वेब सीरीज मिर्जापुर में दिव्येंदु शर्मा के किरदार मुन्ना त्रिपाठी का एक डायलॉग है जो बहुत मशहुर हुआ कि 'बहुत तकलीफ होती है जब आप योग्य हों लेकिन लोग आपकी योग्यता ना पहचानें'। कभी कभी ऐसा ही होता है कि योग्यता खुलकर सामने नहीं आ पाती और कलाकार की भावना आहत हो जाती है और तब उसे लगता है कि उसकी योग्यता की सही पहचान नहीं हुई। बॉलीवुड में कितने ही ऐसे कलाकार रहें जिन्होंने अपने लिए शायद ऐसा महसूस किया होगा। ऐसा कहने वालों में अभिनेता दिलीप धवन भी शामिल थे। 1955 में जन्में दिलीप धवन ने फिल्में की, छोटे पर्दे पर काम किया लेकिन उन्हें वह मुकाम कभी हासिल नहीं किया जिसके वह हकदार थे।
बेहद कम उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए दिलीप धवन
वह मशहूर जरूर हुए लेकिन फिर भी उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि उनकी कला के साथ सही न्याय नहीं हुआ।दिग्गज कलाकार किशन धवन पर फिल्माया गया गाना चलत मुसाफिर मोह लियो रे..काफी मशहूर हुआ था। इसकी वजह थी कि उस दौर के हिसाब से वह गाना काफी अलग था और आज भी लोग इस गाने के रूप बदल बदल कर गाते हैं। उन्हीं मशहूर अभिनेता के हैंडसम बेटे थे दिलीप धवन जिन्होंने बेहद कम उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।
दिलीप धवन के पिता अभिनेता था इसलिए उनके अंदर बचपन से ही अभिनय करने का शौक था। यही वजह थी कि उन्होंने पहले अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर पूणे आ गए। यहां उन्होंने दो साल का एक्टिंग का कोर्स भी किया। इसके बाद मुंबई में वह अपनी किस्मत आजमाने आ गए। साल 1968 में उन्होंने संघर्ष फिल्म में काम किया जिसमें वह छोटे दिलीप कुमार के किरदार में नजर आए थे। हालांकि बड़े होने के बाद उन्हें ज्यादा फायदा नहीं मिला।
जब फिल्म पाने में दिलीप धवन को ज्यादा सफलता नहीं मिली तो उन्होंने मॉडलिंग शुरू कर दी और यह उनके लिए सही साबित हुई। 1978 में उन्होंने पहली फिल्म साइन की जिसका नाम था 'अरविंद देसाई की अजीब दास्तान'। इस फिल्म के निर्देशक थे सईद मिर्जा। 1980 में दिलीप धवन को एक और फिल्म में काम करने का मौका मिला जिसमें अनिल कपूर ने भी छोटा सा रोल निभाया था। इस फिल्म का नाम था 'एक बार कहो'।
दिलीप धवन कहते थे कि, 'मुझे इस बात की खुशी है कि 1980 में मुझे नसीरुद्दीन शाह जैसे दिग्गज कलाकार के साथ काम करने का मौका मिला। वह नसीरुद्दीन शाह के साथ अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है में नजर आए 'थे। 1968 में दिलीप धवन ने दिलीप कुमार के बचपन का रोल किया था और उसके ठीक 22 साल बाद 1990 में उन्होंने 'इज्जतदार' फिल्म में दिलीप कुमार के साथ फिर से काम करने का मौका मिला था।
दिलीप धवन को एहसास हुआ कि उनके अंदर कला होने के बाद भी बड़े पर्दे पर खास पहचान नहीं मिली तो उन्होंने टीवी सीरियल का रुख कर लिया। वह 'नुक्कड़' सीरियल में नजर आए थे और इसमें निभाया उनके गुरू के किरदार को जबरदस्त तारीफ मिली। हालांकि इसके बाद उन्होंने फिर बड़े पर्दे पर वापसी की और कैरेक्टर रोल करने लगे।उन्होंने 'विरासत', 'स्वर्ग', 'हम साथ साथ है' जैसी फिल्मों में नजर आए। 1982 में वह फिल्म निर्माता भी बने और सुपरहिट फिल्म बनाई साथ साथ जिसमें फारुख शेख और दीप्ति नवल ने मुख्य भूमिका निभाई थी। दिलीप धवन ने कभी शादी नहीं की। उन्होंने कहा था कि मुझे जिंदगी में कभी समय ही नहीं मिला कि मैं सोचूं कि मैंने शादी क्यों नहीं की या ये भी सोचूं कि मैंने जिंदगी में क्या कमाया और क्या गवाया। महज 45 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने के कारण तुरंत उनका निधन हो गया। जैसे उन्होंने अपनी जिंदगी में कुछ नहीं सोचा वैसे मौत ने भी उन्हें सोचने के मौका नहीं दिया। दिलीप इस दुनिया से चले गए लेकिन उनके निभाए किरदार को लोग नहीं भूल पाएंगे।