पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर सचिन वाजे के जरिये हर महीने 100 करोड़ रुपये की उगाही करने का गंभीर आरोप लगाया था। माना जा रहा है कि इसी कारण से उन्हें मुंबई पुलिस कमिश्नर पद से हटा दिया गया। लगभग इसी प्रकार का मामला उत्तर प्रदेश में भी सामने आया है, जहां एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को जबरन रिटायर कर दिया गया है। उन पर अपने पद पर रहते हुए अनियमितता बरतने का आरोप लगाया गया है।
लेकिन ध्यान देने की बात है कि अमिताभ ठाकुर का यह रिटायरमेंट ऐसे समय में हुआ है, जब पिछले साल अक्तूबर महीने में उन्होंने प्रदेश के तीन वरिष्ठ अधिकारियों पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे और इसकी जांच किये जाने की मांग की थी।
अमिताभ ठाकुर ने 29 अक्टूबर 2020 को मुख्य सचिव और डीजीपी को एक अन्य पत्र लिखकर प्रदेश के आईजी और एडीजी रैंक के तीन वरिष्ठतम अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाये थे। इनमें से एक अधिकारी इस समय भी सतर्कता विभाग में कार्यरत हैं। पत्र में इन अधिकारियों पर अपने पद के दुरुपयोग करने की गंभीर शिकायत दर्ज कराई गई थी। लेकिन आरोप है कि इस शिकायत के बाद भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि उन्हें ही जबरन रिटायर करने की योजना बना दी गई।
आशंका व्यक्त की जा रही है कि इन शिकायतों से प्रशासन के कुछ ‘ताकतवर’ लोगों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें जबरन रिटायर करने का रास्ता तैयार कर दिया गया। हालांकि, अमिताभ ठाकुर का कहना है कि वे अपने रिटायरमेंट के संदर्भ में मिले आदेश पत्र का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करेंगे और उसके बाद, अगर कुछ गैर-कानूनी पाया तो, अदालत का रुख करेंगे।
एक थाने से 36 लाख रुपये की उगाही
अमिताभ ठाकुर ने अमर उजाला को बताया कि पिछले वर्ष 25 सितंबर 2020 में उन्होंने चंदौली जिले के मुगलसराय थाने में गंभीर उगाही किये जाने का मामला उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी एचसी अवस्थी के समक्ष उठाया था। उन्हें मिली जानकारी के अनुसार इस थाने में प्रति माह लगभग 36 लाख रुपये की अवैध वसूली की जा रही थी। ठाकुर का आरोप है कि उनकी शिकायत पर थाने के इंस्पेक्टर का ट्रांसफर कर दिया गया, लेकिन उस एसपी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिसकी शह पर यह पूरा खेल चल रहा था। इस शिकायत की प्रतिलिपि सरकार के आधे दर्जन वरिष्ठ अधिकारियों को भी भेजी गई थी।
अखिलेश सरकार से भी हुआ था टकराव
अमिताभ ठाकुर ने 1992 में आइपीएस सेवा ज्वाइन की थी। अपने लगभग 31 वर्ष के कार्यकाल में उन्हें दो बार निलंबित होना पड़ा है तो दर्जनों बार विभिन्न सरकारों के कोप का भाजन बनना पड़ा है। पिछली सरकार में भी अमिताभ ठाकुर का टकराव तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ हुआ था, जब उन्होंने 11 फरवरी 2016 को प्रदेश के शीर्ष अधिकारियों पर ट्रांसफर-पोस्टिंग के ‘उद्योग’ में शामिल होने का गंभीर आरोप लगाया था। उनके पत्र लिखने के पूर्व प्रदेश में 49 आईपीएस और 67 पीसीएस अधिकारियों का तबादला किया गया था। ठाकुर का आरोप था कि इस मामले में गंभीर भ्रष्टाचार हुआ है।
अमिताभ ठाकुर ने बताया कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को एक पत्र लिखकर प्रदेश के कुछ टॉप अधिकारियों पर ट्रांसफर-पोस्टिंग खेल में शामिल होने की जानकारी दी थी। अपने पत्र में उन्होंने कई उदाहरण देकर बताया था कि अमुक अधिकारी की नियुक्ति किस तरह की गई और किस प्रकार चंद दिनों में ही उसे अपने पद से हटाकर किसी अन्य अधिकारी की नियुक्ति कर दी गई। उन्होंने कहा कि इतनी साफ जानकारी देने के बाद भी उन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उलटे उन्हें ही सपा सरकार में निशाना बनाया गया।
ठाकुर का कहना है कि इन अधिकारियों की शिकायत के बाद उन पर तो कोई कार्रवाई नहीं ही हुई, उलटे उन पर ही इस बात के लिए विभागीय जांच बिठा दी गई कि उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री को शिकायत क्यों दर्ज कराई? अमिताभ ठाकुर पर एक समय में पांच विभागीय कार्रवाई चल रही थी।
कभी किसी पर व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाये
