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Ram chitrayan: Dr manisha Vajpayee make painting book based on ramayana dohas
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Ram chitrayan: रामचरित मानस की चौपाइयों को कलात्मक तरीके से युवाओं तक पहुंचाने की बेहतरीन कोशिश
Ram chitrayan: रामायण के सातों कांड (बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, सुंदर कांड, किष्किन्धा कांड, लंका कांड और उत्तर कांड) के खास और चर्चित दोहों और चौपाइयों को डॉ मनीषा ने 108 पेंटिंग के जरिये खासकर युवा वर्ग को ध्यान में रख कर कलात्मक तरीके से समझाने की कोशिश की है...
डॉ. मनीषा बाजपेयी की ‘राम चित्रायन’ पेंटिंग्स
- फोटो : Amar Ujala
देश में राम और रामायण को लेकर भले ही सियासत खूब होती हो, लेकिन इसके कलात्मक पक्ष और संदेशों को आम लोगों तक और खासकर युवा पीढ़ी तक ईमानदारी से पहुंचाने का काम बहुत कम ही लोग कर रहे हैं। अगर आपको रामायण के कुछ मशहूर दोहे और इसकी चौपाइयां समझनी हों तो देहरादून की कलाकार डॉ. मनीषा बाजपेयी की कला के ज़रिये समझ सकते हैं। मनीषा ने कोरोना काल का बेहद रचनात्मक तरीके से इस्तेमाल किया। इन दो-ढाई सालों में उन्होंने रामायण की 108 ऐसी चौपाइयां और दोहे का हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद किया, हरेक को रंगों और कलात्मक अभिव्यक्ति में ढाला और इसे एक शानदार कलात्मक किताब के रूप में पेश कर दिया। दिल्ली की ललित कला अकादमी में आप 10 अक्तूबर तक उनकी इन 108 अद्भुत पेंटिंग की प्रदर्शनी देख सकते हैं। प्रदर्शनी और इन चित्रों पर छपी आकर्षक किताब का नाम दिया गया है – रामचित्रायन।
कैनवस पर अक्रेलिक रंगों के जरिए उन्होंने हर दोहे के उन चरित्रों और भावों को बहुत ही खूबसूरती से पेश किया है, जिनका रामायण में खास महत्व है। रामायण के सातों कांड (बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, सुंदर कांड, किष्किन्धा कांड, लंका कांड और उत्तर कांड) के खास और चर्चित दोहों और चौपाइयों को डॉ मनीषा ने 108 पेंटिंग के जरिये खासकर युवा वर्ग को ध्यान में रख कर कलात्मक तरीके से समझाने की कोशिश की है। हर कांड को उन्होंने अलग-अलग रंग के बैकग्राउंड पर पेश किया है औऱ उसका मतलब कुछ सांकेतिक पात्रों के जरिये समझाने की कोशिश की है।
‘राम चित्रायन’ पेंटिंग्स
- फोटो : Amar Ujala
मनीषा बताती हैं कि रामायण और भारतीय धर्मग्रंथों का अपना खास महत्व है, हरेक की रचना बेहद सोच समझकर और जीवन के व्यावहारिक संदेशों को ध्यान में रखकर की गई है। हर युग में इनका महत्व है। लेकिन आज की युवा पीढ़ी इन्हें पढ़ना नहीं चाहती, समझना नहीं चाहती। मोटे तौर पर रामायण की कहानियां राम, सीता, रावण, हनुमान जैसे पात्रों को देख समझकर या रामलीलाओं के जरिये कुछ परंपरागत मनोरंजन के तरीके से लोग समझते जानते हैं। जाहिर है पूरी रामायण पढ़ना और समझना आज के दौर में आसान नहीं है औऱ न ही युवाओं के पास इतना वक्त है। ऐसे में हमने ये छोटी सी कोशिश की है कि इसके खास हिस्सों को कुछ इस तरह समझाया बताया जा सके, जो आसानी से लोगों की समझ में आए।
डॉ. मनीषा खुद एक प्रशिक्षित न्यूरोवैज्ञानिक हैं, बेहद जुझारू हैं। कैंसर जैसे रोग से लड़ रही हैं लेकिन उन्होंने बेहद संजीदा तरीके से इस दौर को भी अपनी रचनात्मकता और कला के जरिए निकाला है। वे लगातार सक्रिय हैं। रामायण पर इस एतिहासिक काम के अलावा मूल रूप से उनका काम चारकोल से बनाई गई कलाकृतियों पर है। उन्होंने कला की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है, तमाम कलाकारों को देख-देख कर सीखा है और अलग-अलग विधाओं में अपनी रचनात्मकता को सामने लाने की कोशिश की है। मनीषा बताती हैं कि यह एक जटिल काम था और मैं बहुत समय से ये करना चाहती थी। कोरोना काल में मुझे ये करने का मौका मिल गया। उनका कहना है कि तमाम संघर्षों के बावजूद जिंदगी बहुत खूबसूरत है और अपनी कला के जरिए मैं यही संदेश देना चाहती हूं।
डॉ. मनीषा बाजपेयी की ‘राम चित्रायन’ पेंटिंग्स
- फोटो : Amar Ujala
मनीषा की कला और फोटोग्राफी की प्रदर्शनी पहले भी लग चुकी है। उनके चारकोल के काम की दो प्रदर्शनियां पहले भी ललित कला अकादमी में लग चुकी हैं। उनका काम राष्ट्रपति भवन, ललित कला अकादमी, कई अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों, लंदन और थिंपू में भी देखी जा सकती हैं। मनीषा के कामकाज को आगे बढ़ाने में उनके पति राजकुमार बाजपेयी का खास योगदान है। रामचित्रायन नाम की जो पुस्तक छपी है, उसका बेहतरीन प्रोडक्शन उनकी बदौलत संभव हो पाया है। खुद झारखंड काडर के आईएफएस राजकुमार को कला से खास लगाव रहा है और वन मानचित्रण( फ़ॉरेस्ट मैपिंग) में उनका बड़ा यगदान है।
बतौर प्रोफेसर वह देहरादून में काम कर रही हैं और प्रकृति के बीच रहना उन्हें अच्छा लगता है। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन जाने माने कलाकार धर्मेंद्र राठौड़ ने किया। उनका कहना था कि अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को कला के जरिए सामने लाना एक बड़ा काम है। ललित कला अकादमी की अध्यक्ष उमा नंदूरी ने इसे नई पीढ़ी के लिए एक बड़ा काम बताया वहीं जाने-माने कलाकार विजेंद्र शर्मा ने कहा कि भारतीय कला परिदृश्य में पहली बार पौराणिक कथाओं को कहने की ऐसी कलात्मक कोशिश हुई है।
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