वित्त वर्ष 2021-22 के लिए आम बजट एक फरवरी 2021 को पेश होगा। इस साल पेश होने वाला बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यकाल का तीसरा बजट होगा। कोरोना महामारी और उसके बाद आर्थिक संकट के कारण यह बजट बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। दरअसल, कोरोना काल में छात्रों, अभिभावकों सहित शिक्षकों पर भी बड़ा असर हुआ है। इन दिनों ऑनलाइन पढ़ने पढ़ाने का चलन आ गया है। ऐसे में लोगों को उम्मीद है कि इस बजट में मोदी सरकार शिक्षा के क्षेत्र में वित्तीय कदम उठा सकती है।
विशषज्ञों का कहना है कि आने वाले बजट में डिजिटल और पारंपरिक शिक्षा दोनों को बढ़ावा मिलना चाहिए। इसके साथ एक और महत्वपूर्ण पहलू जिसे केंद्रीय बजट 2021 में देखा जा रहा है, वो है निजी क्षेत्र की संस्थाओं को दी जा सकने वाली वित्तीय सहायता, जिसमें कम लागत और शून्य-लागत कर्ज शामिल है।
शिक्षकों के लिए रिलीफ फंड
रिपोर्ट्स की मानें तो लगभग 50 फीसदी से ज्यादा निजी स्कूलों ने फीस नहीं ली है। जिससे उनके सालाना रेवेन्यू पर भारी असर पड़ा है। बता दें कि स्कूलों की फीस उनके रेवेन्यू का 13 से 80 फीसदी हिस्सा होता है। ऐसे में अगर यह स्थिति आगे भी जारी रहती है, तो शिक्षकों की सैलरी से लेकर छात्रों की पढ़ाई के लिए तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर का अपग्रेडेशन बहुत प्रभावित होगा। इसलिए सरकार को राहत कोष स्थापित करने के लिए बजट में आवंटन के बारे में सोचना चाहिए। जिससे कोविड-19 में मुश्किलों को झेलने वाले अफोर्डेबल प्राइवेट स्कूलों को आसान क्रेडिट या सैलरी फंड उपलब्ध हो सके।
स्कूलों को मिले फ्री डाटा
इसके अलावा हाइब्रिड लर्निंग, जिसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई दोनों शामिल हैं, वह आगे भी रहने वाली है। सरकार को प्रत्येक सरकारी और निजी स्कूल में डेटा कनेक्शन उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे स्कूलों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से आगे चलकर छात्रों की पढ़ाई का नुकसान नहीं हो।
ऐसा था 2020 शिक्षा बजट
बीते वर्ष बजट में शिक्षा के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई घोषणाएं की थी। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र के लिए 99,300 करोड़ रुपये और कौशल विकास के लिए 3,000 करोड़ रुपये आवंटित करने का ऐलान किया। इसके अलावा नई शिक्षा नीति, नैशनल पुलिस यूनिवर्सिटी, डिग्री लेवल ऑनलाइन स्कीम, नैशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी और मेडिकल कॉलेजों के निर्माण को लेकर भी उन्होंने घोषणा की।
विशेषज्ञों की राय
हमें उम्मीद है कि बजट 2021 शिक्षा क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाएगा। नई शिक्षा नीति (एनईपी-2020) से हमारे देष की उच्च शिक्षा प्रणाली में बड़ा बदलाव आया है और इससे लर्निंग प्रक्रिया पर सकारात्मक असर दिखा है, वैचारिक समझ और मिश्रित लर्निंग को बढ़ावा मिला है। आगामी बजट में भी वर्चुअल रियलिटी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिए जाने के साथ-साथ शोध एवं विकास पर भी जोर दिया जाना चाहिए। इसके साथ साथ, बजट 2021 से हमें जिस अन्य प्रमुख बदलाव की उम्मीद है, वह है वित्तीय सहायता। यह सहायता निजी क्षेत्र के संस्थानों को मुहैया कराई जा सकती है जिनमें लो-कोस्ट और जीरो-कोस्ट ऋण शामिल हैं, जैसा कि कई देशों में किया जा रहा है। हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि 'नेशनल हाउसिंग बैंक' के तरह के कंसेप्ट के तौर पर 'नैशनल एजुकेशन बैंक' पर विचार किया जाए, क्योंकि इस तरह के शैक्षिक ऋण न्यूनतम संभावित दर पर मुहैया कराए जा सकेंगे।
- जेके बिजनेस स्कूल के निदेशक संजीव मारवाह
