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कोरोना वायरस महामारी और देश में लॉकडाउन के बीच 'पैदल' चलने को मजबूर मजदूरों की परेशानियों को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निर्देश देने की मांग की गई है। इस संबंध में शुक्रवार को याचिका दाखिल कर कहा गया है कि 'पैदल चलकर' अपने परिवारों के साथ अपने मूल स्थानों की ओर जा रहे हजारों प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं का निवारण करने के केंद्र सरकार को निर्देश दिए जाएं।
याचिका में कहा गया है कि घरों को लौट रहे इस तरह के प्रवासी श्रमिकों की पहचान कर उन्हें भोजन, पानी, दवाइयां और उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसके लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए जाने का भी कोर्ट से अनुरोध किया गया है।
याचिकाकर्ता वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने अपनी याचिका में कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए 24 मार्च को 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की थी।
लॉकडाउन से जताई सहमति
याचिका में यह भी कहा गया है कि याचिकाकर्ता इस जानलेवा कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए इस तरह के लॉकडाउन से पूरी तरह सहमत है। परंतु संकट की इस स्थिति से सबसे अधिक पीड़ित देशभर के बड़े शहरों में काम करने वाले असंगठित प्रवासी श्रमिक, मजदूर और गरीब हुए हैं।
यह बड़े पैमाने पर मानव संकट
याचिका में यह भी कहा गया है कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद से ही रेलवे ने यात्री ट्रेनें और यात्री बस सेवा को पूरी तरह से स्थगित कर दिया गया है। ऐसे में कई प्रवासी श्रमिक अपने गांवों तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। इनमें से कई राज्य की सीमाओं को पार करने में असमर्थ हैं और वे भोजन, पानी या आश्रय के बिना सड़कों पर फंसे हुए हैं। बड़े पैमाने पर मानव संकट है।
कोरोना वायरस महामारी और देश में लॉकडाउन के बीच 'पैदल' चलने को मजबूर मजदूरों की परेशानियों को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निर्देश देने की मांग की गई है। इस संबंध में शुक्रवार को याचिका दाखिल कर कहा गया है कि 'पैदल चलकर' अपने परिवारों के साथ अपने मूल स्थानों की ओर जा रहे हजारों प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं का निवारण करने के केंद्र सरकार को निर्देश दिए जाएं।
याचिका में कहा गया है कि घरों को लौट रहे इस तरह के प्रवासी श्रमिकों की पहचान कर उन्हें भोजन, पानी, दवाइयां और उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसके लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए जाने का भी कोर्ट से अनुरोध किया गया है।
याचिकाकर्ता वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने अपनी याचिका में कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए 24 मार्च को 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की थी।
लॉकडाउन से जताई सहमति
याचिका में यह भी कहा गया है कि याचिकाकर्ता इस जानलेवा कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए इस तरह के लॉकडाउन से पूरी तरह सहमत है। परंतु संकट की इस स्थिति से सबसे अधिक पीड़ित देशभर के बड़े शहरों में काम करने वाले असंगठित प्रवासी श्रमिक, मजदूर और गरीब हुए हैं।
यह बड़े पैमाने पर मानव संकट
याचिका में यह भी कहा गया है कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद से ही रेलवे ने यात्री ट्रेनें और यात्री बस सेवा को पूरी तरह से स्थगित कर दिया गया है। ऐसे में कई प्रवासी श्रमिक अपने गांवों तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। इनमें से कई राज्य की सीमाओं को पार करने में असमर्थ हैं और वे भोजन, पानी या आश्रय के बिना सड़कों पर फंसे हुए हैं। बड़े पैमाने पर मानव संकट है।