अब तक नरेंद्र मोदी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक के चुनावी प्रचार अभियान के सारथी रहे प्रशांत किशोर यानी पीके अब खुद राजनीति के कुरुक्षेत्र में सीधे उतरेंगे और राजनीति की कमान खुद संभालेंगे। दिलचस्प है कि 2015 में जिन नीतीश कुमार के लिए पीके ने नारा गढ़ा था- बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है, अब प्रशांत उन्हीं नीतीश कुमार को चुनौती देने जा रहे हैं।
अमर उजाला से बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में वह अब किसी के चुनाव प्रचार अभियान के संचालक नहीं बनेंगे बल्कि खुद एक ऐसा राजनीतिक प्रतिष्ठान तैयार करेंगे, जो बिहार के युवाओं और आम लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हो। माना जा रहा है कि वह खुद को नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में जनता के सामने पेश करेंगे। इसकी घोषणा वह स्वयं मंगलवार को पटना में एक संवाददाता सम्मेलन में करेंगे।
बताया जाता है कि पिछले कई महीनों से प्रशांत किशोर की टीम बिहार में एक नया विकल्प बनाने की संभावनाओं पर काम कर रही है। राज्य के हर जिले में उनकी संस्था आईपैक के कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में लोगों से बात की जिनमें हर उम्र, वर्ग और जाति के लोग शामिल हैं। इस मुहिम में सबसे ज्यादा जोर हर जाति और धर्म के युवाओं पर दिया गया और करीब पांच लाख युवाओं से बातचीत का एक विस्तृत लेखा-जोखा तैयार किया गया है और करीब एक लाख युवाओं ने अपने प्रोफाइल भेजकर बिहार में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक बदलाव के लिए प्रशांत किशोर की सियासी मुहिम से जुड़ने की इच्छा जाहिर की है।
प्रशांत किशोर का मानना है कि जाति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति से बिहार के युवा ऊब चुके हैं। हर जाति धर्म और वर्ग के युवा अन्य राज्यों की तरह ही बिहार को भी विकास और बदलाव के रास्ते पर देखना चाहते हैं। जबकि राज्य में स्थापित राजनीतिक दल बिहार के युवाओं की इस आकांक्षा और अपेक्षा पर खरे नहीं उतर रहे हैं।
यह पूछने पर कि क्या कोई नया दल बनाएंगे या किसी दल में शामिल होंगे, प्रशांत किशोर ने कहा कि इसकी जानकारी वह मंगलवार को पटना में संवाददाता सम्मेलन में ही देंगे। लेकिन इतना तय है कि अब वह किसी भी दल या नेता के लिए बिहार में प्रचार अभियान नहीं चलाएंगे बल्कि जो भी करेंगे उसकी कमान उनके और उनके साथियों के हाथों में होगी।
अमर उजाला को मिली जानकारी के मुताबिक जद (य़ू) के पूर्व सांसद पवन वर्मा भी प्रशांत किशोर के साथ उनकी नई मुहिम में शामिल हो सकते हैं। संभावना है कि वर्मा भी मंगलवार को संवाददाता सम्मेलन में मौजूद रहेंगे। वर्मा को भी नीतीश कुमार ने पार्टी विरोधी बयानों के लिए प्रशांत किशोर के साथ ही दल से निकाल दिया था। गौरतलब है कि प्रशांत किशोर ने 2014 में नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार अभियान का जिम्मा संभाला था और तभी वह चर्चा में आए थे।
लेकिन जल्दी ही वहां से उनका मोहभंग हुआ और वह 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के चुनाव प्रचार अभियान के संचालक बन गए। माना जाता है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की दोस्ती और उसके बाद बने महागठबंधन और उसकी पूरी चुनावी रणनीति के पीछे पीके की बेहद अहम भूमिका थी। फिर 2017 में प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान की जिम्मेदारी ली और उनके द्वारा आयोजित राहुल गांधी की खाट सभाएं और सोनिया गांधी के वाराणसी के रोड शो में उमड़ी जबरदस्त भीड़ ने कांग्रेस में जान डाल दी।