अमिताभ ठाकुर ने कहा कि अपने पूरे सेवाकाल में उन्होंने कभी किसी व्यक्ति पर कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाये। उन्हें जहां भी भ्रष्टाचार होता दिखा, उसकी शासन-प्रशासन के उचित मंच पर जानकारी दी। लेकिन उनका यह स्वभाव ही अनेक लोगों के लिए परेशानी का कारण बन गया। उन्हें आशंका है कि अपनी इसी सोच के कारण उन्हें जबरन रिटायर किये जाने की कार्रवाई का सामना करना पड़ा है।
किसी राजनीतिक दल से कोई बैर नहीं
अमिताभ ठाकुर की सियासी पारी को लेकर तमाम कयासबाजी होती रही है। उन पर यहां तक आरोप लगे हैं कि सेवा काल के बाद किसी राजनीतिक दल से जुड़ने की इच्छा के कारण वे हमेशा इस तरह के विवाद खड़े करते रहते हैं, जिससे वे चर्चा के केंद्र में बने रहें। लेकिन अमिताभ ठाकुर इस आरोप से इनकार करते हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने कोई मुद्दा तभी उठाया जब उन्हें उसमें किसी तरह का भ्रष्टाचार दिखा।
अपने सेवाकाल में लगातार अनेक राजनीतिक दलों का गुस्सा झेलने के बाद भी अमिताभ ठाकुर राजनीति को बुरा नहीं मानते। उन्हें लगता है कि यह भी समाज सेवा करने और गरीब-वंचित तबकों की मजबूती के लिए काम करने का एक सशक्त माध्यम है और अगर भारतीय जनता पार्टी सहित कोई भी राजनीतिक दल उनसे संपर्क करता है तो वे इस पर विचार कर सकते हैं। हालांकि अभी किसी ने उनसे इस संदर्भ में संपर्क नहीं किया है।
तीन अधिकारी हुए रिटायर
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दागी आचरण के अधिकारियों को हटाने का निर्देश दिया था। जांच में तीन अधिकारियों का आचरण लोकसेवक होने के अनुरूप नहीं पाया गया और इसके बाद ही इन्हें हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई।
अपनी जांच में केन्द्रीय गृह मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी ने उत्तर प्रदेश के टॉप तीन अधिकारियों एडीजी अमिताभ ठाकुर, डीआईजी डॉ. राकेश शंकर और राजेश कृष्ण का आचरण उचित नहीं पाया। गृह मंत्रालय के आदेश के बाद राज्यपाल की अनुमति मिल जाने पर इनके रिटायर होने की अधिसूचना जारी कर दी गई।
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पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर सचिन वाजे के जरिये हर महीने 100 करोड़ रुपये की उगाही करने का गंभीर आरोप लगाया था। माना जा रहा है कि इसी कारण से उन्हें मुंबई पुलिस कमिश्नर पद से हटा दिया गया। लगभग इसी प्रकार का मामला उत्तर प्रदेश में भी सामने आया है, जहां एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को जबरन रिटायर कर दिया गया है। उन पर अपने पद पर रहते हुए अनियमितता बरतने का आरोप लगाया गया है।
लेकिन ध्यान देने की बात है कि अमिताभ ठाकुर का यह रिटायरमेंट ऐसे समय में हुआ है, जब पिछले साल अक्तूबर महीने में उन्होंने प्रदेश के तीन वरिष्ठ अधिकारियों पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे और इसकी जांच किये जाने की मांग की थी।
अमिताभ ठाकुर ने 29 अक्टूबर 2020 को मुख्य सचिव और डीजीपी को एक अन्य पत्र लिखकर प्रदेश के आईजी और एडीजी रैंक के तीन वरिष्ठतम अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाये थे। इनमें से एक अधिकारी इस समय भी सतर्कता विभाग में कार्यरत हैं। पत्र में इन अधिकारियों पर अपने पद के दुरुपयोग करने की गंभीर शिकायत दर्ज कराई गई थी। लेकिन आरोप है कि इस शिकायत के बाद भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि उन्हें ही जबरन रिटायर करने की योजना बना दी गई।
आशंका व्यक्त की जा रही है कि इन शिकायतों से प्रशासन के कुछ ‘ताकतवर’ लोगों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें जबरन रिटायर करने का रास्ता तैयार कर दिया गया। हालांकि, अमिताभ ठाकुर का कहना है कि वे अपने रिटायरमेंट के संदर्भ में मिले आदेश पत्र का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करेंगे और उसके बाद, अगर कुछ गैर-कानूनी पाया तो, अदालत का रुख करेंगे।
एक थाने से 36 लाख रुपये की उगाही
