केदारघाटी में जलप्रलय किस वजह से आई? बादल फटने से या भारी बारिश होने से? अथवा गांधी सरोवर का तटबंध टूटने से? जल प्रलय के बाद से ही इन सवालों का जवाब नहीं मिल पाया है।
लेकिन उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) गौरीकुंड स्थित एक प्राइवेट कंपनी के आंकड़ों का हवाला देकर कहता है कि केदारघाटी में आपदा की वजह भारी बारिश ही है।
पढ़े, उत्तराखंड आपदा की खबरों की विशेष कवरेजयूसैक के निदेशक डा.एमएम किमोठी ने बताया कि गौरीकुंड स्थित लैंको इंफ्राटेक कंपनी की ओर से प्राप्त डाटा के मुताबिक 15 और 16 जून को दो दिनों में केदारघाटी में 600 एमएम से ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई। चौराबाड़ी ग्लेशियर और उसके सहयोगी ग्लेशियर की जड़ में एकत्र मोरेंस (जड़ में एकत्र कंकड़-पत्थर) में जब बारिश का भारी पानी घुसा तो वह मलबे में बदल गया।
मलबे ने रफ्तार पकड़ लीपानी की वजह से ही मलबे ने रफ्तार पकड़ ली, जिससे गांधी सरोवर टूट गया। भारी पानी और मलबे का वेग ज्यादा होने की वजह से तबाही हुई है। गौरतलब है कि लगातार तबाही के पीछे बादल फटना, बिजली गिरना जैसी कई बातें अलग-अलग संस्थानों की ओर से आगे आ रही हैं।
केदारघाटी में जलप्रलय किस वजह से आई? बादल फटने से या भारी बारिश होने से? अथवा गांधी सरोवर का तटबंध टूटने से? जल प्रलय के बाद से ही इन सवालों का जवाब नहीं मिल पाया है।
लेकिन उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) गौरीकुंड स्थित एक प्राइवेट कंपनी के आंकड़ों का हवाला देकर कहता है कि केदारघाटी में आपदा की वजह भारी बारिश ही है।
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यूसैक के निदेशक डा.एमएम किमोठी ने बताया कि गौरीकुंड स्थित लैंको इंफ्राटेक कंपनी की ओर से प्राप्त डाटा के मुताबिक 15 और 16 जून को दो दिनों में केदारघाटी में 600 एमएम से ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई। चौराबाड़ी ग्लेशियर और उसके सहयोगी ग्लेशियर की जड़ में एकत्र मोरेंस (जड़ में एकत्र कंकड़-पत्थर) में जब बारिश का भारी पानी घुसा तो वह मलबे में बदल गया।
मलबे ने रफ्तार पकड़ ली
पानी की वजह से ही मलबे ने रफ्तार पकड़ ली, जिससे गांधी सरोवर टूट गया। भारी पानी और मलबे का वेग ज्यादा होने की वजह से तबाही हुई है। गौरतलब है कि लगातार तबाही के पीछे बादल फटना, बिजली गिरना जैसी कई बातें अलग-अलग संस्थानों की ओर से आगे आ रही हैं।