लेकिन उरी की सर्जिकल स्ट्राईक के बाद बने राष्ट्रवादी माहौल, कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन और कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं की साजिश ने पीके की चुनावी रणनीति को विफल कर दिया और कांग्रेस उत्तर प्रदेश चुनावों में महज सात सीटों पर सिमट गई। जबकि पंजाब में पीके कैप्टन अमरिंदर सिंह के चुनाव अभियान के संचालन में बेहद कामयाब रहे। उत्तर प्रदेश के नतीजों से ब्रांड पीके की चमक फीकी पड़ गई।
पीके फिर चर्चा में तब आए जब नीतिश कुमार ने उन्हें जनता दल (यू) में शामिल करके पार्टी का उपाध्यक्ष बना कर अपना उत्तराधिकारी बनाने का संकेत दिया। तब माना जा रहा था कि पीके के जरिए नीतिश राज्य के सवर्ण विशेषकर करीब चार से छह फीसदी ब्राह्रण मतदाताओं को साधना चाहते हैं। इस बीच पीके ने आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड़डी के चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाल ली और विधानसभा चुनावों में मिली जगन को जबरदस्त कामयाबी ने ब्रांड पीके को फिर चमका दिया।
इसके बाद प. बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में एम.के.स्टालिन ने विधानसभा चुनावों के लिए पीके की सेवाएं ले लीं और दिल्ली अरविंद केजरीवाल ने उन्हें अपने चुनाव प्रचार अभियान की जिम्मेदारी दे दी। कहा जाता है कि अच्छे बीते पांच साल लगे रहो केजरीवाल का नारा पीके ने ही रचा था। जद (यू) में नीतीश कुमार के साथ रहते हुए भी प्रशांत किशोर ने अपनी अलग पहचान बनाए रखी और नागरिकता कानून और एनआरसी के मुद्दे पर उन्होंने खुलकर केंद्र सरकार और गृह मंत्री अमित शाह का विरोध किया।
उनके बयानों से नीतीश कुमार बेहद असहज हुए और आखिरकार उन्होंने पीके को दल से निकाल दिया। उसके बाद ही पीके ने तय कर लिया था कि अब वह बिहार में खुलकर राजनीति के मैदान में बल्लेबाजी करेंगे।
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अब तक नरेंद्र मोदी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक के चुनावी प्रचार अभियान के सारथी रहे प्रशांत किशोर यानी पीके अब खुद राजनीति के कुरुक्षेत्र में सीधे उतरेंगे और राजनीति की कमान खुद संभालेंगे। दिलचस्प है कि 2015 में जिन नीतीश कुमार के लिए पीके ने नारा गढ़ा था- बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है, अब प्रशांत उन्हीं नीतीश कुमार को चुनौती देने जा रहे हैं।
अमर उजाला से बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में वह अब किसी के चुनाव प्रचार अभियान के संचालक नहीं बनेंगे बल्कि खुद एक ऐसा राजनीतिक प्रतिष्ठान तैयार करेंगे, जो बिहार के युवाओं और आम लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हो। माना जा रहा है कि वह खुद को नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में जनता के सामने पेश करेंगे। इसकी घोषणा वह स्वयं मंगलवार को पटना में एक संवाददाता सम्मेलन में करेंगे।
बताया जाता है कि पिछले कई महीनों से प्रशांत किशोर की टीम बिहार में एक नया विकल्प बनाने की संभावनाओं पर काम कर रही है। राज्य के हर जिले में उनकी संस्था आईपैक के कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में लोगों से बात की जिनमें हर उम्र, वर्ग और जाति के लोग शामिल हैं। इस मुहिम में सबसे ज्यादा जोर हर जाति और धर्म के युवाओं पर दिया गया और करीब पांच लाख युवाओं से बातचीत का एक विस्तृत लेखा-जोखा तैयार किया गया है और करीब एक लाख युवाओं ने अपने प्रोफाइल भेजकर बिहार में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक बदलाव के लिए प्रशांत किशोर की सियासी मुहिम से जुड़ने की इच्छा जाहिर की है।