'साल 2020 में कई उद्योग महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, शिक्षा क्षेत्र भी उनमें से एक है। महामारी ने प्राथमिक के साथ-साथ उच्च शिक्षा के स्तंभों को हिला दिया है, विशेष रूप से उन लोगों को नुकसान हुआ जिनके पास डिजिटल पहुंच की कमी है। महामारी ने एक बार फिर इस देश में मौजूद डिजिटल विभाजन को रेखांकित किया है। ग्रामीण इलाकों में सरकार द्वारा संचालित बहुत सारे स्कूल बुरी तरह प्रभावित हुए। सरकारी स्कूलों में 80 से 90 फीसदी भारतीय छात्र पढ़ते हैं और ये बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इसलिए, इस आगामी बजट में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, जो है देशभर में डिजिटल बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए धन का आवंटन। विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, ताकि ग्रामीण और शहरी के बीच अंतर को पाटने में मदद मिले है। सरकार को स्थिति का मूल्यांकन करना चाहिए और लंबे समय तक परिसंपत्तियों पर खर्च करना चाहिए, जिसमें स्मार्ट क्लासरूम, इंटरनेट कनेक्शन शामिल हैं। शिक्षकों को भी बदलती शिक्षाशास्त्र के अनुकूल होने और अपनी शिक्षण विधियों के पुनर्गठन की आवश्यकता है। केंद्रीय बजट 2021 में एनईपी कार्यान्वयन योजना पर दिशानिर्देश देना चाहिए। एनईपी का एक मुख्य आकर्षण तकनीकी संस्थानों को बहु-विषयक बनाना और उच्च शिक्षा को और अधिक लचीला बनाना था, जिसमें बुनियादी ढांचे के विकास, कक्षाओं की संख्या, शिक्षकों की संख्या, नए परिसरों, विदेशी संकायों में लाने और बहुत कुछ करने की आवश्यकता होगी। भारत में शिक्षा पर वर्तमान सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4.4 फीसदी है, जो छह से सात फीसदी होना चाहिए।'
- प्रोफेसर महेदो जैसवाल, निदेशक, संबलपुर
ऑनलाइन शिक्षा और ऑनलाइन परीक्षा के लिए स्कूल और कॉलेजों को फंड्स की जरूरत होती है और इसके साथ जीएसटी की उच्च दर इसे और महंगा बनाती है, जिससे इसकी पहुंच केवल कुलीन वर्ग तक ही सीमित है। हर बच्चा मोबाइल और लैपटॉप नही खरीद सकता और ऐसे महामारी के समय में तो सभी लोगो कि आर्थिक स्थिति में गिरावट आई है। इसलिए, सरकार को इस महामारी को ध्यान में रखते हुए, ऑनलाइन परीक्षा और शिक्षा के लिए 2021 के केंद्रीय बजट में जीएसटी की मौजूदा दर को 18 फीसदी से घटाकर पांच फीसदी करना चाहिए। यह कदम न केवल कम कीमत पर ऑनलाइन शिक्षा और ऑनलाइन परीक्षा प्रणालियों तक पहुंच को सक्षम करेगा बल्कि एड-टेक कंपनियों को भी एक अच्छा विकल्प प्रदान करेगा।
- श्री मनीष मोहता, एमडी, लर्निंग स्पाइरल
भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के सामने, अभी की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हमारे देश में कुशल चिकित्सा कर्मचारियों की कमी है। हमारे देश को अधिक से अधिक एमबीबीएस, एमएस और एमडी मेडिकल पोस्ट-ग्रेजुएट और नई तकनीकियों से संपूर्ण अस्पतालों और कॉलेजों की आवश्यकता है। सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा शिक्षा के लिए फंड्स आवंटित करना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में योग्य डॉक्टरों और बेहतर उपकरणों के साथ स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार किया जाना चाहिए। डॉक्टरों और उनके पैरामेडिकल स्टाफ को प्रोत्साहन करने के लिए अलग से फंड्स भी प्रदान किए जाने चाहिए। सरकार द्वारा, बच्चों के लिए स्वास्थ्य योजनाए शुरू की जानी चाहिए जो विशेष रूप से पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। मौजूदा सरकारी कॉलेजों में नए पाठ्यक्रम भी डाले जाने चाहिए। एक ऐसे सिस्टम की जरूरत है जहां हम अपनी चिकित्सक कार्यबलता को सुधार सकें, ऐसे कयी क्षेत्र हैं जहां ऐसे सिस्टम की जरूरत है। इस मुकाम को हासिल करने के लिए सरकार और सरकारी योजनाओ में बहुत सुधारों की जरूरत है।
- श्री गौरव त्यागी, संस्थापक, करियर विशेषज्ञ
