झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस में एक ऐसा दावा किया जिससे विवाद पैदा हो सकता है। उन्होंने कहा कि आदिवासी न कभी हिंदू थे और न ही हैं। उन्होंने शनिवार को हार्वर्ड कॉन्फ्रेंस को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया। इस दौरान सोरेन ने आदिवासी पहचान और केंद्र-राज्य संबंधों के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब दिए।
सोरेन ने कहा कि आजादी के 72 साल बाद भी आदिवासियों पर अत्याचार हो रहे हैं। उन्होंने कहा, 'आदिवासी समाज प्रकृति पूजक हैं और उनके अलग रीति-रिवाज है। सदियों से आदिवासी समाज को दबाया जाता रहा है, कभी इंडिजिनस, कभी ट्राइबल तो कभी अन्य के तहत इनकी पहचान होती रही है।'
झारखंड के मुख्यमंत्री ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, 'आदिवासियों का इस्तेमाल नैपकिन के रूप में किया जाता है। अगर आदिवासी शिक्षित होंगे, तो कॉरपोरेट के ड्राइवर और रसोइए के रूप में कौन सेवा देगा?' उन्होंने कहा कि देश को कट्टरपंथी बनाया जा रहा है और सिर्फ आदिवासी होने की वजह से उन्हें और उनकी पार्टी को भाजपा और उसके सहयोगियों के हाथों नुकसान उठाना पड़ा है।
उन्होंने कहा कि एक लंबे संघर्ष के बाद साल 2000 में झारखंड अलग राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया। यह एक आदिवासी बहुल राज्य है। मगर अपने सफर में राज्य को जहां पहुंचना था, वहां नहीं पहुंच पाया है। हालांकि आजादी के बाद देश के विकास की शुरुआत यहीं से हुई थी। देश का पहला लाह संस्थान, उद्योग, खाद का कारखाना यहीं स्थापित किया गया था।
जनगणना में आदिवासियों के लिए हो अलग कॉलम
सोरेन ने कहा कि इस बार की जनगणना में आदिवासी समाज के लिए अन्य का भी प्रावधान हटा दिया गया है। मुख्यमंत्री सोरेन ने कहा कि जनगणना में आदिवासियों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्हें पांच-छह धर्मों में से किसी एक को चुनना होगा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने केंद्र से अनुरोध किया है कि आगामी जनगणना में आदिवासी समूह के लिए अलग कॉलम होना चाहिए, जिससे वह अपनी परंपरा और संस्कृति को संरक्षित करके आगे बढ़ सकें।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस में एक ऐसा दावा किया जिससे विवाद पैदा हो सकता है। उन्होंने कहा कि आदिवासी न कभी हिंदू थे और न ही हैं। उन्होंने शनिवार को हार्वर्ड कॉन्फ्रेंस को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया। इस दौरान सोरेन ने आदिवासी पहचान और केंद्र-राज्य संबंधों के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब दिए।
सोरेन ने कहा कि आजादी के 72 साल बाद भी आदिवासियों पर अत्याचार हो रहे हैं। उन्होंने कहा, 'आदिवासी समाज प्रकृति पूजक हैं और उनके अलग रीति-रिवाज है। सदियों से आदिवासी समाज को दबाया जाता रहा है, कभी इंडिजिनस, कभी ट्राइबल तो कभी अन्य के तहत इनकी पहचान होती रही है।'
झारखंड के मुख्यमंत्री ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, 'आदिवासियों का इस्तेमाल नैपकिन के रूप में किया जाता है। अगर आदिवासी शिक्षित होंगे, तो कॉरपोरेट के ड्राइवर और रसोइए के रूप में कौन सेवा देगा?' उन्होंने कहा कि देश को कट्टरपंथी बनाया जा रहा है और सिर्फ आदिवासी होने की वजह से उन्हें और उनकी पार्टी को भाजपा और उसके सहयोगियों के हाथों नुकसान उठाना पड़ा है।
उन्होंने कहा कि एक लंबे संघर्ष के बाद साल 2000 में झारखंड अलग राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया। यह एक आदिवासी बहुल राज्य है। मगर अपने सफर में राज्य को जहां पहुंचना था, वहां नहीं पहुंच पाया है। हालांकि आजादी के बाद देश के विकास की शुरुआत यहीं से हुई थी। देश का पहला लाह संस्थान, उद्योग, खाद का कारखाना यहीं स्थापित किया गया था।
जनगणना में आदिवासियों के लिए हो अलग कॉलम
सोरेन ने कहा कि इस बार की जनगणना में आदिवासी समाज के लिए अन्य का भी प्रावधान हटा दिया गया है। मुख्यमंत्री सोरेन ने कहा कि जनगणना में आदिवासियों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्हें पांच-छह धर्मों में से किसी एक को चुनना होगा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने केंद्र से अनुरोध किया है कि आगामी जनगणना में आदिवासी समूह के लिए अलग कॉलम होना चाहिए, जिससे वह अपनी परंपरा और संस्कृति को संरक्षित करके आगे बढ़ सकें।