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Teri reports revealed Uttarakhand may be forced to face many Chamoli like disasters due to rising temperatures in the Himalayan region
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चिंताजनक रिपोर्ट: 1.9 डिग्री तक बढ़ जायेगा उत्तराखंड का तापमान, भारी बारिश लाएगी चमोली जैसी अनेकों आपदाएं
अमित शर्मा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Fri, 26 Mar 2021 05:38 PM IST
सार
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रिपोर्ट का दावा, उत्तराखंड की कृषि पर पड़ेगा भारी असर, ग्रामीण क्षेत्रों में कई गुना बढ़ सकता है पलायन और गरीबी,,,
चमोली में आई त्रासदी ने राज्य के लोगों को झकझोर कर रख दिया था, लेकिन वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि 2021 से 2050 के बीच राज्य को ऐसी अनेक त्रासदियां झेलने को मजबूर होना पड़ सकता है। इसके पीछे हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते तापमान को जिम्मेदार ठहराया गया है। अनुमान है कि अगले 30 सालों में उत्तराखंड के तापमान में 1.9 डिग्री तक की वृद्धि हो सकती है। इसके कारण ठंड के सीजन में बारिश में कमी आएगी, लेकिन मानसून सीजन में भारी बारिश होगी। इससे चमोली जैसी अनेक त्रासदीपूर्ण घटनाएं घट सकती हैं। पर्यावरण का यह परिवर्तन राज्य के पलायन की समस्या को गहरा बना सकता है।
राज्य के हर जिले का व्यापक अध्ययन
जर्मनी की पोस्टडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट रिसर्च (PIK) और देश द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (teri) के एक संयुक्त शोध में यह बात सामने आई है कि ग्लोबल वार्मिंग के तमाम कारकों के कारण उत्तराखंड के तापमान में 1.6 डिग्री से 1.9 डिग्री तक की बढ़ोतरी हो सकती है। इस अध्ययन की विशेष बात रही है कि इसमें पूरे हिमालयी क्षेत्र की बजाय 25-25 किलोमीटर की दूरी पर बेहद छोटे-छोटे क्षेत्रों पर भी तापमान बढ़ोतरी के असर का अध्ययन किया गया है। रिपोर्ट में राज्य के हर एक जिले में तापमान बढ़ोतरी, बारिश और इसके कारण पड़ने वाले कृषि पर असर का अध्ययन हुआ है।
सौरभ भारद्वाज (फेलो, टेरी) ने अमर उजाला को बताया कि तापमान की इस बढ़ोतरी का असर यह होगा कि इससे राज्य में होने वाली बारिश में 6-8 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी। लेकिन यह बढ़ोतरी एक सामान नहीं होगी। इससे जुलाई से नवंबर तक के मानसून सीजन में वर्ष में तेज बढ़ोतरी हो जायेगी, तो ठण्ड के मौसम में वर्षा में कमी हो जायेगी।
ताले लगे घर, परती खेत: उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन और पलायन (Locked houses Fallow Lands: Climate Change and Migration in Uttarakhand, India) नाम से जारी इस रिपोर्ट में पर्यावरण में हो रहे असंतुलन के गंभीर परिणाम की आशंका जताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मानसून सीजन में भारी बारिश को संभालना यहां की नदियों के लिए मुश्किल होगा। इससे बाढ़ और चमोली जैसी आपदाओं में बढ़ोतरी होगी और राज्य के उत्तरकाशी, चमोली, रूद्रप्रयाग और पिथौरागढ़ जैसे क्षेत्रों में भारी जनहानि होने की आशंका बन सकती है।
वहीं, ठण्ड के समय होने वाली बारिश में काफी कमी आ जाएगी। इस कारण कृषि के समय खेतों को वर्षा जल नहीं मिल पायेगा। इसके कारण राज्य के कुल उत्पादन में भी कमी आ सकती है।
गरीबी–पलायन बढ़ेगा
पर्यावरण विशेषज्ञ हिमानी उपाध्याय (फेलो, PIK) ने बताया कि उत्तराखंड राज्य की 70 फीसदी कृषि सीधे तौर पर वर्षा जल पर आधारित है। अगर कृषि के अनुकूल वांछित मौसम में वर्षा नहीं होगी, तो इससे कुल कृषि उत्पादन में कमी आ जाएगी। इससे ग्रामीण इलाकों में लोगों में गरीबी की समस्या बढ़ेगी। इससे लोग मजबूरन राज्य से पलायन को मजबूर होंगे जो राज्य में पहले ही एक गंभीर मुद्दा है।
अनुमान है कि यहां लोगों को उचित मात्रा में रोजगार की संभावना न बन पाना पलायन के पीछे सबसे गंभीर मुद्दा है। अनुमान है कि राज्य का 50 फीसदी पलायन इसी कारण से होता है। इसके अलावा शिक्षा कारणों से 15 फीसदी, स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी के कारण 9 फीसदी पलायन होता है। अनुमान है कि 2011 से राज्य के 734 पहाड़ी गांवों में इक्का-दुक्का घरों में ही लोग रह गये हैं। बाकी के लोगों ने अपनी सुविधानुसार अन्य जगहों पर पलायन कर लिया है।
रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि भारी आबादी की जरूरतों के कारण ऊर्जा संसाधनों का उपयोग बढ़ने से तापमान की बढ़ोतरी निश्चित है। पर्यावरण संतुलन साधने के तमाम प्रयास किये जाने के बाद भी तापमान बढ़ोतरी को 1.5 फीसदी से कम पर रोकना संभव नहीं होगा। लेकिन अगर इसे दो फीसदी से कम पर रोका जा सके, पर्यावरण संतुलन साधने के व्यापक प्रयास किये जाएं और केंद्र-राज्य और जनसहभागिता के स्तर पर पूरा सहयोग किया जाए, तो तापमान वृद्धि के नकारात्मक परिणामों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
रिपोर्ट में राज्य सरकार को जिलेवार ज्यादा मानवीय प्रेक्षण करने, मौसम की खराबी से लोगों को बचाने और कृषि पर संकट की स्थिति में लोगों को भोजन और रोजगार उपलब्ध कराने के व्यापक सुझाव भी दिए गये हैं।
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