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Adani Row: चक्रव्यूह में घिर चुके गौतम अदाणी ढूंढ पाएंगे बाहर निकलने का रास्ता?

Shashidhar Pathak शशिधर पाठक
Updated Fri, 03 Feb 2023 08:08 PM IST
सार

Adani Row: सूत्र का कहना है कि गौतम अदाणी समूह ने 112 फीसदी तक सब्सक्राइब हो चुके एफपीओ को कुछ घंटे बाद ही वापस लेने का निर्णय केवल साख बचाने के लिए ही किया है। समूह द्वारा लिखे गए पत्र में भी कहा गया है कि उसे पैसे से ज्यादा निवेशकों के हित और उनके भरोसे की जरूरत है...

Adani Row: will Gautam Adani will be able to find a way out from controversy
Adani Row: गौतम अदाणी - फोटो : ANI (File Photo)

विस्तार

एक फरवरी को देश के टॉप उद्योगपति की सूची में शुमार हो चुके गौतम अदाणी समूह ने 20000 करोड़ रुपये का एफपीओ वापस लेने का फैसला बेशक कर लिया, लेकिन इसके साथ 02 फरवरी से समूह के लिए अग्निपरीक्षा का दौर भी शुरू हो गया है। भारत सरकार के एक पूर्व वित्त सचिव कहते हैं कि यह झटका छोटा नहीं है। नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, एफपीओ वापस लेने का फैसला अदाणी की कुशल रणनीति का हिस्सा माना जाना जाएगा, लेकिन समूह के लिए मौजूदा चक्रव्यू से निकलना आसान नहीं है।

सूत्र का कहना है कि गौतम अदाणी समूह ने 112 फीसदी तक सब्सक्राइब हो चुके एफपीओ को कुछ घंटे बाद ही वापस लेने का निर्णय केवल साख बचाने के लिए ही किया है। समूह द्वारा लिखे गए पत्र में भी कहा गया है कि उसे पैसे से ज्यादा निवेशकों के हित और उनके भरोसे की जरूरत है।

क्यों लेना पड़ा गौतम अदाणी को चौंकाने वाला फैसला?

हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद हर जिन अदाणी समूह के लिए मुसीबत भरे रहे। हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में अदाणी समूह पर 218 अरब डालर के स्टाक मैनिपुलेशन और बहीखाता में धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। तरुण बजाज कहते हैं कि अदाणी समूह ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को खारिज करने के लिए 413 पेज में जो तर्क दिए, वह शेयर बाजार में क्रैश को नहीं रोक पाए। अदाणी इंटरप्राइजेज का शेयर 01 फरवरी को महज सात दिन के भीतर 1400 रुपये नीचे आ गया था। 25 फरवरी को यह 34 रुपये पर ट्रेंड कर रहा था। इस तरह से अदाणी समूह ने इन दिनों में 5.5 लाख करोड़ रुपये मार्केट कैप से गवां दिए। 30-35 फीसदी तक की गिरावट कोई छोटा झटका नहीं है। दूसरे क्रेडिट सुईस ने भी अदाणी ग्रुप के बांड्स को मार्जिन लोन देने पर रोक लगा दी है। शेयर बाजार पर नजर रखने वाले संजय अग्रवाल कहते हैं कि यह एक चौकाने वाली घटना है। दूसरे अदाणी समूह के जो शेयर सब्सक्राइब हुए हैं, उसमें घरेलू और खुदरा निवेशकों ने कोई अच्छी रूचि नहीं दिखाई। इसलिए यहां भी कई तरह के झोल हैं। केंद्र सरकार के एक पूर्व आईआरएस कैडर के अधिकारी का कहना है कि अदाणी समूह एक बड़े अभियान में लगा था। लेकिन आंख में धूल झोंकने की यह कोशिश सफल नहीं हो पाई। अब देखना होगा कि बाजार इसे किस तरह से लेता है। वह कहते हैं कि अगर अदाणी समूह के शेयरों में गिरावट जारी रही तो आने वाला समय बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है।

