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Myanmar: सैनिक शासन को झटका, अमेरिका ने म्यांमार से राजनयिक संबंध का दर्जा गिराया

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, यंगून Published by: अभिषेक दीक्षित Updated Fri, 09 Dec 2022 04:15 PM IST
सार

म्यांमार में एक फरवरी 2021 को सेना ने निर्वाचित प्रतिनिधियों का तख्ता पलट कर सत्ता खुद संभाल ली थी। अमेरिका ने इसके बाद म्यांमार पर कई प्रतिबंध लगाए थे।

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सांकेतिक तस्वीर - फोटो : पीटीआई

विस्तार

सैनिक शासन को सख्त संदेश भेजते हुए अमेरिका ने म्यांमार के साथ अपने राजनयिक संबंध का दर्जा गिरा दिया है। इसके तहत यंगून स्थित अमेरिकी राजदूत थॉमस वाजदा को इसी महीने लौटने को कहा गया है। उनकी जगह किसी पूर्णकालिक राजदूत की नियुक्ति नहीं की जाएगी। वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम ने अपनी एक विशेष रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। 


इस वेबसाइट की तरफ से भेजे गए एक ई-मेल के जवाब में अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कहा कि राजदूत वाजदा की रवानगी के बाद वहां मौजूद दूसरे नंबर के अधिकारी (डिप्टी चीफ ऑफ मिशन) डेबॉराह लिन उनकी जिम्मेदारियां संभालेंगे।


विश्लेषकों के मुताबिक इस कदम के जरिए अमेरिका के जो बाइडेन प्रशासन ने यह संदेश दिया है कि वह म्यांमार की मौजूदा सरकार को मान्यता नहीं देता है। सैनिक शासन ने 2023 में आम चुनाव कराने का एलान किया है। अमेरिका इस बात की निगरानी करेगा कि वे चुनाव किस तरह कराए जाते हैं। उसके बाद ही वह म्यांमार के बारे में अपना अगला रुख तय करेगा। फिलहाल अमेरिका ने आशंका जताई है कि मौजूदा माहौल में म्यांमार में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं है। 

म्यांमार में एक फरवरी 2021 को सेना ने निर्वाचित प्रतिनिधियों का तख्ता पलट कर सत्ता खुद संभाल ली थी। अमेरिका ने इसके बाद म्यांमार पर कई प्रतिबंध लगाए थे। इसके पहले 1990 के दशक में जब सेना ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को जेल में डाल कर  सत्ता पर कब्जा जमाया, तब 20 वर्ष तक अमेरिका ने म्यांमार के लिए राजदूत की नियुक्ति नहीं की थी। 2010 में जब म्यांमार में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल की गई, तब अमेरिका ने वहां अपना राजदूत भेजा था। इसके बाद 2011 में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने म्यांमार की यात्रा की थी। इस तरह 57 साल के बाद किसी अमेरिकी विदेश मंत्री ने म्यांमार की यात्रा की। 2012 में बराक ओबामा म्यांमार की यात्रा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने थे। 

थॉमस वाजदा जनवरी 2021 में राजदूत बन कर यहां आए थे। उसके कुछ ही दिन के बाद आम चुनाव में विजयी हुई आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी का तख्ता पलट कर सेना ने सत्ता पर कब्जा जमा लिया। उसके बाद से पश्चिमी देश यहां अपना राजदूत भेजने को लेकर अनिच्छुक रहे हैं। नियुक्ति के बाद किसी राजदूत को संबंधित देश के राष्ट्राध्यक्ष के सामने अपना परिचय पत्र पेश करना होता है। फिलहाल सैनिक शासक जनरल मिन आंग हलायंग म्यांमार के राष्ट्राध्यक्ष हैं। 

एक पश्चिमी राजनयिक ने वेबसाइट निक्कई एशिया से कहा कि पश्चिमी देश नहीं चाहते कि उनका राजदूत ऐसे व्यक्ति के सामने अपना परिचय पत्र पेश करे, जिसने तख्ता पलट किया है। उन्हें आशंका है कि इससे गलत धारणा बनेगी। इससे माना जाएगा कि ये देश सैनिक शासन को मान्यता दे रहे हैं।
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अमेरिका के पहले जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और दक्षिण कोरिया भी म्यांमार से राजनयिक संबंधों का अपना दर्जा गिरा चुके हैँ। राजयनिक सूत्रों के मुताबिक यूरोपीय देशों में आपसी सहमति बनी है कि वे यंगून में अपने दूतावास बनाए रखेंगे, लेकिन वहां अपने राजदूत म्यांमार नहीं भेजेंगे।

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