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Centre tells Supreme Court that Caste Census of backward classes is administratively difficult news in Hindi
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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा: पिछड़ी जातियों की जनगणना करना प्रशासनिक रूप से कठिन और बोझिल
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Thu, 23 Sep 2021 10:21 PM IST
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुरुवार को कहा कि पिछड़ी जातियों की जाति आधारित गणना करना प्रशासनिक रूप से कठिन और बोझिल काम है। केंद्र ने यह भी कहा कि ऐसी जानकारी को जनगणना के दायरे से बाहर करना एक सचेत नीतिगत निर्णय है। इसे लेकर केंद्र का रुख इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में 10 राजनीतिक दलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने जाति जनगणना की मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात भी की थी।
शीर्ष अदालत में दाखिल एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि 2011 में सामाजिक-आर्थिक वर्ग में हुई जाति गणना व जाति जनगणना (एसईसीसी 2011) में कई गलतियां थीं। बता दें कि केंद्र की ओर से यह हलफनामा महाराष्ट्र की ओर से दाखिल एक याचिका के जवाब में दाखिल किया गया जिसमें अदालत से केंद्र व अन्य संबंधित अधिकारियों को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि एसईसीसी 2011 का मूल डाटा उपलब्ध कराया जाए जो कई बार मांगने के बाद भी मुहैया नहीं कराया गया है।
यह हलफनामा सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय के सचिव की ओर से दाखिल किया गया। इसमें कहा गया है कि केंद्र ने पिछले साल जनवरी में ही एक अधिसूचना जारी कर 2021 की जनगणना के दौरान एकत्र की जाने वाली सूचनाओं की श्रृंखला निर्धारित कर दी है। इस हलफनामे में बताया गया है कि इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित जानकारी सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया है। लेकिन, इसमें जाति की किसी अन्य श्रेणी का उल्लेख नहीं किया गया है।
केंद्र सरकार की ओर से हलफनामा दाखिल करने के बाद न्यायाधीश एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 26 अक्तूबर निर्धारित कर दी। सरकार ने हलफनामे में कहा है कि जातियों पर विवरण एकत्र करने के लिए जनगणना आदर्श तरीका नहीं है। इसमें संचालन संबंधी कठिनाइयां इतनी ज्यादा हैं कि जनगणना के आंकड़ों की बुनियादी अखंडता से समझौता होने का खतरा उत्पन्न हो सकता है और जनगणना की मौलिकता भी प्रभावित हो सकती है।
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