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कोरोना से जुड़े नए-नए लक्षण लगातार सामने आ रहे हैं, वैसे ही महामारी से जुड़े नए-नए शब्द भी सामने आ रहे हैं। हर देश में इनसे जुड़े शब्दों के मतलब अलग-अलग हैं। कर्व फ्लैटनिंग, लॉकडाउन, मास टेस्टिंग, केस-लोड्स जैसे कई शब्द हैं, जिन्हें पहली बार सुना जा रहा है और समझने का प्रयास हो रहा है। पेश हैं, यहां ऐसी शब्दावली और अलग देशों में उनके मायने -
पुष्ट मामले (कन्फर्म्ड केसेज) : चीन द्वारा मामले छिपाने की आशंका
वैसे तो दुनियाभर में मरीजों का आंकड़ा बताया जा रहा है, लेकिन इसके मायने अलग-अलग हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि देश अपूर्ण तस्वीर पेश कर रहा है। आशंका है कि चीन ने केवल 82 हजार मामले कन्फर्म्ड मामले बताकर वास्तविक स्थिति छिपाई। यह भी सामने नहीं आया कि उसने कितने लोगों की जांच की।
चीन में हर दस लाख नागरिकों में से महज 500 की जांच हुई। इससे संक्रमण की असल स्थिति नहीं साफ होती। ब्रिटेन में हर 10 लाख पर 2,400 जांच हुईं, यह भी यूरोपीय मानक से कम है। दक्षिण कोरिया ने दस लाख पर 8 हजार और नॉर्वे ने 17 हजार की जांच की। अमेरिका में प्रति दस लाख लोगों पर 3,600 की जांच हो रही हैं।
प्रति व्यक्ति पैमाने पर अमेरिका जांच में कई विकसित देशों से पीछे है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार लोगों की संख्या से ज्यादा, उनकी जांच कब हुई और वे कौन थे, यह ज्यादा मायने रखता है। इस लिहाज से भी सभी देशों की अलग तस्वीर है। दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर मैंं संक्रमितों से मिली सूचना के आधार पर कॉन्टैक्ट ट्रैसिंग भी तेजी से की गई।
इस प्रकार इन देशों को संक्रमित की पूरी तस्वीर पता चल सकी। इसके चलते वहां पॉजिटिव लोगों की संख्या को कम कर लिया गया। लेकिन ज्यादा आबादी वाले अधिकांश देशों ने ज्यादा जांच एक साथ करने के लिए इंतजार किया और कॉन्टैक्ट ट्रैसिंग के लिए भी ज्यादा प्रयास नहीं हुए। लिहाजा, वहां वायरस तेजी से फैला। सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिका है। यहां 90 फीसदी जांच पिछले दो सप्ताह में हुई हैं।
इटली और स्पेन में मृत्यु दर सबसे ज्यादा रही। जर्मनी की कम है तो चीन इनके बीच में है। विशेषज्ञों की नजर में इसे समझना इतना सरल भी नहीं है, क्योंकि मृतकों की गिनती में भी खामियां हैं। मसलन, वुहान में आधिकारिक तादाद 2,535 बताई गई। लेकिन कई रिपोर्टें इशारा करती हैं कि वहां हजारों के अंतिम संस्कार की सामग्री खरीदी गई थी। अस्पतालों का माहौल देखकर वुहान, इटली और स्पेन से कई लोग मजबूर होकर अपने घर चले गए थे।
यह नहीं पता लग पाया कि इनमें से कितने ठीक हुए या नहीं। इटली और फ्रांस में उन्हीं लोगों को कोरोना से मृत माना गया, जिन्होंने अस्पतालों में अंतिम सांस ली। जर्मनी में तो कुछ मरीजों की गिनती ही नहीं की गई। सिर्फ बीमार की जांच हुई है तो संक्रमितों की संख्या भी कम दिखाई देगी और मरने वालों का प्रतिशत भी उतना ही कम होगा। जर्मनी में मृत्यु दर सिर्फ एक फीसदी रही है।
