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Flashback: 19-year-old Godhra scandal and black dot of history in the mirror of dates
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फ्लैश बैक : 19 साल पुराना गोधरा कांड और तारीखों के आईने में इतिहास की काली इबारत
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Wed, 17 Feb 2021 12:04 AM IST
गुजरात के इतिहास में कालिख की तरह दर्ज गोधरा कांड के 19 साल से फरार आरोपी रफीक हुसैन भटुक को रविवार रात को गिरफ्तार किया गया। वह गोधरा स्टेशन पर 7 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 बोगी जलाने के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था। इस बोगी में अयोध्या से लौट रहे 59 कार सेवकों की जिंदा जलने से मौत हो गई थी। गोधरा कांड में 31 आरोपियों को मृत्युदंड, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई जा चुकी है। वहीं 63 को बरी किया गया है। आइये इस जघन्य हत्याकांड व उसके बाद गुजरात में हुए खून-खराबे व उससे जुड़े घटनाक्रम पर नजर डालते हैं।
ये लंबी व अहम तारीखें हैं घटनाक्रम से जुड़ीं
27 फरवरी 2002 : गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच को भीड़ ने जला दिया। कोच में सवार 59 कारसेवकों की मौत हो गई। मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
28 फरवरी 2002 : गुजरात के अनेक क्षेत्रों में दंगा भड़क उठे। 1200 से अधिक लोग मारे गए। इनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक थे।
06 मार्च 2002 : गुजरात सरकार ने जांच आयोग गठित किया। उसे गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जांच सौंपी गई।
09 मार्च 2002 : पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) लगाया।
25 मार्च 2002 : केंद्र सरकार के दबाव की वजह से सभी आरोपियों पर से पोटा हटाया गया।
18 फरवरी 2003 : गुजरात में भाजपा सरकार के दोबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून लगा दिया गया।
21 नवंबर 2003 : सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा कांड व उसके बाद भड़के दंगों के मामलों की न्यायिक सुनवाई पर रोक लगाई।
04 सितंबर 2004 : तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने जस्टिस यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में एक जांच समिति बनाई।
21 सितंबर 2004: नवगठित संप्रग सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया और आरोपियों के खिलाफ पोटा आरोपों की समीक्षा का फैसला किया।
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17 जनवरी 2005 : यूसी बनर्जी समिति ने बताया कि एस-6 में लगी आग एक ‘दुर्घटना’ थी। इस आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी।
16 मई 2005 : पोटा समीक्षा समिति ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप नहीं लगाए जाएं।
13 अक्टूबर 2006 : गुजरात उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि यूसी बनर्जी समिति का गठन ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जांच कर रहा है। उसने यह भी कहा कि बनर्जी की जांच के परिणाम ‘अमान्य’ हैं।
26 मार्च 2008 : सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा ट्रेन में लगी आग और गोधरा के बाद हुए दंगों से जुड़े आठ मामलों की जांच के लिए विशेष जांच आयोग बनाया।
18 सितंबर 2008 : नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी और कहा कि यह पूर्व नियोजित षड्यंत्र था और एस-6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया।
12 फरवरी 2009 : सुप्रीम कोर्ट ने पोटा समीक्षा समिति के इस फैसले की पुष्टि की कि कानून को इस मामले में नहीं लागू किया जा सकता।
20 फरवरी 2009 : गोधरा कांड के पीड़ितों के रिश्तेदार ने आरोपियों पर से पोटा कानून हटाए जाने के हाईकोर्ट के फैसले को उच्चत सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
01 मई 2009 : सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा मामले की सुनवाई पर से प्रतिबंध हटाया और सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जांच दल ने गोधरा कांड और दंगे से जुड़े आठ मामलों की जांच में तेज की।
01 जून 2009 : गोधरा कांड की सुनवाई अहमदाबाद के साबरमती केंद्रीय जेल के अंदर शुरू हुई।
06 मई 2010 : सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अदालत को गोधरा ट्रेन कांड समेत गुजरात के दंगों से जुड़े नौ संवेदनशील मामलों में फैसला सुनाने से रोका।
28 सितंबर 2010 : सुनवाई पूरी हुई लेकिन शीर्ष अदालत द्वारा रोक लगाए जाने के कारण फैसला नहीं सुनाया गया।
18 जनवरी 2011 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने पर से प्रतिबंध हटाया।
22 फरवरी 2011 : विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया।
1 मार्च 2011: विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई।
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