देश में प्रभावी तरीके से आतंकवाद का मुकाबला करने के साथ-साथ अब उसकी कमर तोड़ने का प्लान तैयार हो रहा है। केंद्र और राज्यों के 'आतंकवाद-रोधी दस्ते' (एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड) एक नए प्लेटफार्म पर काम करेंगे। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की भूमिका सबसे ज्यादा रहेगी। आतंकवादियों तक हथियार और रुपया पैसा पहुंचाने वाले लोगों का नेक्सस तोड़ना पहली प्राथमिकता होगी। उन्हें वह मदद चाहे देश के भीतर से मिलती हो या किसी दूसरे राष्ट्र से, उसे हर सूरत में रोका जाएगा।
दिल्ली में सोमवार को आतंकवाद-रोधी दस्ते और स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुखों एवं विशेषज्ञों की बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। सभी एजेंसियों के प्रमुख इस बात पर एकमत दिखाई दिए कि आतंकवाद रोकने के लिए सबसे पहले इनके मददगारों को खत्म किया जाए। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और एनआईए प्रमुख वाईसी मोदी का कहना था कि आतंकवाद को पूरी तरह खत्म करने के लिए जरुरी है कि पहले उनकी सप्लाई चेन को तोड़ा जाए। आतंकियों के मददगार जो पर्दे के पीछे रह कर उन्हें हथियार और रुपया पैसा देते हैं, अब उनकी कमर तोड़ने का वक्त आ गया है।
गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) एक्ट के नए प्रावधान अब उन लोगों को कानून के शिकंजे में ला देंगे, जो आतंकियों की मदद करते हुए भी मौजूदा कानून के हल्के प्रावधानों का फायदा उठाकर बचते आ रहे थे। अब इस कानून के जरिए आतंकवादी गतिविधियों में अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल लोगों को सबक सिखाया जा सकेगा।
आतंकवाद-रोधी दस्ते के कई प्रमुखों की भी यही राय थी कि आतंकवादियों को कई जगह से अलग-अलग तरह की मदद मिलती है, लेकिन ऐसे लोगों तक पुलिस या दूसरी जांच एजेंसियों नहीं पहुंच पाती। कई बार देखने में आता है कि किसी आतंकवाद-रोधी दस्ते के पास यह पुख्ता सूचना होती है कि फलां व्यक्ति गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल है। वह आतंकियों की मदद कर रहा है, इसके बावजूद उन पर हाथ डालना संभव नहीं होता था। कानून के कमजोर प्रावधानों का फायदा उठाकर ऐसे लोग बच निकलते हैं। जम्मू-कश्मीर या देश के दूसरे ऐसे हिस्से जहां आतंकियों या तोड़फोड़ की गतिविधियां हुई हैं, वहां अवश्य मददगार रहे हैं।
एनआईए जांच में यह बात साबित हो चुकी है कि कश्मीर में अलगाववादी और दूसरे संगठन आतंकियों को धन एवं अन्य मदद पहुंचाते हैं। यहां तक कि पाकिस्तानी उच्चायोग भी इस मदद की प्रक्रिया में शामिल है। पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा की पोल खुल चुकी है। इन संगठनों को स्थानीय स्तर पर मदद मिल रही है, ये बात सभी जानते हैं। पाकिस्तान और दुबई से पैसा आ रहा है, यह भी किसी से छिपा नहीं है।
जांच एजेंसियों को इन मददगारों के खिलाफ कार्रवाई करने में कई तरह की कानूनी पेचीदगियों का सामना करना पड़ रहा था। अब नए एंटी टेरर कानून की मदद से जांच एजेंसियां ऐसे लोगों को आतंकी घोषित कर उनके खिलाफ पूर्ण अधिकारों के साथ कार्रवाई कर सकेंगी।
आतंकवाद-रोधी दस्ते और स्पेशल टास्क फोर्स अब नए प्लेटफार्म पर काम करेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का एक सिस्टम तैयार किया जा रहा है, जिसमें देश के किसी भी हिस्से में आतंकियों की छोटी से छोटी सूचना सभी राज्यों के आतंकवाद-रोधी दस्ते या स्पेशल टास्क फोर्स तक पहुंच जाएगी। कौन मददगार है, चाहे वह संभावित ही क्यों न हों, उसका फोटो और फिंगर प्रिंट एक मिनट में सभी के पास होगा। इससे जो भी राज खुलेंगे, वह बिना किसी देरी के सभी एजेंसियों के साथ साझा किया जाएगा।
आतंकियों के मददगारों का पता चलते ही उनके ठिकानों पर एनआईए, ईडी और आईटी जैसी एजेंसियां रेड करेंगी। उन लोगों के पास जो भी आर्थिक स्रोत हैं, उसका पता लगाया जाएगा। उसमें हवाला का क्या रोल है, शैल कंपनियां और दूसरे देशों में बैठे उनके आकाओं, इन सभी का पता लगाकर मददगारों की जड़ ही खत्म करने की योजना बन रही है।
खास बात, अब इस तरह की मुहिम में दूतावासों की ज्यादा से ज्यादा मदद ली जाएगी। इसके लिए रॉ और एनटीआरओ जैसे संगठनों की सहभागिता बढ़ाने पर विचार हो रहा है। आतंकियों के पास मौजूद संचार तकनीक का तोड़ निकालने की योजना पर काम शुरु हो चुका है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से आतंकी सूचनाओं का आदान-प्रदान इतनी तेजी से होगा कि वारदात को अंजाम देने से पहले ही आतंकी मारे जाएंगे या पकड़े जाएंगे।
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