार-जीत से ज्यादा मार्जिन का मायने होगा। लीड से 2023 के विधानसभा चुनाव का संकेत मिल जाएगा। कहा जाता है कि, जिस पार्टी ने बस्तर जीता, प्रदेश में उसकी ही सरकार बनती है। कांग्रेस और भाजपा इस उपचुनाव को सेमीफाइनल मानकर रण में हैं, तो सर्व आदिवासी समाज राज्य में आदिवासियों की ताकत का अहसास करना चाहता है। चुनाव में वे भी ताल ठोंक रहा है, पर मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही होने के आसार हैं।
अब तक उपचुनाव में कांग्रेस को ही मिली है जीत
छत्तीसगढ़ में अगले साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव को कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। अब तक के विधानसभा उपचुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस लगातार जीत दर्ज करते आ रही है। भानुप्रतापपुर कांग्रेस की ही सीट थी । पिछले महीने विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी के अचानक निधन से रिक्त सीट पर कांग्रेस ने उनकी पत्नी सावित्री मंडावी को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस यहां सहानुभूति की लहर पर सवार है।
जोगी कांग्रेस-शिवसेना का कांग्रेस को समर्थन
स्व. मनोज मंडावी से संबंधों के चलते जोगी कांग्रेस ने कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है और कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन दिया है। शिव सेना भी कांग्रेस प्रत्याशी के साथ है। एक ही साल कार्यकाल होने के कारण आम आदमी पार्टी ने उम्मीदवार नहीं उतारा है, पर सर्व आदिवासी समाज ने आदिवासी अस्मिता के नाम पर प्रत्याशी खड़ा कर मुकाबले को रोचक तो बना दिया है। सर्व आदिवासी समाज से जुड़े आदिवासी लोगों ने समाज के ही प्रत्याशी को वोट देने की शपथ ली है।
भाजपा के लिए भानुप्रतापपुर चुनौती
आदिवासी आरक्षण को छोड़कर यहां बड़ा मुद्दा नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में भाजपा के लिए भानुप्रतापपुर चुनौतियों भरा दिख रहा है। भाजपा ने चुनावी मैनेजमेंट में माहिर माने जाने वाले नेता बृजमोहन अग्रवाल को चुनाव प्रभारी बनाया है। बृजमोहन अग्रवाल का मैनेजमेंट और मेहनत आठ दिसंबर को पता चलेगी। कांग्रेस ने अप्रैल 2022 में खैरागढ़ उपचुनाव जीतने के लिए जिले का दांव चला था। कयास लगाया जा रहा है कि कांग्रेस भानुप्रतापपुर या अंतागढ़ को जिला बनाने का पांसा फेंक सकती है। कांकेर का विभाजन कर भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की मांग लगातार उठ भी रही है।
चाल और चरित्र का मुद्दा गर्म
भाजपा ने यहां पर कांग्रेस के सहयोगी संगठन भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ( एनएसयूआई ) के एक पदाधिकारी का छात्रा से अनाचार के मामले में गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर माहौल गर्म किया हुआ है। कांग्रेस ने इस पदाधिकारी को यहां चुनाव में जिम्मेदारी भी सौंपी थी। गिरफ्तारी के बाद उस पदाधिकारी को संगठन से बाहर कर दिया गया, पर इस बहाने भाजपा को कांग्रेस पर हमला बोलने का अवसर मिल गया। इसका जवाब देने के लिए कांग्रेस ने भाजपा प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम पर कथित तौर पर झारखंड में अनाचार के एक मामले को आधार बनाकर नामांकन रद्द करने का जोर लगाया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।
सर्व आदिवासी समाज से प्रमोटी आईपीएस उम्मीदवार
सर्व आदिवासी समाज भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में हल्ला-गुल्ला खूब कर रहा है, लेकिन यहां उसका परचम फहर पाएगा, ऐसा माहौल नजर नहीं आ रहा है। सर्व आदिवासी समाज ने प्रमोटी आईपीएस अफसर अकबर राम कोर्राम को अपना उम्मीदवार बनाया है। अफसरी करने के बाद चुनावी अखाड़े में कूदे अकबर राम कोर्राम की ताकत समाज ही है। जनता सर्व आदिवासी समाज को कितना महत्व देती है और राज्य में आदिवासी आरक्षण 32 फीसदी से घटाकर 20 फीसदी करने के छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले से कितनी नाराज से वोट प्रतिशत से झलकेगा।
आरक्षण पर सरकार बीच का रास्ता निकालने की कोशिश में
भानुप्रतापुर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है। वैसे भूपेश सरकार ने आदिवासियों को साधने के लिए आरक्षण मुद्दे पर एक और दो दिसंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है। भानुप्रतापपुर में पांच दिसंबर को वोटिंग है। साफ है कि सरकार आदिवासियों के लिए बीच का रास्ता निकालेगी, लेकिन भानुप्रतापुर उपचुनाव के नतीजे के कई मायने होंगे। इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के साथ सर्व आदिवासी समाज की भी प्रतिष्ठा दांव पर है। आरक्षण के मुद्दे पर सर्व आदिवासी समाज एकजुट दिखा। चुनाव में वह कितनी ताकत दिखाता है, उसके लिए आठ दिसंबर तक इंतजार करना होगा।
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