Year Ender 2022: कोविड 19 अपने साथ कई सारे बदलाव लेकर आया। कोरोना काल में लोग संक्रमण से बचने के लिए अपने घरों में कैद हो गए। लॉकडाउन लगा तो सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक स्थिति पर भी असर देखा गया। जिम जाने वाले घर पर ही योग और मेडिटेशन करने लगे। वहीं लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और करीबियों से मिल नहीं पाए। सोशल डिस्टेंसिंग के कारण दूरी बढ़ी। वहीं कई परिवारों पर आर्थिक असर भी पड़ा। देखा जाए तो कोरोना काल ने लोगों के जीवन को बदल कर रख दिया। भारत जैसे देश में इस बदलाव का बड़ा असर देखने को मिला। कोरोना काल का प्रभाव परिवार पर पड़ा। कोरोना काल में जिन परिवारों में बच्चे का जन्म हुआ, वहां अभिभावकों की जिम्मेदारी पहले से ज्यादा बढ़ गई। पिछले वर्षों में हुए बच्चों के लालन पालन और कोरोना काल में जन्में बच्चों के पालन पोषण में सिर्फ देखा गया। इस फर्फ को परिवार ने अपनाया। कोरोना काल के लगभग ढाई साल से अधिक हो गया है। ऐसे में कोरोनाकाल में जन्में बच्चे अब कुछ-कुछ समझने वाले हो गए हैं। आइए जानते हैं कोरोना काल में जन्में बच्चों के पालन पोषण के तरीके के बारे में।
गोद से दूरी
कोरोना काल में जन्म लेने वाले बच्चों से मिलने घर पर अधिक मेहमान नहीं आ पाए। सामान्य जीवन में दोस्त, रिश्तेदार घर पर बच्चे के जन्म के मौके पर पहुंचते हैं और उसे अपना स्नेह देते हैं। इस दौरान बच्चे को अक्सर कोई न कोई गोद में उठाए रहता है। लेकिन कोरोना काल में घर पर मेहमान कम आए और अधिकतर समय उसे किसी की गोद में न रहना पड़ा। वहीं माता पिता अगर कामकाजी थे तो वर्क फ्राॅम होम के दौरान बच्चे को बिस्तर पर लेटा कर काम में व्यस्त रहते। पूरा दिन उनकी गोद से भी बच्चे को दूरी मिली। ऐसे में कोरोना काल में जन्म लेने वाले बच्चों में गोद में रहने की प्रवृत्ति कम हुई।
पिता का भी मिला भरपूर साथ
अगर गर्भवती कामकाजी महिला है तो बच्चे के जन्म के दौरान उन्हें छह महीने का मातृत्व अवकाश मिल जाता है। हालांकि पिता बच्चे के जन्म के दौरान या बाद में दफ्तर जाते हैं। लेकिन कोरोना काल में बच्चे को माता के साथ ही पिता का भी भरपूर साथ मिला। घर से काम करने वाले पुरुष बच्चे के जन्म के बाद उसके साथ अधिक समय व्यतीत कर पाए। जिस तरह माता बच्चे की देखभाल करती हैं, वैसे ही पुरुषों ने भी बच्चे को संभाला।
सामाजिकता से दूर
भारत में बच्चे के जन्म पर कई तरह के संस्कार कार्यक्रमों का आयोजन होता है। हिंदू बच्चों के जन्म के 6 दिन बाद छठी, बरही, अन्नप्राशन, मुंडन संस्कार आदि का आयोजन होता है। इस तरह के पारिवारिक आयोजनों में बहुत सारे रिश्तेदार, करीबी, आस पड़ोस वाले और दोस्त शामिल होते हैं। बच्चा इस तरह का सामाजिक माहौल जन्म से ही देखता है और समझदार होने पर इसे जीवन का हिस्सा मानता है। लेकिन कोविड दौर में जन्म लेने वाले बच्चों ने सामाजिक दूरी देखी। बच्चे के जन्म पर होने वाले कार्यक्रम में परिवार के ही 10-15 लोगों की मौजूदगी यानी कम भीड़ भाड़ देखी। ऐसे में बच्चे सामाजिकता से कुछ दूर हुए। चूंकि बच्चे दूसरों के स्पर्श के अहसास को समझते हैं लेकिन उन्हें ये अहसास महसूस ही नहीं हो सका, इसलिए वह अपने रिश्तेदारों और करीबियों से अनजान रहे।
मनोरंजन में बदलाव
अक्सर बच्चे के जन्म के बाद उसे दादा दादी या परिवार का कोई न कोई सदस्य संभालता रहता है। कोई लोरी सुनाता है तो कोई कहानी। शाम के समय बच्चे को पार्क या फिर बाहर कहीं घुमाने ले जाया जाता है। छोटे बच्चे को इन चीजों का ज्ञान नहीं होता लेकिन वह इससे उत्साहित हो जाते हैं। हालांकि कोरोना काल में हुए बच्चों के मनोरंजन के साधनों में कुछ फर्क देखा गया। उन्हें बाहर नहीं ले जाया गया, ताकि संक्रमण से बचाव हो सके। बच्चे घर की चारदीवारी में ही रहे। हालांकि साल 2022 में जब कोरोना के मामलों में कमी आई और जीवनचर्या पटरी पर आई तो ऐसे बच्चे पहली बार घर से बाहर की दुनिया में निकले। अब तक ये बच्चे टीवी का कलाकृतियां और मनोरंजक गाने सुनते हुए बड़े हुए हैं।