प्रशांत किशोर का मानना है कि जाति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति से बिहार के युवा ऊब चुके हैं। हर जाति धर्म और वर्ग के युवा अन्य राज्यों की तरह ही बिहार को भी विकास और बदलाव के रास्ते पर देखना चाहते हैं। जबकि राज्य में स्थापित राजनीतिक दल बिहार के युवाओं की इस आकांक्षा और अपेक्षा पर खरे नहीं उतर रहे हैं।
यह पूछने पर कि क्या कोई नया दल बनाएंगे या किसी दल में शामिल होंगे, प्रशांत किशोर ने कहा कि इसकी जानकारी वह मंगलवार को पटना में संवाददाता सम्मेलन में ही देंगे। लेकिन इतना तय है कि अब वह किसी भी दल या नेता के लिए बिहार में प्रचार अभियान नहीं चलाएंगे बल्कि जो भी करेंगे उसकी कमान उनके और उनके साथियों के हाथों में होगी।
अमर उजाला को मिली जानकारी के मुताबिक जद (य़ू) के पूर्व सांसद पवन वर्मा भी प्रशांत किशोर के साथ उनकी नई मुहिम में शामिल हो सकते हैं। संभावना है कि वर्मा भी मंगलवार को संवाददाता सम्मेलन में मौजूद रहेंगे। वर्मा को भी नीतीश कुमार ने पार्टी विरोधी बयानों के लिए प्रशांत किशोर के साथ ही दल से निकाल दिया था। गौरतलब है कि प्रशांत किशोर ने 2014 में नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार अभियान का जिम्मा संभाला था और तभी वह चर्चा में आए थे।
लेकिन जल्दी ही वहां से उनका मोहभंग हुआ और वह 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के चुनाव प्रचार अभियान के संचालक बन गए। माना जाता है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की दोस्ती और उसके बाद बने महागठबंधन और उसकी पूरी चुनावी रणनीति के पीछे पीके की बेहद अहम भूमिका थी। फिर 2017 में प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान की जिम्मेदारी ली और उनके द्वारा आयोजित राहुल गांधी की खाट सभाएं और सोनिया गांधी के वाराणसी के रोड शो में उमड़ी जबरदस्त भीड़ ने कांग्रेस में जान डाल दी।
लेकिन उरी की सर्जिकल स्ट्राईक के बाद बने राष्ट्रवादी माहौल, कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन और कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं की साजिश ने पीके की चुनावी रणनीति को विफल कर दिया और कांग्रेस उत्तर प्रदेश चुनावों में महज सात सीटों पर सिमट गई। जबकि पंजाब में पीके कैप्टन अमरिंदर सिंह के चुनाव अभियान के संचालन में बेहद कामयाब रहे। उत्तर प्रदेश के नतीजों से ब्रांड पीके की चमक फीकी पड़ गई।
पीके फिर चर्चा में तब आए जब नीतिश कुमार ने उन्हें जनता दल (यू) में शामिल करके पार्टी का उपाध्यक्ष बना कर अपना उत्तराधिकारी बनाने का संकेत दिया। तब माना जा रहा था कि पीके के जरिए नीतिश राज्य के सवर्ण विशेषकर करीब चार से छह फीसदी ब्राह्रण मतदाताओं को साधना चाहते हैं। इस बीच पीके ने आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड़डी के चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाल ली और विधानसभा चुनावों में मिली जगन को जबरदस्त कामयाबी ने ब्रांड पीके को फिर चमका दिया।
इसके बाद प. बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में एम.के.स्टालिन ने विधानसभा चुनावों के लिए पीके की सेवाएं ले लीं और दिल्ली अरविंद केजरीवाल ने उन्हें अपने चुनाव प्रचार अभियान की जिम्मेदारी दे दी। कहा जाता है कि अच्छे बीते पांच साल लगे रहो केजरीवाल का नारा पीके ने ही रचा था। जद (यू) में नीतीश कुमार के साथ रहते हुए भी प्रशांत किशोर ने अपनी अलग पहचान बनाए रखी और नागरिकता कानून और एनआरसी के मुद्दे पर उन्होंने खुलकर केंद्र सरकार और गृह मंत्री अमित शाह का विरोध किया।
उनके बयानों से नीतीश कुमार बेहद असहज हुए और आखिरकार उन्होंने पीके को दल से निकाल दिया। उसके बाद ही पीके ने तय कर लिया था कि अब वह बिहार में खुलकर राजनीति के मैदान में बल्लेबाजी करेंगे।