चाणक्य ने लगभग दो हजार साल पहले अपने ग्रंथ 'अर्थशास्त्र' में राजाओं को शासन करने और धन उगाही के उपाय बताए थे। उसकी शिक्षा का सबसे ज्यादा फायदा आज उठाया जा रहा है।
चाणक्य के 'अर्थशास्त्र' के 5वें अध्याय की राजनीतिक शिक्षाओं पर गौर करें:
(1) राजा भूमि में किसी देवता को छिपाकर दिखाए कि देवता जमीन फाड़कर निकले हैं, राजा वहां मंदिर बनवाए।
(2) कोई जासूस पेड़ पर राक्षस के रूप में नरबलि की मांग करे, फिर प्रेतात्मा की शांति के नाम पर राजा धन उगाही करे।
(3) राजा किसी प्रधान देवता को बकरे के रक्त से नहला दे, फिर राज्य के विनाश का भय दिखाए। आदि आदि। ये 2000 साल पहले की बातें हैं!
आजकल धार्मिक ध्रुवीकरण के जरिए सत्ता को सुदृढ़ रखने के लिए हथियारबंद धार्मिक जुलूस निकाले जा रहे हैं, वैसे ही नारे बनाए जा रहे हैं और धार्मिक पाखंड धर्म पर हावी है। इसके अलावा, अतीत के दुखद विषय उठाकर भारत के परिवेश को जिस तरह जहरीला और हिंसात्मक बनाया जा रहा है, उसका खराब असर अंततः विकास, रोजगार- सृजन और शान्तिपूर्ण नागरिकों के जीवन पर पड़ रहा है। बच्चों तक के दिमाग में ज्ञान की भूख की जगह बदले की भावना भरी जा रही है।
(2) कोई जासूस पेड़ पर राक्षस के रूप में नरबलि की मांग करे, फिर प्रेतात्मा की शांति के नाम पर राजा धन उगाही करे।
(3) राजा किसी प्रधान देवता को बकरे के रक्त से नहला दे, फिर राज्य के विनाश का भय दिखाए। आदि आदि। ये 2000 साल पहले की बातें हैं!
आजकल धार्मिक ध्रुवीकरण के जरिए सत्ता को सुदृढ़ रखने के लिए हथियारबंद धार्मिक जुलूस निकाले जा रहे हैं, वैसे ही नारे बनाए जा रहे हैं और धार्मिक पाखंड धर्म पर हावी है। इसके अलावा, अतीत के दुखद विषय उठाकर भारत के परिवेश को जिस तरह जहरीला और हिंसात्मक बनाया जा रहा है, उसका खराब असर अंततः विकास, रोजगार- सृजन और शान्तिपूर्ण नागरिकों के जीवन पर पड़ रहा है। बच्चों तक के दिमाग में ज्ञान की भूख की जगह बदले की भावना भरी जा रही है।
नए चाणक्यों की सांप्रदायिक रणनीति क्यों सफल है?
आजकल बाघ की तरह मेमनों के सामने तर्क रखा जाता है कि तुमने नहीं तो तुम्हारी माँ ने पानी गंदा किया होगा! अब तुम्हें मेरा आहार बनना है। देश की हालत यही है। सांप्रदायिक ताकतों ने भोले मन को प्रभावित करने वाला एक प्रभावशाली तर्कशास्त्र गढ़ लिया है। वह अपने सौ साल की सधी राजनीतिक यात्रा में एक खास वैचारिकता से सुसज्जित है, जबकि विपक्ष वैचारिक रूप से रूढ़िग्रस्त है। करीब-करीब खोखला !
नए चाणक्यों की सांप्रदायिक रणनीति अब तक सफल है, इसमें संदेह नहीं। संपूर्ण विपक्ष इनके धार्मिक चक्रव्यूह में फंस गया है, वह एक गहरे राजनीतिक ट्रैप में है। वह बिलकुल वैसा ही आचरण करता है, वैसा ही बोलता है जैसा सांप्रदायिक रणनीतिकार चाहते हैं। वे अपने वैचारिक गड्ढे से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं और बॉल हमेशा जहर फैलाने वालों के पास रहता है!
गौर करने की चीज है, सांप्रदायिक रणनीतिकारों के धार्मिक चक्रव्यूह में गरीब मुसलमान जनता ज्यादा फंसी हुई है। दरअसल उसमें राजनीतिक चेतना पैदा करने की कोशिश कभी नहीं की गई। मुसलमानों के रूढ़िबद्ध और घेटो-टाइप जीवन को सुरक्षा स्थल बताया गया, उसे ग्लैमराइज किया गया और सामाजिक सुधारों से दूर रखा गया।
निःसन्देह उन्हें अपराधी और माफिया वृत्ति के मुस्लिम नेताओं ने और कठमुल्ले धार्मिक नेताओं ने अब तक भुलावे में रखा है। कट्टरवादी मुस्लिम नेता मुसलमानों को उकसा कर सांप्रदायिकता के ही हाथ मजबूत करते हैं और ध्रुवीकरण का अवसर देते हैं। यह सब अब कहना होगा।