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए आम बजट एक फरवरी 2021 को पेश होगा। इस साल पेश होने वाला बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यकाल का तीसरा बजट होगा। कोरोना महामारी और उसके बाद आर्थिक संकट के कारण यह बजट बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। दरअसल, कोरोना काल में छात्रों, अभिभावकों सहित शिक्षकों पर भी बड़ा असर हुआ है। इन दिनों ऑनलाइन पढ़ने पढ़ाने का चलन आ गया है। ऐसे में लोगों को उम्मीद है कि इस बजट में मोदी सरकार शिक्षा के क्षेत्र में वित्तीय कदम उठा सकती है।
विशषज्ञों का कहना है कि आने वाले बजट में डिजिटल और पारंपरिक शिक्षा दोनों को बढ़ावा मिलना चाहिए। इसके साथ एक और महत्वपूर्ण पहलू जिसे केंद्रीय बजट 2021 में देखा जा रहा है, वो है निजी क्षेत्र की संस्थाओं को दी जा सकने वाली वित्तीय सहायता, जिसमें कम लागत और शून्य-लागत कर्ज शामिल है।
शिक्षकों के लिए रिलीफ फंड
रिपोर्ट्स की मानें तो लगभग 50 फीसदी से ज्यादा निजी स्कूलों ने फीस नहीं ली है। जिससे उनके सालाना रेवेन्यू पर भारी असर पड़ा है। बता दें कि स्कूलों की फीस उनके रेवेन्यू का 13 से 80 फीसदी हिस्सा होता है। ऐसे में अगर यह स्थिति आगे भी जारी रहती है, तो शिक्षकों की सैलरी से लेकर छात्रों की पढ़ाई के लिए तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर का अपग्रेडेशन बहुत प्रभावित होगा। इसलिए सरकार को राहत कोष स्थापित करने के लिए बजट में आवंटन के बारे में सोचना चाहिए। जिससे कोविड-19 में मुश्किलों को झेलने वाले अफोर्डेबल प्राइवेट स्कूलों को आसान क्रेडिट या सैलरी फंड उपलब्ध हो सके।
स्कूलों को मिले फ्री डाटा
इसके अलावा हाइब्रिड लर्निंग, जिसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई दोनों शामिल हैं, वह आगे भी रहने वाली है। सरकार को प्रत्येक सरकारी और निजी स्कूल में डेटा कनेक्शन उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे स्कूलों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से आगे चलकर छात्रों की पढ़ाई का नुकसान नहीं हो।
ऐसा था 2020 शिक्षा बजट
बीते वर्ष बजट में शिक्षा के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई घोषणाएं की थी। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र के लिए 99,300 करोड़ रुपये और कौशल विकास के लिए 3,000 करोड़ रुपये आवंटित करने का ऐलान किया। इसके अलावा नई शिक्षा नीति, नैशनल पुलिस यूनिवर्सिटी, डिग्री लेवल ऑनलाइन स्कीम, नैशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी और मेडिकल कॉलेजों के निर्माण को लेकर भी उन्होंने घोषणा की।
विशेषज्ञों की राय
हमें उम्मीद है कि बजट 2021 शिक्षा क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाएगा। नई शिक्षा नीति (एनईपी-2020) से हमारे देष की उच्च शिक्षा प्रणाली में बड़ा बदलाव आया है और इससे लर्निंग प्रक्रिया पर सकारात्मक असर दिखा है, वैचारिक समझ और मिश्रित लर्निंग को बढ़ावा मिला है। आगामी बजट में भी वर्चुअल रियलिटी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिए जाने के साथ-साथ शोध एवं विकास पर भी जोर दिया जाना चाहिए। इसके साथ साथ, बजट 2021 से हमें जिस अन्य प्रमुख बदलाव की उम्मीद है, वह है वित्तीय सहायता। यह सहायता निजी क्षेत्र के संस्थानों को मुहैया कराई जा सकती है जिनमें लो-कोस्ट और जीरो-कोस्ट ऋण शामिल हैं, जैसा कि कई देशों में किया जा रहा है। हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि 'नेशनल हाउसिंग बैंक' के तरह के कंसेप्ट के तौर पर 'नैशनल एजुकेशन बैंक' पर विचार किया जाए, क्योंकि इस तरह के शैक्षिक ऋण न्यूनतम संभावित दर पर मुहैया कराए जा सकेंगे।
- जेके बिजनेस स्कूल के निदेशक संजीव मारवाह
