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कद्दावर नेता सतपाल महाराज के कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी में बिखराव रोकने की कोशिशें तेज हो गई हैं। कांग्रेस के विधायक मोटे तौर पर अलग-अलग तीन धड़ों में बंटे दिख रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के समर्थक कहे जाने वाले 13 विधायक भोज के बहाने उनके घर पर जुटे। हरीश रावत को एक साथ 13 विधायकों का आंकड़ा कुछ राहत जरूर दे सकता है लेकिन उन्हें भी पता चल गया कि जो तेरा है, वो मेरा नहीं है।
विजय बहुगुणा के घर हुई बैठक का मकसद कांग्रेस को मजबूती देने का जरूर था लेकिन कहीं न कहीं बैठक के बहाने एक गुट अपनी ताकत दिखाना चाहता था। बैठक में हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य भी बाद में पहुंचे।
बैठक में न तो हरीश रावत और न ही महाराज के खेमे से जुड़े विधायक पहुंचे। करीब डेढ़ घंटे एकजुटता की बात तो हुई लेकिन पुराने शिकवे-शिकायतों की बिसात पर।
पढ़ें, पीडीएफ के हाथ है उत्तराखंड सरकार की चाबीबैठक में प्रदेश अध्यक्ष पर चर्चा हुई, लोकसभा उम्मीदवारी पर चर्चा हुई और दबी जुबान मंत्री अमृता रावत से मंत्रालय छीनने की बात भी उठी।
पढ़ें, देश भर में नमो-नमो करेंगे सतपाल महाराजबहुगुणा के समर्थक उन्हें संकटमोचक मान रहे हैं जबकि उत्तराखंड की राजनीति में हाल के घटनाक्रम में इसे संदिग्ध पहल माना जा रहा है।
कांग्रेस सरकार को खींच रहे निर्दलीय और अन्य दलों के विधायकों के फ्रंट पीडीएफ में भी समर्थन को लेकर एकता नहीं दिख रही है। कुल मिलाकर उत्तराखंड की हरीश सरकार के लिए अंकगणित अभी अनुकूल नहीं है।
पढ़ें, धर्म और राजनीति दोनों में महाराज का दबदबाप्रदेश के बदले राजनीतिक हालात में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा शनिवार को सक्रिय दिखे। उन्होंने मुख्यमंत्री आवास केठीक बगल में स्थित अपने घर पर समर्थक विधायकों को दावत पर बुलाया।
पढ़ें, पीडीएफ के हाथ है उत्तराखंड सरकार की चाबीपड़ोसी के घर दावत की सूचना मुख्यमंत्री को भी थी। बताते हैं मुख्यमंत्री भी चाहते थे कि विधायकों की भावनाओं को टटोला जाए।
सहभोज में बाद में मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य भी पहुंच गए थे। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, विधायक सुबोध उनियाल, राजकुमार, उमेश शर्मा काऊ, प्रीमत सिंह, मदन बिष्ट, शैलेंद्र मोहन सिंघल, सुंदर लाल मंद्रवाल, विक्रम सिंह नेगी, विजय पाल सिंह सजवाण, प्रदीप बत्रा, नवप्रभात वहां पहले से मौजूद थे।
पढ़ें, दोस्त के कहने पर महाराज ने पहना भगवा चोलाबताया जा रहा है कि बहुगुणा समर्थकों ने मुख्यमंत्री पर इस बात का भी दबाव बनाया है कि प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल से ही बनाकर दोनों पक्षों में पॉवर बैलेंस लाएं। कुछ विधायकों ने देरी से विभाग बांटने और मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए।
यह सीएलपी की बैठक नहीं थी। जो विधायक देहरादून में थे, उन्हें भोजन पर बुलाकर लोकसभा चुनाव आदि मुद्दों पर चर्चा की गई। महाराज के जाने से ‘डैमेज’ जैसी बात काल्पनिक है। महाराज जिस रास्ते पर चल पड़े, उससे उन्होंने कई मित्र खो दिए।
-विजय बहुगुणा, पूर्व मुख्यमंत्री
पार्टी में एकजुटता है। सरकार स्थिर है। सहयोगी दलों के अपमान का सवाल नहीं उठता। उनके बल पर ही सरकार चल रही है। महाराज देवी-देवताओं व साधु संतों के पत्तल उठाने भाजपा में नहीं गए हैं, बल्कि सांप्रदायिक ताकतों के झूठे पत्तल उठाने गए हैं। बहुगुणा के घर भोज के पीछे दबाव की कोई राजनीति नहीं है।
-हरीश रावत, मुख्यमंत्री
बहुगुणा के घर हुई बैठक में न तो हरीश रावत समर्थक विधायक थे और न ही सतपाल महाराज से जुड़े विधायकों को बुलाया गया था। कांग्रेस के 33 विधायकों में से प्रदेश अध्यक्ष को मिलाकर 14 विधायक मौजूद थे।
पढ़ें, कांग्रेस में नाराजगी, चुनाव से भाग रहे दिग्गजसाफ है सरकार बनाए रखने के लिए पार्टी को अभी और एकजुटता दिखानी होगी। हरीश रावत को नेता चुने जाने के ठीक पहले 22 कांग्रेस विधायकों ने विरोध में बैठक की थी।
पढ़ें, धर्म और राजनीति दोनों में महाराज का दबदबाउसमें सतपाल महाराज के समर्थक विधायक भी थे। सुंदर लाल मंद्रवाल का महाराज के खेमे में गिना जा रहा था लेकिन वह विजय बहुगुणा के आवास पर मौजूद थे।