जब महामारी का ग्राफ नीचे (फ्लैटन) आता है तो उसके चरम स्तर से तुलना होती है। लेकिन चरम स्तर को स्पष्ट ढंग से पेश नहीं किया जाता। संक्रमण का प्रकोप बिना जांच के बढ़ते समय काफी संक्रमित लोग जान गंवा चुके होते हैं। इटली में मार्च की शुरुआत में कुछ सौ मरीज ही सामने आ रहे थे, जिनकी संख्या 21 मार्च को 6,500 हो गई।
21 तारीख के बाद नए संक्रमण का आंकड़ा चार से छह हजार के बीच रहा है। संक्रमितों का ग्राफ शीर्ष पर पहुंचकर और ऊपर जाने की बजाय आसपास सीधा रहे या नीचे की ओर आने लगे। उसे सपाट ग्राफ (कर्व फ्लैटनिंग) कहते हैं। लेकिन सपाट ग्राफ का मतलब तभी है, जब मौजूद सक्रिय मामलों में मरने वालों की संख्या घटे।
विकसित देशों समेत दुनियाभर में 2 अरब लोग लॉकडाउन में रह रहे हैं। लेकिन इसके लिए स्टे एट होम, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्द भी प्रचलित हैंै। कई जगह लॉकडाउन में कुछ कार्यों में छूट है। कुछ जगह पांच-दस लोगों को एकत्र होने दिया जाता है तो कुछ जगह दो लोग साथ नहीं जा सकते।
कुछ जगह अंतिम संस्कार में लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध है, तो कुछ जगह छूट है। अमेरिका जैसी जगह पर जबरदस्ती नियमों का पालन नहीं कराया जा रहा। इटली समेत कई देशों ने फौजियों को तैनात कर दिया है। फ्रांस में आर्थिक दंड दिया गया है।
चीन में सुरक्षा बलों ने लोगों को बाहर नहीं निकलने दिया। कठोर दंड भी रखा गया। फिलीपींस के राष्ट्रपति ने तो लॉकडाउन तोड़ने वालों को गोली मारने के आदेश तक दे दिए। इटली में लॉकडाउन अलग-अलग चरणों में किया गया। पहले लोग देशभर में अपने काम से यात्रा कर सकते थे, अब घर से बाहर निकलने पर जुर्माना है।
भारतीयों के लिए लॉकडाउन के मायने उनकी जीवन शैली पर असर से समझा जा सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने लॉकडाउन में जिंदगी पर वीडियो जारी किया। इसमें अलग अलग वर्गों की परिभाषा दी गई है। इनमें विद्यार्थियों के लिए लॉकडाउन का मतलब समय सारणी बनाकर उसका पालन करना, वर्किंग प्रोफेशनल्स के लिए घर से काम, युवाओं के लिए व्यायाम, कैरम जैसे इंडोर खेल और मस्ती करना शामिल है।
वहीं घर में किसी का न आना, कहीं न जाना और परिजनों के साथ समय बिताना भी भारतीयों की लॉकडाउन की परिभाषा में शामिल है। कुछ के लिए सालों बाद पुरानी हॉबी शुरू करना, किताबें लिखना, बुजुर्गों के लिए पोते-पोतियों से सोशल मीडिया व नए गैजेट्स जानने का अवसर भी है।
- घर से बाहर तभी जाएं जब अति आवश्यक हो। न किसी के घर जाएं, न ही किसी को बुलाएंं।
- बार-बार स्पर्श की जाने वाली सतहों और जगहों को नियमित तौर पर साफ करते रहें।
- अनावश्यक खरीदारी न करें। हर जरूरी सामग्री उपलब्ध है।
- विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करें, दोस्तों व परिवजनों के साथ फोन पर या ऑनलाइन संपर्क में रहें।
