सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के कितने बड़े रिकॉर्डधारी रहे हों परंतु ध्यानचंद की असाधारण प्रतिभा के सामने उनका कद कतई बड़ा नहीं हो सकता। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस शासन ने 2014 के आम चुनाव के दौरान क्रिकेट के भगवान को रिटायरमेंट के दौरान भारत रत्न के तमगे से नवाज दिया ताकि उसे मोदी लहर के खिलाफ जीत में मदद मिल सके। कांग्रेस ने भारत रत्न के लिए बड़ी आसानी से ध्यानचंद के मुकाबले सचिन तेंदुलकर को आगे कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया था जिस पर आगे चलकर बहस होनी ही थी कि क्या सचिन तेंदुलकर को ध्यानचंद से पहले भारत रत्न मिलना उचित है?
सचिन को इस विवाद में दोषी नहीं ठहराया जा सकता। क्रिकेट के जरिए देश की अथाह सेवा करते हुए उन्होंने भारत का नाम दुनिया में प्रसिद्ध किया है। उनकी क्रिकेट कला पर भी कोई प्रश्नचिन्ह नहीं उठा सकता। लेकिन वह इस मसले पर स्वयं आगे आकर ध्यानचंद का नाम इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए आगे कर सकते थे। ऐसा करते तो मास्टर ब्लास्टर शायद और महान हो जाते। ध्यानचंद के बाद उन्हें भी अवश्य भारत रत्न मिलता पर हमेशा रिकॉर्ड पर नजर रखने वाले सचिन तेंदुलकर ने शायद यहां भी 'रिकॉर्ड' बना दिया। आखिरकार वह अब देश के ऐसे पहले खिलाड़ी बन गए हैं जिन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न मिल गया है। ध्यानचंद यानी दद्दा इस मामले में उनसे पीछे हो गए। या यूं कहें कि पीछे कर दिए गए।
क्रिकेट में सचिन से बड़ा नाम हमेशा ऑस्ट्रेलिया के महान बल्लेबाज डॉन ब्रैडमैन का रहेगा। वर्तमान में विराट कोहली क्रिकेट की नई तस्वीर पेश कर रहे हैं। लेकिन हॉकी में ध्यानचंद से बड़ा ना कोई था और ना कोई होगा। ऐसे में भारत रत्न के लिए ध्यानचंद को भूलना एक गहन मंथन का विषय अवश्य बन गया है। आईए जानिए आखिरकार सचिन तेंदुलकर ध्यानचंद से भारत रत्न के मामले में कैसे आगे हो गए।
बात साल 2011 की है। जब सबसे पहले भारत रत्न दिए जाने के नियमों में कुछ मूलभूत बदलाव हुए। तब ऐसा लगा कि ध्यानचंद को यह पुरस्कार मिल जाएगा। सरकार ने भारत रत्न के प्रावधान में संशोधन करते हुए खिलाड़ियों को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का प्रावधान बनाया। यह बदलाव प्रमुख रूप से ध्यानचंद को ध्यान में रखकर ही तैयार किया गया था। लेकिन महाराष्ट्र सदन में विधायकों द्वारा सचिन तेंदुलकर का नाम भी इस पुरस्कार के लिए सामने करने के बाद मामले में बढ़ते विवाद के बीच केंद्र सरकार इस मसले पर चुप हो गई।
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जब ध्यानचंद की हॉकी तुड़वा कर हुई जांच, चुंबक होने की थी आशंका
ऑनलाइन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 16 जुलाई 2013 को तत्कालीन खेल मंत्री जितेंद्र सिंह ने ध्यानचंद को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने की अनुशंसा एक पत्र के जरिए प्रधानमंत्री कार्यालय से की थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी सहमति जताई। बावजूद इसके सचिन तेंदुलकर इस पुरस्कार के लिए ध्यानचंद से आगे हो गए।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जब ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने का निर्णय हो गया था तो सचिन की क्रिकेट से संन्यास की घोषणा के बाद सरकार ने अपने निर्णय में बदलाव आखिर क्यों किया? 14 नवंबर 2013 को खेल मंत्रालय को सचिन तेंदुलकर का बायोडेटा प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजने को क्यों कहा गया। खेल मंत्रालय ने तुरंत इसे प्रधानमंत्री कार्यालय भेज भी दिया। यहां हम बता दें कि 14 नवंबर 2013 को सचिन ने अपना आखिरी टेस्ट मुंबई में खेला था। जो उनके करियर का 200 वां टेस्ट था।
