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कलिदास के सौंदर्य वर्णन और ऋतु वर्णन अद्वितीय हैं और उनकी उपमाएं बेमिसाल। उनकी रचनाएं प्रस्तुत करने के क्रम में हम उनकी रचना मेघदूत के कुछ चुनिंदा श्लोक प्रस्तुत कर रहे हैं। कहानी कुछ इस तरह से शुरु होती है- एक यक्ष था। वह अपने कर्तव्य पालन में असावधान हुआ तो यक्षपति ने उसे शाप दिया कि वर्ष-भर पत्नी का भारी विरह सहो। उसने रामगिरि के आश्रमों में बस्ती बनाई जहाँ घने छायादार पेड़ थे और जहाँ सीता जी के स्नानों द्वारा पवित्र हुए जल-कुंड भरे थे। आगे हम कुछ चुने हुए श्लोक प्रस्तुत कर रहे हैं।
यत्र स्त्रीणां प्रियतमभुजालिङ्गनोच्छ्वासिताना-
मङ्गग्लानि सुरतजनितां तन्तुजालावलम्बा:।
त्वत्संरोधापगमविशपैश्चन्द्रपादैनिशीथे
व्यालुम्पन्ति स्फुटजललवस्यन्दिनश्चन्द्रकान्ता:।।
वहाँ अलका में आधी रात के समय जब तुम बीच में नहीं होते तब चन्द्रमा की निर्मल किरणें झालरों में लटकी हुई चन्द्रकान्त मणियों पर पड़ती हैं, जिससे वे भी जल- बिन्दुओं की फुहार चुआने लगती हैं और प्रियतमों के गाढ़ भुजालिंगन से शिथिल हुई कामिनियों के अंगों की रतिजनित थकान को मिटाती हैं।
गत्युत्कम्पादलकपतितैर्यत्र मन्दारपुष्पै:
पत्रच्छेदै: कनककमलै: कर्णविभ्रंशिभिश्च।
मुक्ताजालै: स्तनपरिसरच्छिन्नसूत्रैश्च हारै-
र्नैशोमार्ग: सवितुरुदये सूच्यते कामिनीनाम्।।
वहाँ अलका में प्रात: सूर्योदय के समय कामिनियों के रात में अभिसार करने का मार्ग चाल की दलक के कारण घुँघराले केशों से सरके हुए मन्दार फूलों से, कानों से गिरे हुए सुनहरे कमलों के पत्तेदार झुमकों से, बालों में गुँथे मोतियों के बिखेरे हुए जालों से, और उरोजों पर लटकनेवाले हारों के टूटकर गिर जाने से पहचाना जाता है।
मत्वा देवं धनपतिसखं यत्र साक्षाद्वसन्तं
प्रायश्चापं न वहति भयान्मन्मथ: षट्पदज्यम्।
सभ्रूभङ्गप्रहितनयनै: कामिलक्ष्येष्वमोघै-
स्तस्यारम्भश्चतुरवनिताविभ्रमैरेव सिद्ध:।।
वहाँ अलका में कुबेर के मित्र शिवजी को साक्षात बसता हुआ जानकर कामदेव भौंरों की प्रत्यंचावाले अपने धनुष पर बाण चढ़ाने से प्राय: डरता है। कामीजनों को जीतने का उसका मनोरथ तो नागरी स्त्रियों की लीलाओं से ही पूरा हो जाता है, जब वे भौंहें तिरछी करके अपने कटाक्ष छोड़ती हैं जो कामीजनों में अचूक निशाने पर बैठते हैं।
कलिदास के सौंदर्य वर्णन और ऋतु वर्णन अद्वितीय हैं और उनकी उपमाएं बेमिसाल। उनकी रचनाएं प्रस्तुत करने के क्रम में हम उनकी रचना मेघदूत के कुछ चुनिंदा श्लोक प्रस्तुत कर रहे हैं। कहानी कुछ इस तरह से शुरु होती है-
एक यक्ष था। वह अपने कर्तव्य पालन में असावधान हुआ तो यक्षपति ने उसे शाप दिया कि वर्ष-भर पत्नी का भारी विरह सहो। उसने रामगिरि के आश्रमों में बस्ती बनाई जहाँ घने छायादार पेड़ थे और जहाँ सीता जी के स्नानों द्वारा पवित्र हुए जल-कुंड भरे थे। आगे हम कुछ चुने हुए श्लोक प्रस्तुत कर रहे हैं।
यत्र स्त्रीणां प्रियतमभुजालिङ्गनोच्छ्वासिताना-
मङ्गग्लानि सुरतजनितां तन्तुजालावलम्बा:।
त्वत्संरोधापगमविशपैश्चन्द्रपादैनिशीथे
व्यालुम्पन्ति स्फुटजललवस्यन्दिनश्चन्द्रकान्ता:।।
वहाँ अलका में आधी रात के समय जब तुम बीच में नहीं होते तब चन्द्रमा की निर्मल किरणें झालरों में लटकी हुई चन्द्रकान्त मणियों पर पड़ती हैं, जिससे वे भी जल- बिन्दुओं की फुहार चुआने लगती हैं और प्रियतमों के गाढ़ भुजालिंगन से शिथिल हुई कामिनियों के अंगों की रतिजनित थकान को मिटाती हैं।
गत्युत्कम्पादलकपतितैर्यत्र मन्दारपुष्पै:
पत्रच्छेदै: कनककमलै: कर्णविभ्रंशिभिश्च।
मुक्ताजालै: स्तनपरिसरच्छिन्नसूत्रैश्च हारै-
र्नैशोमार्ग: सवितुरुदये सूच्यते कामिनीनाम्।।
वहाँ अलका में प्रात: सूर्योदय के समय कामिनियों के रात में अभिसार करने का मार्ग चाल की दलक के कारण घुँघराले केशों से सरके हुए मन्दार फूलों से, कानों से गिरे हुए सुनहरे कमलों के पत्तेदार झुमकों से, बालों में गुँथे मोतियों के बिखेरे हुए जालों से, और उरोजों पर लटकनेवाले हारों के टूटकर गिर जाने से पहचाना जाता है।
मत्वा देवं धनपतिसखं यत्र साक्षाद्वसन्तं
प्रायश्चापं न वहति भयान्मन्मथ: षट्पदज्यम्।
सभ्रूभङ्गप्रहितनयनै: कामिलक्ष्येष्वमोघै-
स्तस्यारम्भश्चतुरवनिताविभ्रमैरेव सिद्ध:।।
वहाँ अलका में कुबेर के मित्र शिवजी को साक्षात बसता हुआ जानकर कामदेव भौंरों की प्रत्यंचावाले अपने धनुष पर बाण चढ़ाने से प्राय: डरता है। कामीजनों को जीतने का उसका मनोरथ तो नागरी स्त्रियों की लीलाओं से ही पूरा हो जाता है, जब वे भौंहें तिरछी करके अपने कटाक्ष छोड़ती हैं जो कामीजनों में अचूक निशाने पर बैठते हैं।