कोरोना से जुड़े नए-नए लक्षण लगातार सामने आ रहे हैं, वैसे ही महामारी से जुड़े नए-नए शब्द भी सामने आ रहे हैं। हर देश में इनसे जुड़े शब्दों के मतलब अलग-अलग हैं। कर्व फ्लैटनिंग, लॉकडाउन, मास टेस्टिंग, केस-लोड्स जैसे कई शब्द हैं, जिन्हें पहली बार सुना जा रहा है और समझने का प्रयास हो रहा है। पेश हैं, यहां ऐसी शब्दावली और अलग देशों में उनके मायने -
पुष्ट मामले (कन्फर्म्ड केसेज) : चीन द्वारा मामले छिपाने की आशंका
वैसे तो दुनियाभर में मरीजों का आंकड़ा बताया जा रहा है, लेकिन इसके मायने अलग-अलग हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि देश अपूर्ण तस्वीर पेश कर रहा है। आशंका है कि चीन ने केवल 82 हजार मामले कन्फर्म्ड मामले बताकर वास्तविक स्थिति छिपाई। यह भी सामने नहीं आया कि उसने कितने लोगों की जांच की।
चीन में हर दस लाख नागरिकों में से महज 500 की जांच हुई। इससे संक्रमण की असल स्थिति नहीं साफ होती। ब्रिटेन में हर 10 लाख पर 2,400 जांच हुईं, यह भी यूरोपीय मानक से कम है। दक्षिण कोरिया ने दस लाख पर 8 हजार और नॉर्वे ने 17 हजार की जांच की। अमेरिका में प्रति दस लाख लोगों पर 3,600 की जांच हो रही हैं।
व्यापक जांच ( वाइड-स्प्रेड टेस्टिंग )
कोरोना वायरस
- फोटो : PTI
प्रति व्यक्ति पैमाने पर अमेरिका जांच में कई विकसित देशों से पीछे है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार लोगों की संख्या से ज्यादा, उनकी जांच कब हुई और वे कौन थे, यह ज्यादा मायने रखता है। इस लिहाज से भी सभी देशों की अलग तस्वीर है। दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर मैंं संक्रमितों से मिली सूचना के आधार पर कॉन्टैक्ट ट्रैसिंग भी तेजी से की गई।
इस प्रकार इन देशों को संक्रमित की पूरी तस्वीर पता चल सकी। इसके चलते वहां पॉजिटिव लोगों की संख्या को कम कर लिया गया। लेकिन ज्यादा आबादी वाले अधिकांश देशों ने ज्यादा जांच एक साथ करने के लिए इंतजार किया और कॉन्टैक्ट ट्रैसिंग के लिए भी ज्यादा प्रयास नहीं हुए। लिहाजा, वहां वायरस तेजी से फैला। सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिका है। यहां 90 फीसदी जांच पिछले दो सप्ताह में हुई हैं।
मृत्यु दर (फैटेलिटी रेट)
कोरोना वायरस
- फोटो : PTI
इटली और स्पेन में मृत्यु दर सबसे ज्यादा रही। जर्मनी की कम है तो चीन इनके बीच में है। विशेषज्ञों की नजर में इसे समझना इतना सरल भी नहीं है, क्योंकि मृतकों की गिनती में भी खामियां हैं। मसलन, वुहान में आधिकारिक तादाद 2,535 बताई गई। लेकिन कई रिपोर्टें इशारा करती हैं कि वहां हजारों के अंतिम संस्कार की सामग्री खरीदी गई थी। अस्पतालों का माहौल देखकर वुहान, इटली और स्पेन से कई लोग मजबूर होकर अपने घर चले गए थे।
यह नहीं पता लग पाया कि इनमें से कितने ठीक हुए या नहीं। इटली और फ्रांस में उन्हीं लोगों को कोरोना से मृत माना गया, जिन्होंने अस्पतालों में अंतिम सांस ली। जर्मनी में तो कुछ मरीजों की गिनती ही नहीं की गई। सिर्फ बीमार की जांच हुई है तो संक्रमितों की संख्या भी कम दिखाई देगी और मरने वालों का प्रतिशत भी उतना ही कम होगा। जर्मनी में मृत्यु दर सिर्फ एक फीसदी रही है।
चरम स्थिति (द पीक)
जानें क्या है 'फॉल्स निगेटिव' मरीज।
- फोटो : PTI
