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Japan: new Prime Minister Fumio Kishida criticized the economic policies adopted by former Prime Minister Shinzo Abe
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जापान: क्या ‘आबेनोमिक्स’ पर हमलों से बढ़ेंगे सत्ताधारी दल एलडीपी के वोट?
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, टोक्यो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 16 Oct 2021 04:04 PM IST
सार
विश्लेषकों का कहना है कि शिन्जो आबे की नीतियों पर निशाना साध कर फुमियो किशिदा एक नपा-तुला जोखिम उठा रहे हैं। फिलहाल, जनमत सर्वेक्षणों में उनकी अप्रूवल रेटिंग 50 फीसदी से कुछ ही अधिक है...
जापान के नए प्रधानमंत्री फुमिया किशिदा ने देश को नव-उदारवादी अर्थ नीति से अलग रास्ते पर ले जाने का संकल्प लिया है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री शिन्जो आबे के कार्यकाल में अपनाई गई आर्थिक नीतियों की कड़ी आलोचना की है। इन नीतियों को आबेनोमिक्स के नाम से जाना जाता है। अपने इस ताजा रुख के साथ उन्होंने अपनी ही लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) की अब तक आर्थिक नीतियों पर निशाना साध लिया है।
किशिदा इस समय चुनाव अभियान में जुटे हुए हैं। जापान में अगले 31 अक्तूबर को नई डियेट (संसद) चुनने के लिए मतदान होगा। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने किसी विदेशी मीडिया को दिए अपने पहले इंटरव्यू में किशिदा ने कहा कि उनकी प्राथमिकता देश में अमीर और गरीब के बीच पैदा हुई खाई को भरना है। उन्होंने कहा- ‘जीडीपी, कॉरपोरेट सेक्टर की आमदनी और रोजगार बढ़ाने के लिहाज से आबेनोमिक्स से फायदा हुआ। लेकिन ये नीति एक गुणात्मक चक्र शुरू करने में नाकाम रही।’ गुणात्मक चक्र से उनका मतलब ऐसी अर्थव्यवस्था से है, जिससे सभी को समान लाभ होता।
विश्लेषकों के मुताबिक किशिदा ने पहली बार इतने तल्ख लहजे में आबेनोमिक्स की आलोचना की है। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान कहा- ‘मैं गुणात्मक आर्थिक चक्र चाहता हूं, जिसमें न सिर्फ समाज के एक तबके की आमदनी बढ़े, बल्कि व्यापक रूप से लोगों की आय बढ़े। उससे मांग में बढ़ोतरी होगी। मेरी राय है कि इसी रूप में नए प्रकार का पूंजीवाद अपने पिछले रूप से अलग होगा।’ किशिदा ने प्रधानमंत्री पद संभालते ही देश में ‘नए प्रकार का पूंजीवाद’ लाने का वादा किया था।
जापान में 1990 और साल 2000 के दशकों में बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को सरकारी कानून-कायदों से मुक्त करने, निजीकरण और श्रमिकों के लिए संरक्षण हटाने के उपाय किए गए। साथ ही सख्त राजकोषीय नीतियां लागू की गईं और सरकारी खर्च में कटौती की गई। इन तमाम कदमों को आबेनोमिक्स नाम से जाना जाता है। शिन्जो आबे को जापान में सबसे लंबी अवधि तक प्रधानमंत्री रहने का श्रेय हासिल है। सितंबर 2020 में उन्होंने खराब सेहत के कारण ये पद छोड़ा था। उसके बाद योशिहिदे सुगा प्रधानमंत्री बने, लेकिन वे एक साल ही इस पद पर रह पाए।
विश्लेषकों का कहना है कि शिन्जो आबे की नीतियों पर निशाना साध कर फुमियो किशिदा एक नपा-तुला जोखिम उठा रहे हैं। फिलहाल, जनमत सर्वेक्षणों में उनकी अप्रूवल रेटिंग 50 फीसदी से कुछ ही अधिक है। लोकप्रियता के इसी स्तर के साथ वे चुनाव मैदान में उतरे हैं। विश्लेषकों के मुताबिक अपनी नई घोषणाओं से किशिदा मतदाताओं को संदेश देना चाहते हैं कि उनके शासनकाल में उन्हें नया दौर देखने को मिलेगा।
लेकिन पर्यवेक्षकों की राय है कि किशिदा जो कह रहे हैं, उसे अमल में लाना आसान नहीं है। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के पहले हफ्ते में ही उन्हें अपनी एक प्रमुख घोषणा वापस लेनी पड़ी। उन्होंने पूंजीगत लाभ टैक्स बढ़ाने की घोषणा की थी। लेकिन उससे जापान के शेयर बाजारों में भारी गिरावट आई। उसके बाद उन्होंने अपने इस एलान को वापस ले लिया।