कद्दावर नेता सतपाल महाराज के कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी में बिखराव रोकने की कोशिशें तेज हो गई हैं। कांग्रेस के विधायक मोटे तौर पर अलग-अलग तीन धड़ों में बंटे दिख रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के समर्थक कहे जाने वाले 13 विधायक भोज के बहाने उनके घर पर जुटे। हरीश रावत को एक साथ 13 विधायकों का आंकड़ा कुछ राहत जरूर दे सकता है लेकिन उन्हें भी पता चल गया कि जो तेरा है, वो मेरा नहीं है।
विजय बहुगुणा के घर हुई बैठक का मकसद कांग्रेस को मजबूती देने का जरूर था लेकिन कहीं न कहीं बैठक के बहाने एक गुट अपनी ताकत दिखाना चाहता था। बैठक में हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य भी बाद में पहुंचे।
नहीं पहुंचे महाराज खेमे के विधायक
बैठक में न तो हरीश रावत और न ही महाराज के खेमे से जुड़े विधायक पहुंचे। करीब डेढ़ घंटे एकजुटता की बात तो हुई लेकिन पुराने शिकवे-शिकायतों की बिसात पर।
पढ़ें, पीडीएफ के हाथ है उत्तराखंड सरकार की चाबी
बैठक में प्रदेश अध्यक्ष पर चर्चा हुई, लोकसभा उम्मीदवारी पर चर्चा हुई और दबी जुबान मंत्री अमृता रावत से मंत्रालय छीनने की बात भी उठी।
पढ़ें, देश भर में नमो-नमो करेंगे सतपाल महाराज
बहुगुणा के समर्थक उन्हें संकटमोचक मान रहे हैं जबकि उत्तराखंड की राजनीति में हाल के घटनाक्रम में इसे संदिग्ध पहल माना जा रहा है।
पीडीएफ भी बंटा कई गुटों में
कांग्रेस सरकार को खींच रहे निर्दलीय और अन्य दलों के विधायकों के फ्रंट पीडीएफ में भी समर्थन को लेकर एकता नहीं दिख रही है। कुल मिलाकर उत्तराखंड की हरीश सरकार के लिए अंकगणित अभी अनुकूल नहीं है।
पढ़ें, धर्म और राजनीति दोनों में महाराज का दबदबा
प्रदेश के बदले राजनीतिक हालात में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा शनिवार को सक्रिय दिखे। उन्होंने मुख्यमंत्री आवास केठीक बगल में स्थित अपने घर पर समर्थक विधायकों को दावत पर बुलाया।
पढ़ें, पीडीएफ के हाथ है उत्तराखंड सरकार की चाबी
पड़ोसी के घर दावत की सूचना मुख्यमंत्री को भी थी। बताते हैं मुख्यमंत्री भी चाहते थे कि विधायकों की भावनाओं को टटोला जाए।
बैलेंस ऑफ पॉवर की उठी बात
सहभोज में बाद में मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य भी पहुंच गए थे। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, विधायक सुबोध उनियाल, राजकुमार, उमेश शर्मा काऊ, प्रीमत सिंह, मदन बिष्ट, शैलेंद्र मोहन सिंघल, सुंदर लाल मंद्रवाल, विक्रम सिंह नेगी, विजय पाल सिंह सजवाण, प्रदीप बत्रा, नवप्रभात वहां पहले से मौजूद थे।
पढ़ें, दोस्त के कहने पर महाराज ने पहना भगवा चोला
बताया जा रहा है कि बहुगुणा समर्थकों ने मुख्यमंत्री पर इस बात का भी दबाव बनाया है कि प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल से ही बनाकर दोनों पक्षों में पॉवर बैलेंस लाएं। कुछ विधायकों ने देरी से विभाग बांटने और मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए।
नेता बताते रहे सामान्य मुलाकात
यह सीएलपी की बैठक नहीं थी। जो विधायक देहरादून में थे, उन्हें भोजन पर बुलाकर लोकसभा चुनाव आदि मुद्दों पर चर्चा की गई। महाराज के जाने से ‘डैमेज’ जैसी बात काल्पनिक है। महाराज जिस रास्ते पर चल पड़े, उससे उन्होंने कई मित्र खो दिए।
-विजय बहुगुणा, पूर्व मुख्यमंत्री
पार्टी में एकजुटता है। सरकार स्थिर है। सहयोगी दलों के अपमान का सवाल नहीं उठता। उनके बल पर ही सरकार चल रही है। महाराज देवी-देवताओं व साधु संतों के पत्तल उठाने भाजपा में नहीं गए हैं, बल्कि सांप्रदायिक ताकतों के झूठे पत्तल उठाने गए हैं। बहुगुणा के घर भोज के पीछे दबाव की कोई राजनीति नहीं है।
-हरीश रावत, मुख्यमंत्री
लेकिन सुंदर लाल तो यहां दिखे..
बहुगुणा के घर हुई बैठक में न तो हरीश रावत समर्थक विधायक थे और न ही सतपाल महाराज से जुड़े विधायकों को बुलाया गया था। कांग्रेस के 33 विधायकों में से प्रदेश अध्यक्ष को मिलाकर 14 विधायक मौजूद थे।
पढ़ें, कांग्रेस में नाराजगी, चुनाव से भाग रहे दिग्गज
साफ है सरकार बनाए रखने के लिए पार्टी को अभी और एकजुटता दिखानी होगी। हरीश रावत को नेता चुने जाने के ठीक पहले 22 कांग्रेस विधायकों ने विरोध में बैठक की थी।
पढ़ें, धर्म और राजनीति दोनों में महाराज का दबदबा
उसमें सतपाल महाराज के समर्थक विधायक भी थे। सुंदर लाल मंद्रवाल का महाराज के खेमे में गिना जा रहा था लेकिन वह विजय बहुगुणा के आवास पर मौजूद थे।