जब महामारी का ग्राफ नीचे (फ्लैटन) आता है तो उसके चरम स्तर से तुलना होती है। लेकिन चरम स्तर को स्पष्ट ढंग से पेश नहीं किया जाता। संक्रमण का प्रकोप बिना जांच के बढ़ते समय काफी संक्रमित लोग जान गंवा चुके होते हैं। इटली में मार्च की शुरुआत में कुछ सौ मरीज ही सामने आ रहे थे, जिनकी संख्या 21 मार्च को 6,500 हो गई।
21 तारीख के बाद नए संक्रमण का आंकड़ा चार से छह हजार के बीच रहा है। संक्रमितों का ग्राफ शीर्ष पर पहुंचकर और ऊपर जाने की बजाय आसपास सीधा रहे या नीचे की ओर आने लगे। उसे सपाट ग्राफ (कर्व फ्लैटनिंग) कहते हैं। लेकिन सपाट ग्राफ का मतलब तभी है, जब मौजूद सक्रिय मामलों में मरने वालों की संख्या घटे।
...और लॉकडाउन
लॉकडाउन
- फोटो : PTI
विकसित देशों समेत दुनियाभर में 2 अरब लोग लॉकडाउन में रह रहे हैं। लेकिन इसके लिए स्टे एट होम, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्द भी प्रचलित हैंै। कई जगह लॉकडाउन में कुछ कार्यों में छूट है। कुछ जगह पांच-दस लोगों को एकत्र होने दिया जाता है तो कुछ जगह दो लोग साथ नहीं जा सकते।
कुछ जगह अंतिम संस्कार में लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध है, तो कुछ जगह छूट है। अमेरिका जैसी जगह पर जबरदस्ती नियमों का पालन नहीं कराया जा रहा। इटली समेत कई देशों ने फौजियों को तैनात कर दिया है। फ्रांस में आर्थिक दंड दिया गया है।
चीन में सुरक्षा बलों ने लोगों को बाहर नहीं निकलने दिया। कठोर दंड भी रखा गया। फिलीपींस के राष्ट्रपति ने तो लॉकडाउन तोड़ने वालों को गोली मारने के आदेश तक दे दिए। इटली में लॉकडाउन अलग-अलग चरणों में किया गया। पहले लोग देशभर में अपने काम से यात्रा कर सकते थे, अब घर से बाहर निकलने पर जुर्माना है।
भारत में लॉकडाउन मतलब.. परिवार के साथ रहना, घर से काम, न कहीं जाना न किसी को बुलाना!
कोरोना वायरस
- फोटो : PTI
भारतीयों के लिए लॉकडाउन के मायने उनकी जीवन शैली पर असर से समझा जा सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने लॉकडाउन में जिंदगी पर वीडियो जारी किया। इसमें अलग अलग वर्गों की परिभाषा दी गई है। इनमें विद्यार्थियों के लिए लॉकडाउन का मतलब समय सारणी बनाकर उसका पालन करना, वर्किंग प्रोफेशनल्स के लिए घर से काम, युवाओं के लिए व्यायाम, कैरम जैसे इंडोर खेल और मस्ती करना शामिल है।
वहीं घर में किसी का न आना, कहीं न जाना और परिजनों के साथ समय बिताना भी भारतीयों की लॉकडाउन की परिभाषा में शामिल है। कुछ के लिए सालों बाद पुरानी हॉबी शुरू करना, किताबें लिखना, बुजुर्गों के लिए पोते-पोतियों से सोशल मीडिया व नए गैजेट्स जानने का अवसर भी है।
चार मूल मंत्र
कोरोना वायरस : लॉकडाउन
- फोटो : PTI
- घर से बाहर तभी जाएं जब अति आवश्यक हो। न किसी के घर जाएं, न ही किसी को बुलाएंं।
- बार-बार स्पर्श की जाने वाली सतहों और जगहों को नियमित तौर पर साफ करते रहें।
- अनावश्यक खरीदारी न करें। हर जरूरी सामग्री उपलब्ध है।
- विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करें, दोस्तों व परिवजनों के साथ फोन पर या ऑनलाइन संपर्क में रहें।