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bird watching in india connection between birds and humans
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भारत में पक्षी सभी जगह पाए जाते हैं
- फोटो : सुभद्रा देवी
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पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले वर्तमान कोरोना वायरस संक्रमण ने हम सभी को इस बात का एहसास करा दिया है कि समय-समय पर जानवरों की बीमारियां मनुष्यों में प्रवेश कर भयंकर महामारी का रूप ले सकती हैं। ऐसी स्थिति में गिद्धों की बहुत जरूरी भूमिका है। वे मृत जानवरों के अवशेषों का जल्द निपटारा कर कीटाणुओं के इंसानी संपर्क की संभावना को कम करते हैं।
पर्यावरण में फैले जहरीले रसायन की वजह से हमारे गिद्ध दोहरे संकट का सामना कर रहे हैं। हमें मिलकर यह प्रयत्न करना होगा कि गिद्ध जल्द से जल्द विलुप्तप्राय श्रेणी से उभर कर दोबारा प्रचुर हों।
भारत में पक्षी सभी जगह पाए जाते हैं। हमारा देश परिंदों की सर्वाधिक विविधता वाले मुल्कों में गिना जाता है।
जहां पूरे विश्व में पक्षियों की करीब 10000 किस्में हैं। इनका एक बड़ा भाग यानि लगभग 1300 प्रजातियां या तो भारतीय उपमहाद्वीप की स्थायी निवासी हैं या फिर यहां अपने जीवन चक्र का एक बड़ा भाग बिताती हैं। प्रवासी पक्षी साइबेरिया जैसे दूर- दराज क्षेत्रों से भारत आते हैं और वे यहां से अफ्रीका तक भी जा सकते हैं।
कौन मानेगा कि नन्ही सी चिड़िया इतने बड़े कारनामे कर सकती हैं। इन्हीं कारणों से इन अद्भुत प्राणियों पर शोध और उनके संरक्षण के लिए हमारा देश एक विशेष भूमिका निभाता है। पक्षियों के बारे में वैज्ञानिक जितना कुछ समझ पाए हैं उससे कहीं ज्यादा अभी भी जानना बाकी है।
मसलन प्रवासी पक्षी बिना रास्ता भटके हजारों मील लंबा सफर कैसे तय कर लेते हैं या फिर परिंदों के संगीत की बारीकियों के पीछे क्या राज छिपे हैं। पिछले कुछ दशकों में पक्षियों की आवाज पर हुए अध्ययन से हमें कई बातें पता लगी हैं।
अक्सर पक्षी हमें दिखाई देने से पहले सुनाई दे जाते हैं। हमें लुभाने वाले मधुर गीत आमतौर पर नर पक्षियों द्वारा प्रजनन के मौसम में गाए जाते हैं। इन गीतों की अवधि कई मिनटों की हो सकती है और अक्सर ये अनेकों बार दोहराए जाते हैं।
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गीत के अलावा पक्षी अन्य प्रकार की ध्वनि का भी प्रयोग करते हैं जिसका उद्देश्य झुंड के अन्य सदस्यों से संपर्क करना या खतरे का संकेत देना हो सकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि ट्रैफिक का बढ़ता शोर पक्षियों की बोली को भी प्रभावित कर रहा है।
प्रकृति के पारिस्थितिक तंत्र को कायम रखने में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे पेड़ पौधों के परागण और उनके बीजों का प्रसार भी करते ही हैं। इसके अलावा हमारी लोककथाएं धार्मिक ग्रंथों और संगीत व अन्य कलाओं में परिंदों की खास जगह है।
बगुले वाली घटना के कारण परिंदों में मेरी रूचि दोबारा जाग उठी...