नवंबर-दिसंबर 2013 के दौरान राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली और मिजोरम में चुनाव होने थे। यूपीए सरकार ने सचिन का नाम स्वीकृति के लिए चुनाव आयोग भेजा। आयोग ने भी बिना विलंब इस पर अपनी रजामंदी दे दी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार विवाद इस वजह से तूल पकड़ा जब सूचना के अधिकार के तहत खेल मंत्रालय का लिखा पीएमओ का एक दस्तावेज सामने आया। जिसमें खेल मंत्रालय ने इस पुरस्कार के लिए ध्यानचंद की अनुशंसा पहले की थी। आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल को मिली सूचना से पता चलता है कि खेल मंत्रालय ने अन्य नामों की अनुशंसा भी की थी। पर पीएमओ ने इसकी अनदेखी कर दी।
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गौरतलब है कि भारत रत्न पुरस्कार के लिए की जाने वाली अनुशंसाएं पूरी तरह प्रधानमंत्री कार्यालय पर निर्भर होती है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन खेल मंत्री जितेंद्र सिंह ने जो पत्र पीएमओ को लिखा था उसमें उन्होंने भारत रत्न के लिए ध्यानचंद के नाम का ही उल्लेख किया था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस पत्र से खुश भी हुए और इसे प्रधान सचिव के पास आगे की कार्रवाई के लिए भेजा। पर ध्यानचंद का भाग्य यहां भटक गया और यह पत्र नौकरशाहों के पास से कहीं गुम हो गया।
आनलाइन मीडिया के अनुसार इसके एक माह बाद अगस्त में पीएमओ के तत्कालीन निदेशक राजीव टोपनो ने कहा कि ध्यानचंद को भारत रत्न देने के मसले को प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव के समक्ष दिसंबर में पद्म पुरस्कारों की सूची को अंतिम रूप देते वक्त रखा जाएगा। पर आगे इस पर कोई चर्चा नहीं हुई। बाद में 14 नवंबर 2013 को टोपनो ने खेल मंत्रालय से सचिन का प्रोफाइल पीएमओ को भेजने का अनुरोध किया।
ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने के लिए हस्ताक्षर करें यहां-
goo.gl/hYuwMF
सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के कितने बड़े रिकॉर्डधारी रहे हों परंतु ध्यानचंद की असाधारण प्रतिभा के सामने उनका कद कतई बड़ा नहीं हो सकता। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस शासन ने 2014 के आम चुनाव के दौरान क्रिकेट के भगवान को रिटायरमेंट के दौरान भारत रत्न के तमगे से नवाज दिया ताकि उसे मोदी लहर के खिलाफ जीत में मदद मिल सके। कांग्रेस ने भारत रत्न के लिए बड़ी आसानी से ध्यानचंद के मुकाबले सचिन तेंदुलकर को आगे कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया था जिस पर आगे चलकर बहस होनी ही थी कि क्या सचिन तेंदुलकर को ध्यानचंद से पहले भारत रत्न मिलना उचित है?
सचिन को इस विवाद में दोषी नहीं ठहराया जा सकता। क्रिकेट के जरिए देश की अथाह सेवा करते हुए उन्होंने भारत का नाम दुनिया में प्रसिद्ध किया है। उनकी क्रिकेट कला पर भी कोई प्रश्नचिन्ह नहीं उठा सकता। लेकिन वह इस मसले पर स्वयं आगे आकर ध्यानचंद का नाम इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए आगे कर सकते थे। ऐसा करते तो मास्टर ब्लास्टर शायद और महान हो जाते। ध्यानचंद के बाद उन्हें भी अवश्य भारत रत्न मिलता पर हमेशा रिकॉर्ड पर नजर रखने वाले सचिन तेंदुलकर ने शायद यहां भी 'रिकॉर्ड' बना दिया। आखिरकार वह अब देश के ऐसे पहले खिलाड़ी बन गए हैं जिन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न मिल गया है। ध्यानचंद यानी दद्दा इस मामले में उनसे पीछे हो गए। या यूं कहें कि पीछे कर दिए गए।
क्रिकेट में सचिन से बड़ा नाम हमेशा ऑस्ट्रेलिया के महान बल्लेबाज डॉन ब्रैडमैन का रहेगा। वर्तमान में विराट कोहली क्रिकेट की नई तस्वीर पेश कर रहे हैं। लेकिन हॉकी में ध्यानचंद से बड़ा ना कोई था और ना कोई होगा। ऐसे में भारत रत्न के लिए ध्यानचंद को भूलना एक गहन मंथन का विषय अवश्य बन गया है। आईए जानिए आखिरकार सचिन तेंदुलकर ध्यानचंद से भारत रत्न के मामले में कैसे आगे हो गए।
