पाकिस्तान का दावा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसके अलग-थलग पड़ जाने की बातें बेबुनियाद हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में भारी समर्थन से दोबारा चुने जाने के बाद पाकिस्तान के हौसले बुलंद हैं। ये सचमुच हैरतअंगेज हैं कि जो देश आतंकवाद को समर्थन और देश के अंदर मानवाधिकारों के हनन के लिए लगातार आलोचना का शिकार रहा है, उसे यूएनएचआरसी के चुनाव में 193 में से 169 देशों के वोट हासिल हो गए।
चुनाव के एक दिन बाद संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के दूत मुनीर अकरम ने संयुक्त राष्ट्र परिसर में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि दुनिया के हर क्षेत्र के देशों ने पाकिस्तान का समर्थन किया, इसके बावजूद जो लोग हमारे अलग-थलग पड़े होने की बात करते हैं, वो दुनिया को गुमराह करते हैं।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र से यूएनएचआरसी में चार सदस्य चुने जाने थे, जबकि पांच देशों ने अपना दावा पेश कर दिया था। इसलिए मतदान हुआ। यूएनएचआरसी में मतदान हर देश के लिए अलग-अलग होता है। हर देश को 193 सदस्य देशों के बीच बहुमत का समर्थन हासिल करना पड़ता है। मंगलवार रात हुए चुनाव में पाकिस्तान को 169, उज्बेकिस्तान को 164, नेपाल को 150, चीन को 139 और सऊदी अरब को 90 वोट मिले।
इस तरह सऊदी अरब को सदस्यता नहीं मिल सकी। लेकिन सवाल यह है कि आखिर पाकिस्तान को सबसे ज्यादा समर्थन कैसे मिला? वह चीन से भी अधिक देशों का वोट पाने में कैसे कामयाब हो गया? भारतीय कूटनीतिज्ञों को यूएनएचआरसी में दिखे इस ट्रेंड का गंभीरता से जायजा लेना चाहिए।
गौरतलब है कि यूएनएचआरसी भले वैश्विक संस्था हो, लेकिन पाकिस्तान की निगाहें वहां से भी भारत पर ही केंद्रित रहती हैं. इसकी मिसाल मुनीर अकरम की प्रेस कांफ्रेंस में भी देखने को मिली। उनसे एक पाकिस्तानी पत्रकार ने पूछा कि परिषद का सदस्य होने से क्या लाभ होगा, तो अकरम ने कहा कि पिछले साल से पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के बारे में यूएनएचआरसी की दो बड़ी रिपोर्टें तैयार करवाने में कामयाब रहा है। इसके अलावा 18 रैपोटियर्स (रिपोर्ट देने के लिए नियुक्त प्रतिनिधियों) ने संयुक्त बयान जारी कर जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघनों की आलोचना की है। अकरम ने दावा किया कि ऐसी रिपोर्टों से भारत पर दबाव बढ़ेगा।
भारत के लिए गौर करने की बात यह है कि पाकिस्तान और चीन फिर से परिषद के लिए चुन लिए गए हैं। कश्मीर का मुद्दा उठाने और उसे गरम रखने में इन दोनों का निहित स्वार्थ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय मंचों से हटने की नीति ने इन दोनों देशों के लिए अनुकूल स्थितियां बनाई हैं। गौरतलब है कि ट्रंप ने यूएनएचआरसी से भी अमेरिका को हटा लिया है।
यह विडंबना ही है कि पाकिस्तान के नुमाइंदे ने यह दावा किया कि मानवाधिकार के मुद्दों पर सख्त रुख लेने के कारण दुनिया में पाकिस्तान की छवि मजबूत हुई है। वह ऐसे मुद्दे उठा रहा है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल है। मगर पाकिस्तान का नजरिया असल में कैसे भारत पर केंद्रित है, इसकी मिसाल अकरम ने इस सवाल पर दी कि पाकिस्तान की भावी रणनीति क्या रहेगी।
उन्होंने कहा कि हम भारत को बेनकाब करने और पाकिस्तान की सकारात्मक भूमिका पर ध्यान खींचने का अपना अभियान जारी रखेंगे। हम मानवाधिकार के मुद्दे पर नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहे हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति दयनीय रही है, ऐसे में उसका ऐसे दावे करना अजीबोगरीब है, लेकिन यह भारतीय कूटनीति के सामने एक बड़ी चुनौती भी है।