यह जो पार्टी-कार्यकर्ता होता है न, बड़ा ही अजीब जीव होता है। हर समय कुछ न कुछ मांग करता ही रहता है। नेता इसी में उलझे रहते हैं कि कार्यकर्ताओं की मांग है, इच्छा है, दबाव है। पूछने वाले पूछ भी लेते हैं कि जब कार्यकर्ता हर समय इच्छा ही करता रहता है, तो वह काम कब करता है! शायद यही वजह रहती होगी कि पार्टी चुनाव में हार जाती है।
आम कार्यकर्ता नेता से अपने मन की बात कब कहता है, यह कोई नहीं जानता। कई बार तो कार्यकर्ता भी नहीं जान पाता। जब नेता कहता है कि कार्यकर्ताओं की इच्छा है, तो मैं ही इस पद के लिए खड़ा हो जाता हूं, तब कार्यकर्ता एक-दूसरे का मुंह देखने लगते हैं। सब एक-दूसरे पर शक करते हैं कि हमने तो यह अपने आप से भी नहीं कही। ज्यादा पूछताछ करना अनुशासनहीनता का मामला बन सकता है। नेता कह रहा है, तो झूठ थोड़े बोलेगा।
अभी-अभी फैसला हुआ कि मुख्यमंत्री की पत्नी को लोकसभा चुनाव लड़वाया जाए। कहा गया कि पार्टी कार्यकर्ताओं के दबाव में, उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए यह फैसला किया गया है। वैसे तो इस सीट के लिए कई नाम तैयार थे, लेकिन जब बात कार्यकर्ताओं के दबाव की आ गई, तो सभी ने मान लिया कि अपना अब कुछ नहीं होने वाला। कार्यकर्ता की इच्छा के खिलाफ जाकर कोई नेता रह पाया है क्या!
लोकसभा की सीट के लिए कार्यकर्ता दबाव बना रहे हैं कि बड़ी बहू को टिकट दिया जाए। पार्टी अध्यक्ष ने कहा। पार्टी उपाध्यक्ष ने जवाब दिया, जो अध्यक्ष का छोटा भाई है, हमें भी पता चला है कि कार्यकर्ताओं की यही इच्छा है।
वैसे भी कोई नाम नहीं है हमारे पास, हमारे सभी मंत्री, विधायक तो अध्यक्ष बन गए हैं। मजबूरी है कि बड़ी भाभीजी को ही टिकट देना पड़ेगा। मुख्यमंत्री के छोटे भाई ने राय दी।
रामदुलारे चाह रहे थे टिकट...! किसी ने कहा।
हां, हमें भी पता है, लेकिन कार्यकर्ताओं की इच्छा का सम्मान करें या रामदुलारे की मर्जी पूरी करें। इन्हें कहीं का चेयरमैन बनवा देंगे...! हाइकमान ने मजबूरी बताई। तो इस तरह पार्टी की कोर-कमेटी की महत्वपूर्ण बैठक में यह खास फैसला ले लिया गया कि लोकसभा चुनाव बड़ी बहू ही लड़ेगी, क्योंकि कार्यकर्ता यही चाहते हैं। तय किया गया कि कल ही उस इलाके के कार्यकर्ताओं से मुलाकात की जाएगी, ताकि जान-पहचान तो हो!
यह जो पार्टी-कार्यकर्ता होता है न, बड़ा ही अजीब जीव होता है। हर समय कुछ न कुछ मांग करता ही रहता है। नेता इसी में उलझे रहते हैं कि कार्यकर्ताओं की मांग है, इच्छा है, दबाव है। पूछने वाले पूछ भी लेते हैं कि जब कार्यकर्ता हर समय इच्छा ही करता रहता है, तो वह काम कब करता है! शायद यही वजह रहती होगी कि पार्टी चुनाव में हार जाती है।
आम कार्यकर्ता नेता से अपने मन की बात कब कहता है, यह कोई नहीं जानता। कई बार तो कार्यकर्ता भी नहीं जान पाता। जब नेता कहता है कि कार्यकर्ताओं की इच्छा है, तो मैं ही इस पद के लिए खड़ा हो जाता हूं, तब कार्यकर्ता एक-दूसरे का मुंह देखने लगते हैं। सब एक-दूसरे पर शक करते हैं कि हमने तो यह अपने आप से भी नहीं कही। ज्यादा पूछताछ करना अनुशासनहीनता का मामला बन सकता है। नेता कह रहा है, तो झूठ थोड़े बोलेगा।
अभी-अभी फैसला हुआ कि मुख्यमंत्री की पत्नी को लोकसभा चुनाव लड़वाया जाए। कहा गया कि पार्टी कार्यकर्ताओं के दबाव में, उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए यह फैसला किया गया है। वैसे तो इस सीट के लिए कई नाम तैयार थे, लेकिन जब बात कार्यकर्ताओं के दबाव की आ गई, तो सभी ने मान लिया कि अपना अब कुछ नहीं होने वाला। कार्यकर्ता की इच्छा के खिलाफ जाकर कोई नेता रह पाया है क्या!
लोकसभा की सीट के लिए कार्यकर्ता दबाव बना रहे हैं कि बड़ी बहू को टिकट दिया जाए। पार्टी अध्यक्ष ने कहा। पार्टी उपाध्यक्ष ने जवाब दिया, जो अध्यक्ष का छोटा भाई है, हमें भी पता चला है कि कार्यकर्ताओं की यही इच्छा है।
वैसे भी कोई नाम नहीं है हमारे पास, हमारे सभी मंत्री, विधायक तो अध्यक्ष बन गए हैं। मजबूरी है कि बड़ी भाभीजी को ही टिकट देना पड़ेगा। मुख्यमंत्री के छोटे भाई ने राय दी।
रामदुलारे चाह रहे थे टिकट...! किसी ने कहा।
हां, हमें भी पता है, लेकिन कार्यकर्ताओं की इच्छा का सम्मान करें या रामदुलारे की मर्जी पूरी करें। इन्हें कहीं का चेयरमैन बनवा देंगे...! हाइकमान ने मजबूरी बताई। तो इस तरह पार्टी की कोर-कमेटी की महत्वपूर्ण बैठक में यह खास फैसला ले लिया गया कि लोकसभा चुनाव बड़ी बहू ही लड़ेगी, क्योंकि कार्यकर्ता यही चाहते हैं। तय किया गया कि कल ही उस इलाके के कार्यकर्ताओं से मुलाकात की जाएगी, ताकि जान-पहचान तो हो!