सरकार ने साध रखी है चुप्पी

गौतम अदाणी समूह को लेकर मची हलचल पर सरकार कोई भी प्रतिक्रिया देने से बच रही है। केंद्र सरकार के आर्थिक सलाहकार भी इस मुद्दे पर मौन हैं। आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ का कहना है कि सरकार किसी निजी कंपनी से संबंधित मुद्दों पर प्रतिक्रिया नहीं देते। अर्थात वह कुछ नहीं कहना चाहते। वाणिज्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि अदाणी समूह अपना वक्तव्य जारी कर रहा है। इस संबंध में वही लोग जवाब दे सकते हैं। हालांकि संसद में बजट पेश होने के बाद परिसर में लोक सभा और राज्य सभा के तमाम सांसद इस मुद्दे पर चटखारे ले रहे थे। एक पूर्व केंद्रीय मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पानी का बुलबुला कभी न कभी फूटता है। उन्होंने कहा कि इसके बारे में आपको सरकार से पूछना चाहिए।

पहले कौन जानता था गौतम अदाणी कोई बड़ा नाम है?

गौतम अदाणी 60 साल की उम्र के उद्योगपति हैं। पिछले दिनों उन्होंने देश के नंबर एक उद्योगपति मुकेश अंबानी को पछाड़कर सबसे बड़े अरबपति का ताज पहन लिया था। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद वह एक बार फिर खिसककर काफी नीचे चले गए हैं। अदाणी समूह कोयला, व्यापार, कोयला खनन, तेल एवं गैस, गैस की खोज, बंदरगाह, मल्टी मॉडल लाजिस्टिक, बिजली उत्पादन एवं वितरण, गैस वितरण, डिफेंस, एयरोस्पेस, मीडिया तथा अन्य क्षेत्र में कारोबार करता है। बंदरगाह के विकास, संचालन में दुनिया में समूह ने अपनी एक साख बनाई है। गौतम अदाणी उद्योग जगत में 33 साल का अनुभव रखते हैं और पहली पीढ़ी के उद्योगपति हैं।

जैन धर्म के अनुयायी अदाणी ने 16 साल की उम्र से जीवन की आर्थिक यात्रा शुरू की। कहा जाता है कि 1978 में हीरे के कारोबार में हाथ अजमाने के लिए मुंबई आ गए थे। लेकिन कुछ खास सफलता न मिलने पर 1981 में वापस अहमदाबाद चले गए। भाई की प्लास्टिक की फैक्ट्री में हाथ अजमाया। 1988 में कमोडिटी एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट करने वाली कंपनी के रूप में अदाणी इंटरप्राइजेज की शुरुआत की और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1991 में मल्टीनेशनल बिजनेसमैन बनने की शुरुआत की। 1995 में आर्थिक सुधारों ने गौतम अदाणी को अच्छा मुनाफा दिया और तरक्की करते गए। 1996 में अदाणी ने पॉवर क्षेत्र में हाथ आजमाया।

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सितारे की तरह छाए क्षितिज पर

गौतम अदाणी को पहले इतना कौन जानता था? 2014 तक वह भारतीय जनमानस में कोई खास नहीं पहचाने जाते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के कुछ समय बाद विपक्ष ने केंद्र सरकार पर आउट ऑफ टर्न जाकर समर्थन, सहयोग, सहायता देने का आरोप लगाया। तब से अदाणी लगातार चर्चा में ही नहीं हैं, बल्कि दिन, महीना और साल बुलंदियों को छूते रहे। दक्षिण अफ्रीका में बिजनेस डील हो या श्रीलंका में बंदरगाह के संचालन और विकास को पाने की दौड़। मुंद्रा पोर्ट से लेकर देश की तमाम परियोजनाओं में अदाणी को लेकर केन्द्र सरकार पर तमाम आरोप लगे। कहा यहां तक जाता है कि अदाणी की बढ़ती धमक ने देश के दिग्गज उद्योगपति मुकेश अंबानी को भीतर भीतर परेशान करना शुरू कर दिया था।

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