मुझे भी पक्षियों को देखना बहुत पसंद है
- फोटो : सुभद्रा देवी
पक्षियों को अनेक देवी-देवताओं का वाहन माना गया है और उन्हें कई शासकीय चिन्हों में भी शामिल किया गया है। कई जगहों में पक्षियों के कारण रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है। हमारे देश के लोगों में बर्डवॉचिंग के प्रति बढ़ती रूचि से ईको पर्यटन को बहुत प्रोत्साहन मिला है।
मुझे भी पक्षियों को देखना बहुत पसंद है। इस सिलसिले की शुरुआत संयोगवश हुई थी। एक बार मैं अपने बच्चों को पिकनिक पर ले गई थी। वहां एक पक्षी की ओर इशारा कर मैंने बच्चों से कहा देखों एक बगुला। तभी हमारे साथ आए एक मित्र ने बताया कि वह एक गाय बगुला है और भारत में बगुलों की पांच अलग-अलग प्रजातियां पाईं जाती हैं। तब पहली बार मैंने उस पक्षी को ध्यान से देखा। वह बगुला गायों के पीछे चल रहा था और उनके चरने से तितर- बितर हुए कीड़ों को पकड़कर खा रहा था। उस क्षण मुझे बगुले की चतुराई का आभास हुआ।
इसके बाद से मैंने पक्षियों को बारीकी से देखना शुरू किया। मैं मुंबई में पली बढ़ी थी जहां कौवें, कबूतर, गौरैया और तोतों के सिवा बहुत काम चिड़ियां दिखती थीं। लेकिन मुझे याद है कि जब कभी हमारा परिवार करनाला अभ्यारण घूमने जाता था तब हमें वहां मोर सहित कई और प्रताजियों की चिड़ियां भी दिखाई देती थीं। लेकिन जैसे ही हम शहर की चहल पहल में वापस लौटते उन पक्षियों को भूल जाते।
बगुले वाली घटना के कारण परिंदों में मेरी रूचि दोबारा जाग उठी। मैंने पक्षियों पर लिखी किताबें पढ़नी शुरू कीं। मैं अक्सर दूरबीन व नोटबुक लेकर पक्षियों को देखने निकल पड़ती। पक्षियों को ध्यान से देखना और उनकी अपार सुंदरता को निहारना मुझे बहुत पसंद आने लगा।
जब भी मैं चिड़ियों के बीच होती मुझे बहुत शांति मिलती। जब मैं उदास होती चिड़ियों की चहक मुझे उत्साहित कर देती। जब भी मुझे प्रेरणा की जरूरत होती मुझे वह पक्षियों से मिलती। चिड़ियों ने मुझे सदा आनंदित किया है और प्रकृति को करीब से देखने की जिज्ञासा को बढ़ाया है। इसके लिए मैं परिंदों की ऋणी हूं।
इस ऋण को चुकाने के इरादे से मेरा यह फर्ज बनता है कि पक्षियों के लिए मैं कुछ करूं। मेरा एक छोटा सा योगदान यह है कि मैंने अपने बगीचे का एक हिस्सा छोड़ दिया है जिससे पक्षियों को अपने घोंसले बनाने के लिए उपयुक्त स्थान मिल सके।
हमारे बगीचे में मैने अब तक 60 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों की उपस्थिति दर्ज की है
- फोटो : सुभद्रा देवी
मेरे ऐसा करने से बगीचे में बुलबुल, शक्कर खोरा जैसे पक्षियों ने अपने घरोंदे बनाए जिनमें बच्चे जन्में। चिड़ियों के खातिर मैं बगीचे में अलग-अलग प्रकार के पेड़ पौधे लगाती रही हूं। साथ ही उनके लिए जगह जगह बीज व अनाज के दाने डालती हूं और पानी भी रखती हूंए जिससे विभिन्न प्रजाति के पक्षिओं इनका उपयोग कर सकें।
मेरी इन कोशिशों का नतीजा बहुत ही सुखद है। हमारे बगीचे में मैने अब तक 60 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों की उपस्थिति दर्ज की है। हमारे बगीचे के छोटे से तालाब से बगुले का अपने बर्फ से सफेद पंखों पर उड़ान भरते देखना या फिर मौसम के पहले पीलक के दर्शन करना मन को हमेशा खुशी से भर देता है। ऐसे अनुभव मैं अक्सर अपने मोबाईल फोन के कैमरे में कैद कर लेती हूं जिससे उन क्षणों की याद हमेशा ताजा रहे।
इसलिए मैं तहे दिल से ऐसे प्रयासों का समर्थन करती हूं जिनका उद्देश्य आम लोगों को पक्षियों के प्रति जागरूक कराना और चिड़ियों के संरक्षण को बढ़ावा देना है। पक्षियों का स्वास्थ्य और उनकी विविधता हमारे पर्यावरण के स्वास्थ्य के सूचक है। यही नहीं पक्षी हमारी जमीन और यहां रह रहे लोगों की सम्पन्नता के प्रतीक हैं। मैं उस समय की कामना करती हूं जब सभी लोग इस बात को समझें और जानें कि मनुष्यों और पक्षियों के बीच एक अटूट रिश्ता है।
लेखिका का परिचय: रोहिणी निलेकणी एक लेखिका और समाजसेवी हैं। वे अर्घ्यम् नामक संस्था की अध्यक्षा हैं जो जल संरक्षण व स्वच्छता पर काम करती हैं। साथ ही वे शिक्षा से जुड़ी एकस्टेप की सह संस्थापक और पर्यावण संस्था एट्री की प्रबंध समिति की सदस्या भी हैं।
यह श्रंखला 'नेचर कन्ज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF)' द्वारा चालित 'नेचर कम्युनिकेशन्स' कार्यक्रम की एक पहल है। इस का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में प्रकृति से सम्बंधित लेखन को प्रोत्साहित करना है। यदि आप प्रकृति या पक्षियों के बारे में लिखने में रुचि रखते हैं तो ncf-india से संपर्क करें।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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