अमिताभ ठाकुर ने अमर उजाला को बताया कि पिछले वर्ष 25 सितंबर 2020 में उन्होंने चंदौली जिले के मुगलसराय थाने में गंभीर उगाही किये जाने का मामला उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी एचसी अवस्थी के समक्ष उठाया था। उन्हें मिली जानकारी के अनुसार इस थाने में प्रति माह लगभग 36 लाख रुपये की अवैध वसूली की जा रही थी। ठाकुर का आरोप है कि उनकी शिकायत पर थाने के इंस्पेक्टर का ट्रांसफर कर दिया गया, लेकिन उस एसपी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिसकी शह पर यह पूरा खेल चल रहा था। इस शिकायत की प्रतिलिपि सरकार के आधे दर्जन वरिष्ठ अधिकारियों को भी भेजी गई थी।
अखिलेश सरकार से भी हुआ था टकराव
अमिताभ ठाकुर ने 1992 में आइपीएस सेवा ज्वाइन की थी। अपने लगभग 31 वर्ष के कार्यकाल में उन्हें दो बार निलंबित होना पड़ा है तो दर्जनों बार विभिन्न सरकारों के कोप का भाजन बनना पड़ा है। पिछली सरकार में भी अमिताभ ठाकुर का टकराव तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ हुआ था, जब उन्होंने 11 फरवरी 2016 को प्रदेश के शीर्ष अधिकारियों पर ट्रांसफर-पोस्टिंग के ‘उद्योग’ में शामिल होने का गंभीर आरोप लगाया था। उनके पत्र लिखने के पूर्व प्रदेश में 49 आईपीएस और 67 पीसीएस अधिकारियों का तबादला किया गया था। ठाकुर का आरोप था कि इस मामले में गंभीर भ्रष्टाचार हुआ है।
अमिताभ ठाकुर ने बताया कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को एक पत्र लिखकर प्रदेश के कुछ टॉप अधिकारियों पर ट्रांसफर-पोस्टिंग खेल में शामिल होने की जानकारी दी थी। अपने पत्र में उन्होंने कई उदाहरण देकर बताया था कि अमुक अधिकारी की नियुक्ति किस तरह की गई और किस प्रकार चंद दिनों में ही उसे अपने पद से हटाकर किसी अन्य अधिकारी की नियुक्ति कर दी गई। उन्होंने कहा कि इतनी साफ जानकारी देने के बाद भी उन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उलटे उन्हें ही सपा सरकार में निशाना बनाया गया।
ठाकुर का कहना है कि इन अधिकारियों की शिकायत के बाद उन पर तो कोई कार्रवाई नहीं ही हुई, उलटे उन पर ही इस बात के लिए विभागीय जांच बिठा दी गई कि उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री को शिकायत क्यों दर्ज कराई? अमिताभ ठाकुर पर एक समय में पांच विभागीय कार्रवाई चल रही थी।
कभी किसी पर व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाये
अमिताभ ठाकुर ने कहा कि अपने पूरे सेवाकाल में उन्होंने कभी किसी व्यक्ति पर कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाये। उन्हें जहां भी भ्रष्टाचार होता दिखा, उसकी शासन-प्रशासन के उचित मंच पर जानकारी दी। लेकिन उनका यह स्वभाव ही अनेक लोगों के लिए परेशानी का कारण बन गया। उन्हें आशंका है कि अपनी इसी सोच के कारण उन्हें जबरन रिटायर किये जाने की कार्रवाई का सामना करना पड़ा है।
किसी राजनीतिक दल से कोई बैर नहीं
अमिताभ ठाकुर की सियासी पारी को लेकर तमाम कयासबाजी होती रही है। उन पर यहां तक आरोप लगे हैं कि सेवा काल के बाद किसी राजनीतिक दल से जुड़ने की इच्छा के कारण वे हमेशा इस तरह के विवाद खड़े करते रहते हैं, जिससे वे चर्चा के केंद्र में बने रहें। लेकिन अमिताभ ठाकुर इस आरोप से इनकार करते हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने कोई मुद्दा तभी उठाया जब उन्हें उसमें किसी तरह का भ्रष्टाचार दिखा।
अपने सेवाकाल में लगातार अनेक राजनीतिक दलों का गुस्सा झेलने के बाद भी अमिताभ ठाकुर राजनीति को बुरा नहीं मानते। उन्हें लगता है कि यह भी समाज सेवा करने और गरीब-वंचित तबकों की मजबूती के लिए काम करने का एक सशक्त माध्यम है और अगर भारतीय जनता पार्टी सहित कोई भी राजनीतिक दल उनसे संपर्क करता है तो वे इस पर विचार कर सकते हैं। हालांकि अभी किसी ने उनसे इस संदर्भ में संपर्क नहीं किया है।
तीन अधिकारी हुए रिटायर
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दागी आचरण के अधिकारियों को हटाने का निर्देश दिया था। जांच में तीन अधिकारियों का आचरण लोकसेवक होने के अनुरूप नहीं पाया गया और इसके बाद ही इन्हें हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई।
अपनी जांच में केन्द्रीय गृह मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी ने उत्तर प्रदेश के टॉप तीन अधिकारियों एडीजी अमिताभ ठाकुर, डीआईजी डॉ. राकेश शंकर और राजेश कृष्ण का आचरण उचित नहीं पाया। गृह मंत्रालय के आदेश के बाद राज्यपाल की अनुमति मिल जाने पर इनके रिटायर होने की अधिसूचना जारी कर दी गई।