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कांग्रेस की जीत में रिवाज ने उसके पक्ष में माहौल जरूर बनाया, लेकिन कांग्रेस ने युवाओं के बीच बेरोजगारी, कर्मचारियों के बीच पुरानी पेंशन, किसानी और बागवानी जैसे मुद्दों से खुद को भटकने नहीं दिया। भाजपा सरकार के खिलाफ लोग बहुत नाराज हैं, इसलिए उन्हीं मुद्दों को हवा दी, जिसे लेकर नाराजगी थी। यही कारण है सरकार के छह मंत्री चुनाव हार गए हैं।
हिमाचल: गुटबाजी हावी नहीं होने दी
कांग्रेस के लिए हिमाचल चुनावी मॉडल साबित हो सकता है, जहां उम्मीदवारों के चयन से लेकर पूरे चुनाव तक नेता अलग-अलग गुट बंटे जरूर दिखे लेकिन गुटबाजी सामने नहीं आई। उम्मीदवारों के चयन में आधे से अधिक ऐसे थे, जिन्हें लेकर सभी एकमत थे।
गुजरात: कांग्रेस के लचर रवैये से भाजपा की जमीन मजबूत
गुजरात में 1995 से लेकर अब तक कांग्रेस इतनी बुरी तरह कभी पराजित नहीं हुई। 2017 में पार्टी को 77 सीटें दिलाने वाले अशोक गहलोत का जादू इस बार फेल रहा। जिस समय गुजरात में चुनाव चल रहा था, पड़ोसी राज्य राजस्थान में पार्टी आपस में भिड़ी रही। पार्टी ने गुजरात के जिन युवा नेताओं को जोड़कर भविष्य का ताना बाना बुना था, उन्होंने भी किनारा कर लिया। 2017 के बाद कांग्रेस ने भाजपा सरकार विरोधी गुजरातियों के दिलों में जो जगह बनाई थी धीरे-धीरे वहां आम आदमी पार्टी धड़कना शुरू कर दिया।
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विधायकों को एकजुट रखने पर नजर
हिमाचल प्रदेश में बहुमत से अधिक संख्या आने के बाद कांग्रेस सरकार बनाने में देर नहीं करना चाहती है। हिमाचल के प्रभारी राजीव शुक्ला ने नतीजे आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात की। नेतृत्व चाहता है कि जल्द से जल्द विधायक दल की बैठक बुलाई जाए। वहीं पार्टी की ओर से दो पर्यवेक्षक छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हिमाचल भेजा गया है। विधायकों को एक जगह रखने की रणनीति है। ताकि सरकार बनाने के दावे के समय सभी विधायक एक साथ हों।
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