भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के वैज्ञानिकों के अनुसार वर्तमान समय में लगभग आधा देश सूखे की चपेट में है। देश की 50% जनसंख्या में से लगभग 16% जनसंख्या ‘असाधारण’ या ‘भीषण’ सूखे की मार झेल रही है। ये वैज्ञानिक देश में वास्तविक समय में सूखे की पूर्वानुमान प्रणाली के प्रबंधन करने पर काम कर रहे हैं। आईआईटी के एसोसिएट प्रोफेसर, विमल मिश्रा ने बताया कि देश में सूखे की मार झेल रहे लोगों को इस वर्ष गर्मियों में पानी की उपलब्धता में बहुत सारी चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है।
देश में सूखे को लेकर वास्तविक समय की सटीक निगरानी प्रणाली का संचालन करने वाली उनकी टीम ने भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) से मौसम और वर्षा संबंधी आंकड़ों को एकत्र किया और फिर मिट्टी की नमी एवं सूखे के कारकों संबंधी आंकड़ों के साथ इसका अध्ययन किया, उनकी टीम में पीएचडी छात्र अमरदीप तिवारी भी शामिल हैं। आईआईटी गांधीनगर स्थित वाटर एंड क्लाइमेट लैब द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के परिणाम आईएमडी की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।
कठोर कदम उठाने की जरूरत
लैब के प्रमुख मिश्रा ने बताया कि, देश की जनसंख्या ‘असाधारण’ या ‘भीषण’ सूखे की मार झेल रही है। इसकी जानकारी हमें अपनी वास्तविक समय की निगरानी प्रणाली से मिली है, जिसे हमारे देश में ही विकसित किया गया है। उन्होंने बताया कि, इस वर्ष अरुणाचल प्रदेश में अच्छी बारिश नहीं हुई और झारखंड, दक्षिणी आंध्र प्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु के उत्तरी हिस्से सूखे की चपेट में हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इन राज्यों में मानसून की शुरुआत से पहले बहुत तेज गर्मी का अनुभव होता है, तो इससे संकट गहरा सकता है।
उनके अनुसार, इस सूखे से देश के पहले से ही घट रहे भूजल संसाधनों पर और अधिक बोझ पड़ेगा, क्योंकि हम भूजल के स्रोतों को बढ़ा नहीं रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हम इन स्रोतों से ही अधिक से अधिक पानी निकाल रहे हैं। आने वाले वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से सूखे की संभावना बढ़ जाएगी। इसलिए, सरकार को भूजल और जल संरक्षण के संबंध में कुछ कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता है। मिश्रा ने कहा कि, यदि हमारे पास पहले से ही भूजल कम है, तो आप उचित फसलों का चुनाव करके भूजल क्षरण को कम कर सकते हैं।
हमें उन फसलों को उगाने पर जोर देना चाहिए, जिसमें पानी का प्रयोग कम होता हो। बेशक, संरक्षण को हर स्तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि कुल ताजे पानी का 80% आवासीय स्थलों के बजाय कृषि स्थलों में उपयोग किया जाता है। हालांकि, अकाल जैसी स्थिति पैदा होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन इस सूखे से अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के वैज्ञानिकों के अनुसार वर्तमान समय में लगभग आधा देश सूखे की चपेट में है। देश की 50% जनसंख्या में से लगभग 16% जनसंख्या ‘असाधारण’ या ‘भीषण’ सूखे की मार झेल रही है। ये वैज्ञानिक देश में वास्तविक समय में सूखे की पूर्वानुमान प्रणाली के प्रबंधन करने पर काम कर रहे हैं। आईआईटी के एसोसिएट प्रोफेसर, विमल मिश्रा ने बताया कि देश में सूखे की मार झेल रहे लोगों को इस वर्ष गर्मियों में पानी की उपलब्धता में बहुत सारी चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है।
देश में सूखे को लेकर वास्तविक समय की सटीक निगरानी प्रणाली का संचालन करने वाली उनकी टीम ने भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) से मौसम और वर्षा संबंधी आंकड़ों को एकत्र किया और फिर मिट्टी की नमी एवं सूखे के कारकों संबंधी आंकड़ों के साथ इसका अध्ययन किया, उनकी टीम में पीएचडी छात्र अमरदीप तिवारी भी शामिल हैं। आईआईटी गांधीनगर स्थित वाटर एंड क्लाइमेट लैब द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के परिणाम आईएमडी की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।
कठोर कदम उठाने की जरूरत
लैब के प्रमुख मिश्रा ने बताया कि, देश की जनसंख्या ‘असाधारण’ या ‘भीषण’ सूखे की मार झेल रही है। इसकी जानकारी हमें अपनी वास्तविक समय की निगरानी प्रणाली से मिली है, जिसे हमारे देश में ही विकसित किया गया है। उन्होंने बताया कि, इस वर्ष अरुणाचल प्रदेश में अच्छी बारिश नहीं हुई और झारखंड, दक्षिणी आंध्र प्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु के उत्तरी हिस्से सूखे की चपेट में हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इन राज्यों में मानसून की शुरुआत से पहले बहुत तेज गर्मी का अनुभव होता है, तो इससे संकट गहरा सकता है।
उनके अनुसार, इस सूखे से देश के पहले से ही घट रहे भूजल संसाधनों पर और अधिक बोझ पड़ेगा, क्योंकि हम भूजल के स्रोतों को बढ़ा नहीं रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हम इन स्रोतों से ही अधिक से अधिक पानी निकाल रहे हैं। आने वाले वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से सूखे की संभावना बढ़ जाएगी। इसलिए, सरकार को भूजल और जल संरक्षण के संबंध में कुछ कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता है। मिश्रा ने कहा कि, यदि हमारे पास पहले से ही भूजल कम है, तो आप उचित फसलों का चुनाव करके भूजल क्षरण को कम कर सकते हैं।
हमें उन फसलों को उगाने पर जोर देना चाहिए, जिसमें पानी का प्रयोग कम होता हो। बेशक, संरक्षण को हर स्तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि कुल ताजे पानी का 80% आवासीय स्थलों के बजाय कृषि स्थलों में उपयोग किया जाता है। हालांकि, अकाल जैसी स्थिति पैदा होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन इस सूखे से अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।