नए साल की शुरुआत के साथ ही दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता अमल में आ गया है। रिजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकॉनमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) पर फिलहाल दस देशों ने अमल शुरू किया है। आरसीईपी में वैसे कुल 15 देश शामिल हैं। इन देशों का दुनिया के कुल जीडीपी में योगदान 30 फीसदी है।
एक जनवरी से आरसीईपी उन देशों में अमल में आया, जहां इसके अनुमोदन की प्रक्रिया पूरी हो गई है। ये देश हैं- चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्रूनेई, कम्बोडिया, लाओस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। दक्षिण कोरिया एक फरवरी से इस समझौते में शामिल हो जाएगा। इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपीन्स और म्यांमार ने भी इस करार पर दस्तखत किए हैं, लेकिन अभी उनके यहां अनुमोदन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है।
सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर लॉकनी सू ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- आरसीईपी लागू होने का एक व्यावहारिक प्रभाव यह होगा कि संबंधित देशों के व्यापारियों और सप्लाई चेन सहभागियों को विशेष प्राथमिकता के आधार पर निर्यात और निवेश की सुविधा मिलेगी। संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (अंकटाड) ने कहा है कि आरसीईपी का अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर महत्त्वपूर्ण असर होगा। अपने आकार और व्यापार गतिशीलता के कारण यह आर्थिक क्षेत्र विश्व व्यापार का केंद्र बन जाएगा।
कारोबार में 90 फीसदी तक छूट
आरसीईपी में शामिल देश एक दूसरे को वस्तुओं के कारोबार में शुल्कों में 90 फीसदी तक की छूट देंगे। निक्कई एशिया के एक विश्लेषण में बताया गया है कि इसका सबसे ज्यादा लाभ जापान को होगा। समझौते की वजह से चीन को इलेक्ट्रिक वाहनों के जापानी निर्यात में भारी बढ़ोतरी होगी। आरसीईपी के कारण जापान के कुल निर्यात में 20.2 बिलियन डॉलर की वृद्धि होने का अनुमान है। चीन के निर्यात में 11.1 बिलियन डॉलर और दक्षिण कोरिया के निर्यात में 6.7 बिलियन डॉलर का इजाफा होने का अंदाजा है।
इस विश्लेषण के मुताबिक शुरुआत में इस समझौते के कारण वियतनाम और इंडोनेशिया को नुकसान होगा। उनके निर्यात में क्रमशः 1.5 बिलियन और 0.3 बिलियन डॉलर की कमी आने का अनुमान लगाया गया है। इसकी वजह यह है कि चीन अभी जो चीजें वियतनाम से मंगवाता है, उस बाजार पर जापानी निर्यात का कब्जा हो जाएगा। जापानी उत्पाद क्वालिटी में वियतनाम के उत्पादों से बेहतर माने जाते हैँ।
अमेरिका किसी समझौते का हिस्सा नहीं
इस करार को चीन की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। इस बीच चीन ने दूसरे मुक्त व्यापार समझौतों सीपीटीपीपी (कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप) और डीईपीए (डिजिटल इकॉनमी पार्टनरशिप एग्रीमेंट) की सदस्यता पाने के लिए भी अर्जी दी हुई है। विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि अमेरिका इनमें से किसी समझौते का हिस्सा नहीं है। इसीलिए चीन मुक्त व्यापार का प्रमुख केंद्र बनने की कोशिश में है।
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आरसीईपी डेढ़ साल के बाद नए सदस्यों के लिए अपने दरवाजे खोलेगा। इसका अपवाद सिर्फ भारत है। भारत के लिए ये प्रावधान रखा गया है कि वह जब चाहे इसमें शामिल हो सकता है। भारत इस मुक्त व्यापार समझौते की वार्ता में आरंभ से शामिल था, लेकिन इस पर दस्तखत से ठीक पहले उसने इससे खुद को अलग कर लिया था।
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