'साल 2020 में कई उद्योग महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, शिक्षा क्षेत्र भी उनमें से एक है। महामारी ने प्राथमिक के साथ-साथ उच्च शिक्षा के स्तंभों को हिला दिया है, विशेष रूप से उन लोगों को नुकसान हुआ जिनके पास डिजिटल पहुंच की कमी है। महामारी ने एक बार फिर इस देश में मौजूद डिजिटल विभाजन को रेखांकित किया है। ग्रामीण इलाकों में सरकार द्वारा संचालित बहुत सारे स्कूल बुरी तरह प्रभावित हुए। सरकारी स्कूलों में 80 से 90 फीसदी भारतीय छात्र पढ़ते हैं और ये बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इसलिए, इस आगामी बजट में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, जो है देशभर में डिजिटल बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए धन का आवंटन। विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, ताकि ग्रामीण और शहरी के बीच अंतर को पाटने में मदद मिले है। सरकार को स्थिति का मूल्यांकन करना चाहिए और लंबे समय तक परिसंपत्तियों पर खर्च करना चाहिए, जिसमें स्मार्ट क्लासरूम, इंटरनेट कनेक्शन शामिल हैं। शिक्षकों को भी बदलती शिक्षाशास्त्र के अनुकूल होने और अपनी शिक्षण विधियों के पुनर्गठन की आवश्यकता है। केंद्रीय बजट 2021 में एनईपी कार्यान्वयन योजना पर दिशानिर्देश देना चाहिए। एनईपी का एक मुख्य आकर्षण तकनीकी संस्थानों को बहु-विषयक बनाना और उच्च शिक्षा को और अधिक लचीला बनाना था, जिसमें बुनियादी ढांचे के विकास, कक्षाओं की संख्या, शिक्षकों की संख्या, नए परिसरों, विदेशी संकायों में लाने और बहुत कुछ करने की आवश्यकता होगी। भारत में शिक्षा पर वर्तमान सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4.4 फीसदी है, जो छह से सात फीसदी होना चाहिए।'
- प्रोफेसर महेदो जैसवाल, निदेशक, संबलपुर
ऑनलाइन शिक्षा और ऑनलाइन परीक्षा के लिए स्कूल और कॉलेजों को फंड्स की जरूरत होती है और इसके साथ जीएसटी की उच्च दर इसे और महंगा बनाती है, जिससे इसकी पहुंच केवल कुलीन वर्ग तक ही सीमित है। हर बच्चा मोबाइल और लैपटॉप नही खरीद सकता और ऐसे महामारी के समय में तो सभी लोगो कि आर्थिक स्थिति में गिरावट आई है। इसलिए, सरकार को इस महामारी को ध्यान में रखते हुए, ऑनलाइन परीक्षा और शिक्षा के लिए 2021 के केंद्रीय बजट में जीएसटी की मौजूदा दर को 18 फीसदी से घटाकर पांच फीसदी करना चाहिए। यह कदम न केवल कम कीमत पर ऑनलाइन शिक्षा और ऑनलाइन परीक्षा प्रणालियों तक पहुंच को सक्षम करेगा बल्कि एड-टेक कंपनियों को भी एक अच्छा विकल्प प्रदान करेगा।
- श्री मनीष मोहता, एमडी, लर्निंग स्पाइरल
भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के सामने, अभी की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हमारे देश में कुशल चिकित्सा कर्मचारियों की कमी है। हमारे देश को अधिक से अधिक एमबीबीएस, एमएस और एमडी मेडिकल पोस्ट-ग्रेजुएट और नई तकनीकियों से संपूर्ण अस्पतालों और कॉलेजों की आवश्यकता है। सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा शिक्षा के लिए फंड्स आवंटित करना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में योग्य डॉक्टरों और बेहतर उपकरणों के साथ स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार किया जाना चाहिए। डॉक्टरों और उनके पैरामेडिकल स्टाफ को प्रोत्साहन करने के लिए अलग से फंड्स भी प्रदान किए जाने चाहिए। सरकार द्वारा, बच्चों के लिए स्वास्थ्य योजनाए शुरू की जानी चाहिए जो विशेष रूप से पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। मौजूदा सरकारी कॉलेजों में नए पाठ्यक्रम भी डाले जाने चाहिए। एक ऐसे सिस्टम की जरूरत है जहां हम अपनी चिकित्सक कार्यबलता को सुधार सकें, ऐसे कयी क्षेत्र हैं जहां ऐसे सिस्टम की जरूरत है। इस मुकाम को हासिल करने के लिए सरकार और सरकारी योजनाओ में बहुत सुधारों की जरूरत है।
- श्री गौरव त्यागी, संस्थापक, करियर विशेषज्ञ