किशिदा ने कर्मचारियों के तनख्वाह बढ़ाने वाली कंपनियों को टैक्स रियायत देने, नर्सों और आम देखभाल करने वाले कर्मचारियों (केयर वर्कर्स) के वेतन बढ़ाने और आर्थिक लाभ के ट्रिकल डाउन सिद्धांत को पलटने के वादे किए हैं। इसके साथ ही उन्होंने सरकार और प्राइवेट सेक्टर के बीच सहयोग बढ़ाने की बात कही है, ताकि जापान को चिप जैसे उत्पादों और रेयर अर्थ जैसे पदार्थों के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
विस्तार
जापान के नए प्रधानमंत्री फुमिया किशिदा ने देश को नव-उदारवादी अर्थ नीति से अलग रास्ते पर ले जाने का संकल्प लिया है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री शिन्जो आबे के कार्यकाल में अपनाई गई आर्थिक नीतियों की कड़ी आलोचना की है। इन नीतियों को आबेनोमिक्स के नाम से जाना जाता है। अपने इस ताजा रुख के साथ उन्होंने अपनी ही लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) की अब तक आर्थिक नीतियों पर निशाना साध लिया है।
किशिदा इस समय चुनाव अभियान में जुटे हुए हैं। जापान में अगले 31 अक्तूबर को नई डियेट (संसद) चुनने के लिए मतदान होगा। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने किसी विदेशी मीडिया को दिए अपने पहले इंटरव्यू में किशिदा ने कहा कि उनकी प्राथमिकता देश में अमीर और गरीब के बीच पैदा हुई खाई को भरना है। उन्होंने कहा- ‘जीडीपी, कॉरपोरेट सेक्टर की आमदनी और रोजगार बढ़ाने के लिहाज से आबेनोमिक्स से फायदा हुआ। लेकिन ये नीति एक गुणात्मक चक्र शुरू करने में नाकाम रही।’ गुणात्मक चक्र से उनका मतलब ऐसी अर्थव्यवस्था से है, जिससे सभी को समान लाभ होता।
विश्लेषकों के मुताबिक किशिदा ने पहली बार इतने तल्ख लहजे में आबेनोमिक्स की आलोचना की है। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान कहा- ‘मैं गुणात्मक आर्थिक चक्र चाहता हूं, जिसमें न सिर्फ समाज के एक तबके की आमदनी बढ़े, बल्कि व्यापक रूप से लोगों की आय बढ़े। उससे मांग में बढ़ोतरी होगी। मेरी राय है कि इसी रूप में नए प्रकार का पूंजीवाद अपने पिछले रूप से अलग होगा।’ किशिदा ने प्रधानमंत्री पद संभालते ही देश में ‘नए प्रकार का पूंजीवाद’ लाने का वादा किया था।
जापान में 1990 और साल 2000 के दशकों में बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को सरकारी कानून-कायदों से मुक्त करने, निजीकरण और श्रमिकों के लिए संरक्षण हटाने के उपाय किए गए। साथ ही सख्त राजकोषीय नीतियां लागू की गईं और सरकारी खर्च में कटौती की गई। इन तमाम कदमों को आबेनोमिक्स नाम से जाना जाता है। शिन्जो आबे को जापान में सबसे लंबी अवधि तक प्रधानमंत्री रहने का श्रेय हासिल है। सितंबर 2020 में उन्होंने खराब सेहत के कारण ये पद छोड़ा था। उसके बाद योशिहिदे सुगा प्रधानमंत्री बने, लेकिन वे एक साल ही इस पद पर रह पाए।
विश्लेषकों का कहना है कि शिन्जो आबे की नीतियों पर निशाना साध कर फुमियो किशिदा एक नपा-तुला जोखिम उठा रहे हैं। फिलहाल, जनमत सर्वेक्षणों में उनकी अप्रूवल रेटिंग 50 फीसदी से कुछ ही अधिक है। लोकप्रियता के इसी स्तर के साथ वे चुनाव मैदान में उतरे हैं। विश्लेषकों के मुताबिक अपनी नई घोषणाओं से किशिदा मतदाताओं को संदेश देना चाहते हैं कि उनके शासनकाल में उन्हें नया दौर देखने को मिलेगा।
लेकिन पर्यवेक्षकों की राय है कि किशिदा जो कह रहे हैं, उसे अमल में लाना आसान नहीं है। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के पहले हफ्ते में ही उन्हें अपनी एक प्रमुख घोषणा वापस लेनी पड़ी। उन्होंने पूंजीगत लाभ टैक्स बढ़ाने की घोषणा की थी। लेकिन उससे जापान के शेयर बाजारों में भारी गिरावट आई। उसके बाद उन्होंने अपने इस एलान को वापस ले लिया।
किशिदा ने कर्मचारियों के तनख्वाह बढ़ाने वाली कंपनियों को टैक्स रियायत देने, नर्सों और आम देखभाल करने वाले कर्मचारियों (केयर वर्कर्स) के वेतन बढ़ाने और आर्थिक लाभ के ट्रिकल डाउन सिद्धांत को पलटने के वादे किए हैं। इसके साथ ही उन्होंने सरकार और प्राइवेट सेक्टर के बीच सहयोग बढ़ाने की बात कही है, ताकि जापान को चिप जैसे उत्पादों और रेयर अर्थ जैसे पदार्थों के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
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