34 साल पहले 2-3 दिसम्बर 1984 को देश में एक भीषण त्रासदी हुई थी, जिसे भोपाल गैस कांड का नाम दिया गया। मध्य प्रदेश के भोपाल यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान चली गई और कई लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं।
तबाही की इस काली रात में हजारों परिवारों के बीच भोपाल में कुशवाहा परिवार भी था। पेशे से एस एल कुशवाहा टीचर थे। उनके साथ उनकी पत्नी भी थी। गैस रिसाव के बाद जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया स्थितियां विस्फोटक होती गई। बच्चों की हालत भी खराब होने लगी और बाहर से रोने और शोर-शराबे की आवाजें आने लगीं। बाद में पता चला कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से गैस लीक लगी है।
चारों ओर से आ रही भगदड और भयावह आवाजों के बीच कुशवाहा दंपति भी डर गये। चूंकि कुशवाहा परिवार में रोज सुबह और शाम के वक्त 'अग्निहोत्र यज्ञ' होता था। इसलिए उस काली रात में भी कुशवाहा परिवार ने अग्निहोत्र यज्ञ, त्र्यंबकम होम करना जारी रखा। इसके बाद लगभग 20 मिनट के अंदर ही उनका घर और उसके आस-पास का वातावरण 'मिथाइल आइसो साइनाइड गैस' से मुक्त हो गया। घटना के कुछ दिन बाद जब सबको इस बात की जानकारी हुई तो त्रासदी से बचे पीड़ित लोगों को ठीक करने और वातावरण से 'मिथाइल आइसो साइनाइड गैस' का प्रभाव दूर करने के लिए 'अग्निहोत्र यज्ञ' किया जाने लगा।
अग्निहोत्र यज्ञ
अग्निहोत्र यज्ञ को आज से हजारों साल पहले केरल के नंबूदरी ब्राह्मण किया करते थे। जिसे आज भी वे पूरी वैदिक रीति रिवाज से किया जाता है। पौराणिक काल से मंदिरों और घरों में नियमित रूप से अग्निहोत्र यज्ञ किया जाता है।
कैसे होता है यज्ञ
अग्निहोत्र यज्ञ को सूरज के ढलते और सूरज के उगते समय ही शुरू किया जाता है। इस प्रकिया में अग्नि को जौ अर्पित करने होते हैं, यज्ञ के दौरान बनाई गई विभूति इंसान और वातावरण, दोनों को ही रोग मुक्त से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है।
अग्निहोत्र यज्ञ का जिक्र यजुर्वेद में किया गया है। अग्निहोत्र यज्ञ दो तरह का होता है पहला नित्य और दूसरा काम्य। अग्नि-स्थापन करके आजीवन प्रातःकाल और सायंकाल नियमपूर्वक हवन करना नित्य कहलाता है जबकि किसी कामना के लिए हवन करना काम्य कहलाता है।