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चुनाव में रैलियों पर प्रतिबंध: लाउडस्पीकर से लेकर चार्टर फ्लाइट्स तक, चुनाव प्रचार के पीछे के कई कारोबार पर चोट
प्रतिभा ज्योति, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: प्रतिभा ज्योति
Updated Mon, 24 Jan 2022 04:45 PM IST
सार
दिल्ली के सदर बाजार में आपको ऐसी कई छोटी-बड़ी दुकानें दिखेंगी, जहां विभिन्न राजनीतिक दलों के स्टिकर, टोपी, झंडे, माला, बैज, कटआउट, टी-शर्ट और राजनीतिक दलों के पर्चे तक मिल जाएंगे, लेकिन पहले तो कोरोना और फिर रैलियों पर लगी रोक से बाजार में वह रौनक नहीं है।
bjp, rally
- फोटो : अमर उजाला
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चुनाव आयोग ने आठ जनवरी को पांच राज्यों के चुनावों की घोषणा की थी, तब से लेकर अब तक आयोग ने रैलियों और रोड शो पर रोक लगाई हुई है। यह रोक कोरोना के बढ़ते मामलों को देखकर लगाई गई है। इस वजह से सियासी दलों के लिए डिजिटली चुनाव प्रचार करना मजबूरी बन गई है। इससे चुनाव के कारोबार में लगे लोगों के व्यापार पर इसका बुरा असर पड़ा है। रैलियां नहीं होने से चुनाव प्रचार की सामाग्री बेचने वालों से लेकर चार्टर फ्लाइट ऑपरेटर्स तक को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
ऑपरेटर्स का कहना है कि प्रति माह 350-400 उड़ान घंटों में से केवल 10-15 फीसदी ही चुनाव से संबंधित यात्राएं हो रही हैं। जबकि पिछले साल चुनावी मौसम में, लगभग 30-40 प्रतिशत यात्राएं चुनावी रैलियों से संबंधित थी। दूसरी तरफ आनलाइन चुनाव प्रचार की वजह से पोस्टर-बैनर का बिजनेस भी लगभग ठप पड़ा हुआ है। टेंट और लाउडस्पीकर वाले तक इस प्रतिबंध के कारण परेशान हैं। कुल मिलाकर इस बार चुनाव प्रचार के कारोबार से जुड़े जुड़े लोगों के लिए यह चुनाव मासूयी से भरा ही दिखाई दे रहा है।
प्रचार सामाग्री से जुड़े लोगों का कारोबार लगभग ठप
चुनाव की घोषणा का इंतजार कर रहे कारोबारी जगत यह उम्मीद लगाए बैठा था कि इन चुनावों में उनका भी बेड़ा पार होगा। चुनाव में सैकड़ों हाथों को काम मिलने का एक अवसर मिलता है। खास तौर पर टेंट, लाउडस्पीकर, होर्डिंग, बैनर, पोस्टर, फ्लेक्स बनाने वाले सबको इस मौसम में फायदे की उम्मीद रहती है। चुनाव के दौरान प्रिटिंग का काम भी बढ़ जाता है। विभिन्न दलों की तरफ से बैनर, पोस्टर, बैज का काम मिलता है जिससे ज्यादा लोगों को काम पर रखना पड़ता है।
हालांकि चुनाव आयोग की सख्ती के बाद बैनर-पोस्टर के काम में पहले जैसी रौनक नहीं रही, लेकिन चुनाव के दौरान इससे जुड़ा काम बढ़ ही जाता है। लेकिन चुनाव प्रचार की सामाग्री बनाने और बेचने के कारोबार से जुड़े लोगों पर इस बार दोहरी मार पड़ रही है। कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने पहले ही इन व्यापारियों का धंधा मंदा कर दिया था और अब चुनाव प्रचार पर लगी रोक से उनकी कमर टूट रही है।
बैनर-होर्डिंग्स की मांग बहुत कम
वर्चुअल रैली होने से बैनर, होर्डिंग, पोस्टर अब नाम मात्र ही दिखाई दे रहे हैं। पार्टियों का ज्यादातर प्रचार अब सोशल मीडिया पर सिमट गया है। इसलिए प्रिंटिंग प्रेस मालिकों का कहना है रैलियों और रोड शो के बंद होने के कारण चुनाव प्रचार की इन सामाग्रियों की मांग बहुत घट गई है। इस बार वोटिंग वाले दिन आते-आते एक लाख रुपये तक का कारोबार भी हो जाए तो समझो किस्मत अच्छी है।
यूपी के आफसेट प्रिंटिग प्रेस कारोबारी ओमजी अग्रवाल के बयान के अनुसार डिजिटल प्रचार से इस धंधे में शामिल लोगों का काफी नुकसान हुआ है। प्रत्येक चुनाव के समय 10-12 लाख रुपये का कारोबार हो जाता था, लेकिन इस बार मामला बिल्कुल उलट है। हमने इस तरह की स्थिति पहले कभी नहीं देखी।
सेकेंड हैंड कार-बाइक की भी मांग घटी
वहीं यूपी से आई एक और रिपोर्ट के मुताबिक रैलियों और रोड शो पर लगी रोक से सेकेंड हैंड कारों की भी मांग घट गई है। कारोबारियों के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 6500 पुरानी कार और बाइक की बिक्री हुई थी। इस बार रोजाना 30-35 गाड़ियों की बिक्री हो रही है।
लखनऊ ट्रू वैल्यू कार बाजार एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद वसीम के बयान के मुताबिक पहले चुनाव में उम्मीदवार चुनाव प्रचार के लिए पांच-छह गाड़ियां बुक कराते थे, लेकिन अभी चुनाव प्रचार पर बंदिशें लगी हैं। वहीं रैलियां और बड़ी जनसभाएं नहीं होने से यूपी, उत्तराखंड और पंजाब के टेंट कारोबारी भी बहुत निराश हैं।
चार्टर फ्लाइट ऑपरेटर्स का क्या कहना है?
चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के लिए चार्टर फ्लाइट्स बेहद जरूरी है। हर उम्मीदवार चाहता है कि उसके क्षेत्र में स्टार प्रचारक की सभा अवश्य हो, लेकिन वे सड़क मार्ग से एक दिन में इतनी जगहों पर नहीं पहुंच सकते। लिहाजा एक जगह से दूसरी जगह तुरंत पहुंचने के लिए इनका इस्तेमाल होता है। चार्टर फ्लाइट्स की वजह से ही स्टार प्रचारक एक दिन में छह से आठ तक चुनावी सभाएं कर सकते हैं।
एक अनुमान मुताबिक इन कंपनियों की चुनावों के दौरान आमदनी 40 से 50 करोड़ रुपये तक बढ़ जाती है। लेकिन आयोग ने अभी सिर्फ डोर टू डोर प्रचार करने की मंजूरी दी है। ऐसे में वीआईपी नेताओं और स्टार प्रचारकों को चुनाव क्षेत्रों तक ले जाने के लिए चार्टर्ड फ्लाइट्स और हेलीकॉप्टर्स की जरूरत ही नहीं पड़ रही। इस वजह से चार्टर फ्लाइट्स की सेवाएं देने वाले ऑपरेटर्स परेशान हैं। चुनाव संबंधी यात्राएं लगभग बंद
क्लब वन एयर के सीईओ राजन मेहरा ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा, 'चुनाव यात्रा ने रफ्तार नहीं पकड़ी है। यह शुरू में दिसंबर के मध्य के आसपास शुरू हुआ था, लेकिन फिर चुनाव आयोग ने रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की जिसके बाद चुनाव संबंधी यात्रा लगभग बंद हो गई हैं।’
वहीं जेटसेटगो एविएशन की फाउंडर और सीईओ कनिका टेकरीवाल ने भी अपने बयान में कहा है कि पिछले साल के मुकाबले में इस साल 70 फीसदी पूछताछ चुनाव से संबंधित यात्राओं की थी हालांकि अभी भी रैलियों के लिए उड़ानें बुक होते नहीं देखा जा रहा।
जेटसेटगो एविएशन और क्लब वन एयर के पास चार्टर उड़ानें संचालित करने के लिए क्रमशः 18 और 10 विमानों का बेड़ा है। भारत में कई सारी ऐविएशन कंपनियां मौजूद हैं जिनसे चार्ट्स फ्लाइट्स और हेलीकॉप्टर्स की बुकिंग की जाती है। नेता इसे चुनाव से बहुत पहले ही बुक करवा लेते हैं क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान पहले से ही हेलीकॉप्टर बुकिंग फुल रहती है। पहले से हेलीकॉप्टर का रिजर्वेशन करवाने के लिए नेताओं को एक से दो लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता है। इसके बाद वे तय तारीख पर उड़ान भर सकते हैं।
एक घंटे का किराया कितना?
