देश में आने वाले चक्रवाती तूफानों के कहर बरपाने से पहले ही उनके तीव्रता और नुकसान पहुंचाने की क्षमता का पता चल जाएगा। इससे नुकसान और जनहानि को कम करने में काफी मदद मिलेगी। दरअसल, देश के वैज्ञानिकों के एक समूह ने तीव्र चक्रवाती तूफानों का जल्द पता लगाने का एक नया तरीका ईजाद कर लिया है। बता दें कि पिछले दिनों आए चक्रवाती तूफान यास ने खासी तबाही मचाई थी।
पानी में बनने वाली भंवर से लगाया जाएगा पूर्वानुमान
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने कहा कि इस तरीके में समुद्र की सतह पर उपग्रह से तूफान का पूर्वानुमान लगाने से पहले पानी में भंवर के प्रारंभिक लक्षणों का अनुमान लगाया जाता है।
अब तक सुदूर संवेदी तकनीकों से इनका समय पूर्व पता लगाया जाता रहा है। हालांकि यह तरीका तभी कारगर होता है जब समुद्र की गर्म सतह पर कम दबाव का क्षेत्र भलीभांति विकसित हो जाता है।
चार भीषण चक्रवाती तूफानों पर किया अध्ययन
डीएसटी ने कहा कि चक्रवात के आने से पर्याप्त समय पहले उसका पूर्वानुमान लगने से तैयारियां करने के लिए समय मिल सकता है और इसके व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होते हैं।
वैज्ञानिकों ने मॉनसून के बाद आए चार भीषण चक्रवाती तूफानों पर यह अध्ययन किया है। इनमें फालिन (2013), वरदा (2013), गज (2018) और मादी (2013) शामिल हैं। मॉनसून के बाद आए दो तूफानों मोरा (2017) और आइला (2009) पर भी अध्ययन किया गया।
चार दिन पहले अनुमान बता देंगे विशेषज्ञ
पत्रिका 'एट्मॉस्फियरिक रिसर्च' में हाल ही में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया। अध्ययनकर्ता दल में आईआईटी, खड़गपुर से जिया अलबर्ट, बिष्णुप्रिया साहू तथा प्रसाद के भास्करन शामिल रहे। उन्होंने कहा कि मॉनसून के मौसम से पहले और बाद में विकसित होने वाले तूफानों के लिए कम से कम चार दिन और पहले सही पूर्वानुमान लगाने में यह नई पद्धति कारगर हो सकती है।
विस्तार
देश में आने वाले चक्रवाती तूफानों के कहर बरपाने से पहले ही उनके तीव्रता और नुकसान पहुंचाने की क्षमता का पता चल जाएगा। इससे नुकसान और जनहानि को कम करने में काफी मदद मिलेगी। दरअसल, देश के वैज्ञानिकों के एक समूह ने तीव्र चक्रवाती तूफानों का जल्द पता लगाने का एक नया तरीका ईजाद कर लिया है। बता दें कि पिछले दिनों आए चक्रवाती तूफान यास ने खासी तबाही मचाई थी।
पानी में बनने वाली भंवर से लगाया जाएगा पूर्वानुमान
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने कहा कि इस तरीके में समुद्र की सतह पर उपग्रह से तूफान का पूर्वानुमान लगाने से पहले पानी में भंवर के प्रारंभिक लक्षणों का अनुमान लगाया जाता है।
अब तक सुदूर संवेदी तकनीकों से इनका समय पूर्व पता लगाया जाता रहा है। हालांकि यह तरीका तभी कारगर होता है जब समुद्र की गर्म सतह पर कम दबाव का क्षेत्र भलीभांति विकसित हो जाता है।
चार भीषण चक्रवाती तूफानों पर किया अध्ययन
डीएसटी ने कहा कि चक्रवात के आने से पर्याप्त समय पहले उसका पूर्वानुमान लगने से तैयारियां करने के लिए समय मिल सकता है और इसके व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होते हैं।
वैज्ञानिकों ने मॉनसून के बाद आए चार भीषण चक्रवाती तूफानों पर यह अध्ययन किया है। इनमें फालिन (2013), वरदा (2013), गज (2018) और मादी (2013) शामिल हैं। मॉनसून के बाद आए दो तूफानों मोरा (2017) और आइला (2009) पर भी अध्ययन किया गया।
चार दिन पहले अनुमान बता देंगे विशेषज्ञ
पत्रिका 'एट्मॉस्फियरिक रिसर्च' में हाल ही में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया। अध्ययनकर्ता दल में आईआईटी, खड़गपुर से जिया अलबर्ट, बिष्णुप्रिया साहू तथा प्रसाद के भास्करन शामिल रहे। उन्होंने कहा कि मॉनसून के मौसम से पहले और बाद में विकसित होने वाले तूफानों के लिए कम से कम चार दिन और पहले सही पूर्वानुमान लगाने में यह नई पद्धति कारगर हो सकती है।