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Gujarat Assembly Election Exit Poll BJP played master stroke with risky experiment Moving towards Record
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Exit Polls: सबसे रिस्की एक्सपेरिमेंट से भाजपा ने खेला मास्टर स्ट्रोक! एग्जिट पोल सही हुए तो बनेगा रिकॉर्ड
चुनाव से ठीक एक साल पहले भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री समेत पूरी कैबिनेट को ही बदल डाला था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव से ठीक एक साल पहले इतना बड़ा राजनीतिक प्रयोग चुनाव परिणामों की पूरी दशा और दिशा बदल सकता था।
एग्जिट पोल के अनुमान अगर चुनावी परिणामों में तब्दील होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी रिस्की एक्सपेरिमेंट करने वाली न सिर्फ पार्टी बनेगी, बल्कि गुजरात एक बार फिर से बड़ी राजनीतिक प्रयोगशाला के तौर पर खुद को स्थापित करेगा। सियासी जानकारों का कहना है कि बीते एक साल के भीतर भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और बड़े नेताओं ने गुजरात में जिस तरीके से पार्टी की पूरी ओवरहालिंग कर डाली, उसी का यह नतीजा है कि एक साल पहले तक हाथ से खिसकती हुई सरकार एग्जिट पोल के अनुमानों में अब तक के सबसे बड़े जनाधार के साथ गुजरात में सरकार बनाने की ओर बढ़ रही है।
दरअसल, चुनाव से ठीक एक साल पहले भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री समेत पूरी कैबिनेट को ही बदल डाला था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव से ठीक एक साल पहले इतना बड़ा राजनीतिक प्रयोग चुनाव परिणामों की पूरी दशा और दिशा बदल सकता था। इस प्रयोग की उस वक्त बहुत चर्चा भी हुई थी। फिलहाल एग्जिट पोल के अनुमान के मुताबिक गुजरात में बड़ा उलटफेर न सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा सीटों के तौर पर दिखा रहे हैं, बल्कि आम आदमी पार्टी को एक बड़ी पार्टी के तौर पर गुजरात में सीटें मिलने का अनुमान जता रहे हैं।
गुजरात चुनावों के बाद अलग-अलग एजेंसियों के आए एग्जिट पोल भारतीय जनता पार्टी को गुजरात में बड़ी सफलता की ओर ले जाता हुआ दिखा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक आरएस मदान कहते हैं कि अगर गुजरात के एग्जिट पोल चुनाव परिणाम में तब्दील होते हैं तो यह अब तक के राजनीतिक इतिहास का सबसे बड़ा उदाहरण होगा कि कैसे चुनाव से ठीक एक साल पहले पूरी की पूरी सरकार को बदल कर फिर से सत्ता में मजबूती से वापसी की जाती है।
मदान कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने पूरी सरकार को बदल कर राजनीति के इतिहास में सबसे बड़ा 'रिस्की एक्सपेरिमेंट' चुनावी माहौल में किया था। वह कहते हैं कि 2017 में पाटीदार आंदोलन के बाद बनी भाजपा की सरकार यह संदेश देने के लिए काफी थी कि पाटीदार आंदोलन से चुनाव तो कठिन हो गए थे, लेकिन गुजरात की जनता ने भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा जताकर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी।
2017 में बनी सरकार में पाटीदार आंदोलन में शामिल समुदाय से ताल्लुक रखने वालों को न सिर्फ अहमियत दी गई बल्कि उनको शीर्ष पदों पर भी पहुंचाया गया। कहां जा रहा था कि पाटीदार आंदोलन के बाद बने इस सरकार ने सब कुछ दुरुस्त कर लिया है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी पूरी तरीके से उससे खुश नहीं थी। नतीजतन चुनाव से ठीक एक साल पहले पूरी की पूरी सरकार में बैठे सभी नुमाइंदे बदल दिए गए।
राजनीतक विविश्लेषक ओमभाई कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी में ही हिम्मत थी कि उसने चार साल तक सधी हुई पारी खेलने वाली पूरी की पूरी सरकार को बदल डाला। भारतीय जनता पार्टी के किए गए इस प्रयोग को लेकर उस वक्त भी तमाम तरीके की राजनीतिक चर्चाएं हुई। वह कहते हैं कि कहा यह तक गया कि चुनाव से ठीक एक साल पहले इस तरीके के बड़े फेरबदल भारतीय जनता पार्टी को चुनावों में बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। हालांकि गुजरात की राजनीति को करीब से समझने वाले हिरेनभाई राबरिया कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के अपने खुद के सर्वे यह बताते थे कि अगर इसी सरकार के साथ चुनावी मैदान में उतरा गया तो भारतीय जनता पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है। यही वजह रही कि भारतीय जनता पार्टी ने ना सिर्फ एक साल पहले पूरे मंत्रिमंडल को बदल करके नए मुख्यमंत्री और नए विधायकों को मंत्री बनाया। बल्कि पुरानी सरकार के मुख्यमंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री और कई मंत्रियों को इस बार चुनावी मैदान में भी जगह नहीं दी।