माना जाता है कि चार्टस फ्लाइट्स का खर्च दो लाख से तीन लाख रुपये प्रति घंटे है, जो कि सामान्य से 30 से 50 फीसदी ज्यादा किराया है। इकलौते इंजन वाले हेलीकॉप्टर का किराया एक लाख रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये प्रति घंटे है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा और कांग्रेस ने 2014 के बाद से विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में विमान किराए पर लेने के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
विस्तार
चुनाव आयोग ने आठ जनवरी को पांच राज्यों के चुनावों की घोषणा की थी, तब से लेकर अब तक आयोग ने रैलियों और रोड शो पर रोक लगाई हुई है। यह रोक कोरोना के बढ़ते मामलों को देखकर लगाई गई है। इस वजह से सियासी दलों के लिए डिजिटली चुनाव प्रचार करना मजबूरी बन गई है। इससे चुनाव के कारोबार में लगे लोगों के व्यापार पर इसका बुरा असर पड़ा है। रैलियां नहीं होने से चुनाव प्रचार की सामाग्री बेचने वालों से लेकर चार्टर फ्लाइट ऑपरेटर्स तक को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
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चुनाव आयोग ने आठ जनवरी को पांच राज्यों के चुनावों की घोषणा की थी, तब से लेकर अब तक आयोग ने रैलियों और रोड शो पर रोक लगाई हुई है। यह रोक कोरोना के बढ़ते मामलों को देखकर लगाई गई है। इस वजह से सियासी दलों के लिए डिजिटली चुनाव प्रचार करना मजबूरी बन गई है। इससे चुनाव के कारोबार में लगे लोगों के व्यापार पर इसका बुरा असर पड़ा है। रैलियां नहीं होने से चुनाव प्रचार की सामाग्री बेचने वालों से लेकर चार्टर फ्लाइट ऑपरेटर्स तक को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
ऑपरेटर्स का कहना है कि प्रति माह 350-400 उड़ान घंटों में से केवल 10-15 फीसदी ही चुनाव से संबंधित यात्राएं हो रही हैं। जबकि पिछले साल चुनावी मौसम में, लगभग 30-40 प्रतिशत यात्राएं चुनावी रैलियों से संबंधित थी। दूसरी तरफ आनलाइन चुनाव प्रचार की वजह से पोस्टर-बैनर का बिजनेस भी लगभग ठप पड़ा हुआ है। टेंट और लाउडस्पीकर वाले तक इस प्रतिबंध के कारण परेशान हैं। कुल मिलाकर इस बार चुनाव प्रचार के कारोबार से जुड़े जुड़े लोगों के लिए यह चुनाव मासूयी से भरा ही दिखाई दे रहा है।
चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही सड़कों से चुनावी बैनर पोस्टर हटाए गए।
- फोटो : अमर उजाला।
प्रचार सामाग्री से जुड़े लोगों का कारोबार लगभग ठप
चुनाव की घोषणा का इंतजार कर रहे कारोबारी जगत यह उम्मीद लगाए बैठा था कि इन चुनावों में उनका भी बेड़ा पार होगा। चुनाव में सैकड़ों हाथों को काम मिलने का एक अवसर मिलता है। खास तौर पर टेंट, लाउडस्पीकर, होर्डिंग, बैनर, पोस्टर, फ्लेक्स बनाने वाले सबको इस मौसम में फायदे की उम्मीद रहती है। चुनाव के दौरान प्रिटिंग का काम भी बढ़ जाता है। विभिन्न दलों की तरफ से बैनर, पोस्टर, बैज का काम मिलता है जिससे ज्यादा लोगों को काम पर रखना पड़ता है।
हालांकि चुनाव आयोग की सख्ती के बाद बैनर-पोस्टर के काम में पहले जैसी रौनक नहीं रही, लेकिन चुनाव के दौरान इससे जुड़ा काम बढ़ ही जाता है। लेकिन चुनाव प्रचार की सामाग्री बनाने और बेचने के कारोबार से जुड़े लोगों पर इस बार दोहरी मार पड़ रही है। कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने पहले ही इन व्यापारियों का धंधा मंदा कर दिया था और अब चुनाव प्रचार पर लगी रोक से उनकी कमर टूट रही है।
बैनर और नेताओं के कटआउट लेने के लिए युवाओं में लगी होड़ (फाइल फोटो)
- फोटो : amar ujala
बैनर-होर्डिंग्स की मांग बहुत कम
वर्चुअल रैली होने से बैनर, होर्डिंग, पोस्टर अब नाम मात्र ही दिखाई दे रहे हैं। पार्टियों का ज्यादातर प्रचार अब सोशल मीडिया पर सिमट गया है। इसलिए प्रिंटिंग प्रेस मालिकों का कहना है रैलियों और रोड शो के बंद होने के कारण चुनाव प्रचार की इन सामाग्रियों की मांग बहुत घट गई है। इस बार वोटिंग वाले दिन आते-आते एक लाख रुपये तक का कारोबार भी हो जाए तो समझो किस्मत अच्छी है।
यूपी के आफसेट प्रिंटिग प्रेस कारोबारी ओमजी अग्रवाल के बयान के अनुसार डिजिटल प्रचार से इस धंधे में शामिल लोगों का काफी नुकसान हुआ है। प्रत्येक चुनाव के समय 10-12 लाख रुपये का कारोबार हो जाता था, लेकिन इस बार मामला बिल्कुल उलट है। हमने इस तरह की स्थिति पहले कभी नहीं देखी।
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की रैली के लिए शहर के वंशीबाजार स्थित लोहिया भवन से बाइक जूलूस निकाला गया (फाइल फोटो)
- फोटो : gazipur
सेकेंड हैंड कार-बाइक की भी मांग घटी
वहीं यूपी से आई एक और रिपोर्ट के मुताबिक रैलियों और रोड शो पर लगी रोक से सेकेंड हैंड कारों की भी मांग घट गई है। कारोबारियों के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 6500 पुरानी कार और बाइक की बिक्री हुई थी। इस बार रोजाना 30-35 गाड़ियों की बिक्री हो रही है।
लखनऊ ट्रू वैल्यू कार बाजार एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद वसीम के बयान के मुताबिक पहले चुनाव में उम्मीदवार चुनाव प्रचार के लिए पांच-छह गाड़ियां बुक कराते थे, लेकिन अभी चुनाव प्रचार पर बंदिशें लगी हैं। वहीं रैलियां और बड़ी जनसभाएं नहीं होने से यूपी, उत्तराखंड और पंजाब के टेंट कारोबारी भी बहुत निराश हैं।
rahul gandhi, rally
- फोटो : अमर उजाला
चार्टर फ्लाइट ऑपरेटर्स का क्या कहना है?
चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के लिए चार्टर फ्लाइट्स बेहद जरूरी है। हर उम्मीदवार चाहता है कि उसके क्षेत्र में स्टार प्रचारक की सभा अवश्य हो, लेकिन वे सड़क मार्ग से एक दिन में इतनी जगहों पर नहीं पहुंच सकते। लिहाजा एक जगह से दूसरी जगह तुरंत पहुंचने के लिए इनका इस्तेमाल होता है। चार्टर फ्लाइट्स की वजह से ही स्टार प्रचारक एक दिन में छह से आठ तक चुनावी सभाएं कर सकते हैं।
एक अनुमान मुताबिक इन कंपनियों की चुनावों के दौरान आमदनी 40 से 50 करोड़ रुपये तक बढ़ जाती है। लेकिन आयोग ने अभी सिर्फ डोर टू डोर प्रचार करने की मंजूरी दी है। ऐसे में वीआईपी नेताओं और स्टार प्रचारकों को चुनाव क्षेत्रों तक ले जाने के लिए चार्टर्ड फ्लाइट्स और हेलीकॉप्टर्स की जरूरत ही नहीं पड़ रही। इस वजह से चार्टर फ्लाइट्स की सेवाएं देने वाले ऑपरेटर्स परेशान हैं।
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- फोटो : prayagraj
चुनाव संबंधी यात्राएं लगभग बंद
क्लब वन एयर के सीईओ राजन मेहरा ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा, 'चुनाव यात्रा ने रफ्तार नहीं पकड़ी है। यह शुरू में दिसंबर के मध्य के आसपास शुरू हुआ था, लेकिन फिर चुनाव आयोग ने रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की जिसके बाद चुनाव संबंधी यात्रा लगभग बंद हो गई हैं।’
वहीं जेटसेटगो एविएशन की फाउंडर और सीईओ कनिका टेकरीवाल ने भी अपने बयान में कहा है कि पिछले साल के मुकाबले में इस साल 70 फीसदी पूछताछ चुनाव से संबंधित यात्राओं की थी हालांकि अभी भी रैलियों के लिए उड़ानें बुक होते नहीं देखा जा रहा।
pm modi, rally
- फोटो : अमर उजाला
जेटसेटगो एविएशन और क्लब वन एयर के पास चार्टर उड़ानें संचालित करने के लिए क्रमशः 18 और 10 विमानों का बेड़ा है। भारत में कई सारी ऐविएशन कंपनियां मौजूद हैं जिनसे चार्ट्स फ्लाइट्स और हेलीकॉप्टर्स की बुकिंग की जाती है। नेता इसे चुनाव से बहुत पहले ही बुक करवा लेते हैं क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान पहले से ही हेलीकॉप्टर बुकिंग फुल रहती है। पहले से हेलीकॉप्टर का रिजर्वेशन करवाने के लिए नेताओं को एक से दो लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता है। इसके बाद वे तय तारीख पर उड़ान भर सकते हैं।
एक घंटे का किराया कितना?
माना जाता है कि चार्टस फ्लाइट्स का खर्च दो लाख से तीन लाख रुपये प्रति घंटे है, जो कि सामान्य से 30 से 50 फीसदी ज्यादा किराया है। इकलौते इंजन वाले हेलीकॉप्टर का किराया एक लाख रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये प्रति घंटे है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा और कांग्रेस ने 2014 के बाद से विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में विमान किराए पर लेने के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
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