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द्वानों के द्वारा देवी कवच , अर्गला स्तोत्र , कीलक और तीनों रहस्य – ये ही दुर्गा सप्तशती के छः अङ्ग माने गये हैं। इनके पाठ के क्रम में भी मतभेद है। अनेक तन्त्रों के अनुसार सप्तशती के पाठ का क्रम अनेक प्रकार का उपलब्ध होता है। ऐसी दशा में अपने क्षेत्र में पाठ का जो क्रम पहले से प्रचलित हो, उसी का अनुसरण करना अच्छा है।
चिदम्बरसंहिता में पहले अर्गला फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है। किंतु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गयी है।
जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार हमें पहले कवचरुप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलकरूप कीलक का क्रमशः पाठ करना चाहिये।
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