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राजनीतिक विश्लेषक हीरेनभाई कहते हैं कि चुनाव की तैयारी करने के लिए एक साल का वक्त बहुत कम होता है। बावजूद इसके भारतीय जनता पार्टी ने अपनी नई कैबिनेट के साथ चुनावी मैदान में बेहतर तरीके से राजनैतिक समीकरणों को भी साधने की कोशिश की। जब चुनाव में प्रत्याशियों को देने की बात हुई तो तकरीबन एक चौथाई पुराने विधायकों का टिकट काटकर नए लोगों पर दांव लगाया गया। वह कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी वैसे तो कई तरह के राजनीतिक प्रयोग करती रहती है लेकिन चुनाव से ठीक एक साल पहले पूरी की पूरी सरकार बदल देने जैसा प्रयोग बड़ा खतरनाक माना जा रहा था। अब एग्जिट पोल के अनुमान सामने आ गए हैं। अगर यही अनुमान नतीजों में तब्दील होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी का चुनाव से ठीक एक साल पहले उठाया गया कदम राजनीति की प्रयोगशाला में बड़ा उदाहरण माना जाएगा।
गुजरात चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल से सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को अब तक की सबसे ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान नहीं मिल रहा है बल्कि गुजरात में पहली दफे विधानसभा के चुनावों में किस्मत आजमाने वाली आम आदमी पार्टी को भी बड़ी सफलता मिलती हुई नजर आ रही है। हालांकि यह बात अलग है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं के लिहाज से यह सफलता बड़ी है या नहीं लेकिन राजनैतिक गलियारों में आम आदमी पार्टी को भविष्य की बड़ी पार्टी के तौर पर देखा जाने लगा है।
राजनीतिक विश्लेषण हरिहर भाई भाकरिया कहते हैं कि गुजरात में आम आदमी पार्टी को जो एग्जिट पोल में जितनी सीटें दिख रही हैं अगर वह चुनावी परिणामों में भी तब्दील होती है तो यह आप के लिए आने वाले चुनावों के लिहाज से बहुत फायदेमंद होने वाला है। वो कहते हैं कि निश्चित तौर पर आम आदमी पार्टी के रणनीतिकार गुजरात के एग्जिट पोल और फिर उसके बाद आने वाले नतीजों को न सिर्फ बेहतर तरीके से एनालिसिस करेंगे और उसके आधार पर अपनी रणनीति बनाकर लोकसभा चुनावों के साथ-साथ दूसरे राज्यों के चुनावों में भी उतरेंगे।
गुजरात के चुनावों के आए एग्जिट पोल में सिर्फ आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए भी बड़े संदेश छुपे हुए हैं। गुजरात के चुनावों में सर्वे करने वाली एक एजेंसी से जुड़े वरिष्ठ विश्लेषक बताते हैं कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच में जिस तरीके से वोटों के बीच में सेंधमारी हुई है उससे कांग्रेस को निश्चित तौर पर बहुत अलर्ट रहने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि बीते कुछ महीने से वह गुजरात के चुनावी समर में जब अपना डाटा इकट्ठा कर रहे थे तो इस बात के आसार स्पष्ट तौर पर नजर आ रहे थे कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के बड़े वोट बैंक में सेंधमारी कर रही है। हालांकि उनका कहना है कि आम आदमी पार्टी के कुछ विशेष पॉलिटिकल स्टैंड की वजह से कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक उनको मिलने से पीछे रह गया। राजनैतिक विश्लेषक ओम भाई कहते हैं कि एग्जिट पोल के अनुमान तो यही बता रहे हैं कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंधमारी की है। उनका कहना है कि आने वाली 8 तारीख को जब परिणाम सामने होंगे तो निश्चित तौर पर राजनीतिक दल अपने हार और जीत का विश्लेषण भी करेंगे और आगे की राजनीतिक राह को भी बेहतर बनाने की तैयारियां करेंगे।
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