रूस में संसदीय चुनाव के गरमाए माहौल के बीच एक सर्वे से यह सामने आया है कि रूस के ज्यादातर लोग पश्चिमी ढंग के लोकतंत्र को अब पसंद नहीं करते। ये सर्वे मास्को स्थित थिंक टैंक लेवाडा सेंटर ने किया। ये संस्था विदेशी अनुदान से चलती है। रूस सरकार के न्याय मंत्रालय ने इस संस्था को ‘विदेशी एजेंट’ श्रेणी में डाल रखा है। लेवाडा सेंटर ने चुनावी माहौल के बीच यह जानने के लिए जनमत सर्वेक्षण किया कि रूस के लोगों को कैसी राजनीतिक व्यवस्था पसंद है।
इससे संबंधित सवाल पर सिर्फ 16 फीसदी लोगों ने पश्चिमी देशों जैसे लोकतंत्र को अपनी पसंद बताया। 18 फीसदी लोगों ने रूस में जारी मौजूदा व्यवस्था को अपनी पसंद बताया। लेकिन हैरतअंगेज यह है कि 49 फीसदी लोगों ने पुराने दौर की सोवियत व्यवस्था को अपनी पसंद बताया। सोवियत व्यवस्था कम्युनिस्ट पार्टी के शासनकाल में 1917 से 1991 तक कायम रही थी।
लेवाडा सेंटर के मुताबिक सोवियत प्रणाली के पक्ष में पहली बार किसी जनमत सर्वेक्षण में इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी राय जताई है। इस संस्था ने जनवरी 2016 में जब इसी तरह का सर्वे किया था, तब 37 फीसदी लोगों ने सोवियत व्यवस्था को पसंद किया था। लेवाडा सेंटर ने देश के लोगों का राजनीतिक मूड जानने के लिए सर्वे की शुरुआत 1996 में की थी। तब लगभग 30 फीसदी लोगों ने पश्चिमी ढंग की लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनी पसंद बताया था। आंकड़ों से साफ है कि तब से अब तक पश्चिमी व्यवस्था के प्रति लोगों का आकर्षण काफी घट गया है।
लेकिन इस सर्वे से यह भी सामने आया कि नौजवानों को पश्चिमी व्यवस्था ज्यादा लुभाती है। क्या आप सोवियत व्यवस्था की वापसी चाहते हैं, इस सवाल पर 18 से 24 वर्ष उम्र वर्ग के नौजवानों में सिर्फ 30 फीसदी ने ‘हां’ कहा। जबकि 55 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में सोवियत व्यवस्था की वापसी चाहने वालों की संख्या 62 फीसदी रही। विश्लेषकों ने कहा है कि इस रूझान से पश्चिमी व्यवस्था के समर्थक राहत महसूस कर सकते हैँ। इसका संकेत यह है कि आबादी में आज के बुजुर्गों की संख्या घटने के साथ पश्चिमी व्यवस्था के समर्थकों की संख्या समाज में बढ़ेगी।
कनाडा की यूनिवर्सटी ऑफ ओटावा में प्रोफेसर पॉल रॉबिनसन ने वेबसाइट रशिया टुडे से कहा कि जनमत सर्वे के ये नतीजे एक विडंबना की ओर इशारा करते हैँ। उन्होंने कहा कि आज जो लोग 55 साल से अधिक उम्र के हैं, तीन दशक पहले जब वे युवा थे, तब उनकी पीढ़ी ने ही सोवियत व्यवस्था को उखाड़ फेंका था। उस दौर में उदारवादी पार्टियों को खूब समर्थन मिला। लेकिन अब ऐसा लगता है कि इस पीढ़ी का उदारवाद से मोहभंग हो गया है।
रूसी विश्लेषकों का कहना है कि रूस में जो अनुभव रहा, ऐसा लगता है कि लोगों में उस कारण चुनावी लोकतंत्र से भरोसा घटा है। 1980 और 1990 के दशकों में जो पीढ़ी पश्चिम की तरफ ललचायी नजरों से देखती थी, उसे अब ऐसा लग रहा है कि पश्चिमी व्यवस्था में अनुकरण करने लायक कुछ नहीं है।
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रूस में संसदीय चुनाव के गरमाए माहौल के बीच एक सर्वे से यह सामने आया है कि रूस के ज्यादातर लोग पश्चिमी ढंग के लोकतंत्र को अब पसंद नहीं करते। ये सर्वे मास्को स्थित थिंक टैंक लेवाडा सेंटर ने किया। ये संस्था विदेशी अनुदान से चलती है। रूस सरकार के न्याय मंत्रालय ने इस संस्था को ‘विदेशी एजेंट’ श्रेणी में डाल रखा है। लेवाडा सेंटर ने चुनावी माहौल के बीच यह जानने के लिए जनमत सर्वेक्षण किया कि रूस के लोगों को कैसी राजनीतिक व्यवस्था पसंद है।
इससे संबंधित सवाल पर सिर्फ 16 फीसदी लोगों ने पश्चिमी देशों जैसे लोकतंत्र को अपनी पसंद बताया। 18 फीसदी लोगों ने रूस में जारी मौजूदा व्यवस्था को अपनी पसंद बताया। लेकिन हैरतअंगेज यह है कि 49 फीसदी लोगों ने पुराने दौर की सोवियत व्यवस्था को अपनी पसंद बताया। सोवियत व्यवस्था कम्युनिस्ट पार्टी के शासनकाल में 1917 से 1991 तक कायम रही थी।
लेवाडा सेंटर के मुताबिक सोवियत प्रणाली के पक्ष में पहली बार किसी जनमत सर्वेक्षण में इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी राय जताई है। इस संस्था ने जनवरी 2016 में जब इसी तरह का सर्वे किया था, तब 37 फीसदी लोगों ने सोवियत व्यवस्था को पसंद किया था। लेवाडा सेंटर ने देश के लोगों का राजनीतिक मूड जानने के लिए सर्वे की शुरुआत 1996 में की थी। तब लगभग 30 फीसदी लोगों ने पश्चिमी ढंग की लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनी पसंद बताया था। आंकड़ों से साफ है कि तब से अब तक पश्चिमी व्यवस्था के प्रति लोगों का आकर्षण काफी घट गया है।