बात साल 2011 की है। जब सबसे पहले भारत रत्न दिए जाने के नियमों में कुछ मूलभूत बदलाव हुए। तब ऐसा लगा कि ध्यानचंद को यह पुरस्कार मिल जाएगा। सरकार ने भारत रत्न के प्रावधान में संशोधन करते हुए खिलाड़ियों को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का प्रावधान बनाया। यह बदलाव प्रमुख रूप से ध्यानचंद को ध्यान में रखकर ही तैयार किया गया था। लेकिन महाराष्ट्र सदन में विधायकों द्वारा सचिन तेंदुलकर का नाम भी इस पुरस्कार के लिए सामने करने के बाद मामले में बढ़ते विवाद के बीच केंद्र सरकार इस मसले पर चुप हो गई।
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ऑनलाइन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 16 जुलाई 2013 को तत्कालीन खेल मंत्री जितेंद्र सिंह ने ध्यानचंद को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने की अनुशंसा एक पत्र के जरिए प्रधानमंत्री कार्यालय से की थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी सहमति जताई। बावजूद इसके सचिन तेंदुलकर इस पुरस्कार के लिए ध्यानचंद से आगे हो गए।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जब ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने का निर्णय हो गया था तो सचिन की क्रिकेट से संन्यास की घोषणा के बाद सरकार ने अपने निर्णय में बदलाव आखिर क्यों किया? 14 नवंबर 2013 को खेल मंत्रालय को सचिन तेंदुलकर का बायोडेटा प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजने को क्यों कहा गया। खेल मंत्रालय ने तुरंत इसे प्रधानमंत्री कार्यालय भेज भी दिया। यहां हम बता दें कि 14 नवंबर 2013 को सचिन ने अपना आखिरी टेस्ट मुंबई में खेला था। जो उनके करियर का 200 वां टेस्ट था।
नवंबर-दिसंबर 2013 के दौरान राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली और मिजोरम में चुनाव होने थे। यूपीए सरकार ने सचिन का नाम स्वीकृति के लिए चुनाव आयोग भेजा। आयोग ने भी बिना विलंब इस पर अपनी रजामंदी दे दी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार विवाद इस वजह से तूल पकड़ा जब सूचना के अधिकार के तहत खेल मंत्रालय का लिखा पीएमओ का एक दस्तावेज सामने आया। जिसमें खेल मंत्रालय ने इस पुरस्कार के लिए ध्यानचंद की अनुशंसा पहले की थी। आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल को मिली सूचना से पता चलता है कि खेल मंत्रालय ने अन्य नामों की अनुशंसा भी की थी। पर पीएमओ ने इसकी अनदेखी कर दी।
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गौरतलब है कि भारत रत्न पुरस्कार के लिए की जाने वाली अनुशंसाएं पूरी तरह प्रधानमंत्री कार्यालय पर निर्भर होती है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन खेल मंत्री जितेंद्र सिंह ने जो पत्र पीएमओ को लिखा था उसमें उन्होंने भारत रत्न के लिए ध्यानचंद के नाम का ही उल्लेख किया था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस पत्र से खुश भी हुए और इसे प्रधान सचिव के पास आगे की कार्रवाई के लिए भेजा। पर ध्यानचंद का भाग्य यहां भटक गया और यह पत्र नौकरशाहों के पास से कहीं गुम हो गया।
आनलाइन मीडिया के अनुसार इसके एक माह बाद अगस्त में पीएमओ के तत्कालीन निदेशक राजीव टोपनो ने कहा कि ध्यानचंद को भारत रत्न देने के मसले को प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव के समक्ष दिसंबर में पद्म पुरस्कारों की सूची को अंतिम रूप देते वक्त रखा जाएगा। पर आगे इस पर कोई चर्चा नहीं हुई। बाद में 14 नवंबर 2013 को टोपनो ने खेल मंत्रालय से सचिन का प्रोफाइल पीएमओ को भेजने का अनुरोध किया।
ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने के लिए हस्ताक्षर करें यहां-
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