छठ पूजा दिवाली के बाद मनाया जाने वाला सबसे बड़ा पर्व है। इस साल ये पूजा 11 नवंबर से शुरू होकर 14 नवंबर तक चलेगी। पूजा का समापन भगवान सूर्य को अर्ध्य देकर होता है। आज यानी 11 नवंबर को नहाय-खाय, 12 नवंबर को खरना, 13 नवंबर को संध्या अर्ध्य और 14 नवंबर को सूर्योदय अर्ध्य है। अगर इस पर्व का इतिहास देखें तो कई कहानियां जानने को मिलती हैं।
इससे जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा कहती है कि ये पूजा भगवान राम और मां सीता से जुड़ी है। एक कथा कहती है कि ये पूजा महाभारत के कर्ण से जुड़ी है। वहीं एक कथा कहती है कि ये पूजा राजा प्रियंवद से जुड़ी है। चलिए आपको प्रत्येक कथा के बारे में विस्तार से बताते हैं-
छठ पूजा को लेकर एक कथा काफी समय से प्रचलित है। कथा भगवान राम और माता सीता से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब राम-सीता 14 सालों का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे, तब उन्होंने रावण के वध से मुक्त होने के लिए एक यज्ञ किया। यह राजसूर्य यज्ञ ऋषियों-मुनियों के कहने पर किया गया। यज्ञ मुग्दल ऋषि ने करवाया था।
मुग्दल ऋषि ने माता सीता से भगवान सूर्य की पूजा करने को कहा। उन्होंने माता सीता से कहा कि वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को ये पूजा करें। ऋषि ने माता सीता के ऊपर गंगा जल छिड़क कर उन्हें पवित्र किया। माता सीता ने सूर्यदेव भगवान की पूजा मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर पूरी की। माना जाता है कि उसी दिन के बाद से छठ पूजा की जाती है।
छठ पूजा मनाने के पीछे महाभारत काल की भी दो कहानियां प्रचलित हैं। इसमें एक कहानी जुड़ी है कर्ण से। जबकि दूसरी कहानी जुड़ी है देवी द्रौपदी से।
कर्ण से जुड़ी पौराणिक कथा-
पौराणिक कथा कहती है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत के समय हुई थी। इसकी शुरुआत की थी कर्ण ने, जो कुंति के सबसे बड़े पुत्र और भगवान सूर्य के अंश थे। कथा में कहा गया है कि सूर्यपुत्र कर्ण रोज सूर्य की पूजा किया करते थे, वह घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देते थे। भगवान सूर्य की कृपा से ही वह एक महान योद्धा बने। आज के समय में भी छठ पूजा में भगवान सूर्य को अर्ध्य देने की परंपरा है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार छठ का पर्व सबसे पहले पांडवों की पत्नी और अग्नि से जन्मीं देवी द्रौपदी ने की थी। कथा में कहा गया है कि जब पांडव जुए में अपना सबकुछ हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा। माना जाता है कि इसी व्रत को रखने से उनकी मनोकामना पूरी हुई और पांडवों को अपना सबकुछ वापस मिल गया।
भाई-बहन से जुड़ा है पर्व
एक पौराणिक कथा कहती है कि छठ का पर्व बहन भाई के संबंध से जुड़ा है। कथा में कहा गया है कि भगवान सूर्य और छठी मईया का संबंध बहन भाई का है। इसलिए छठ पर्व के मौके पर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है।
छठ पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियंवद से भी जुड़ी है। कथा के अनुसार राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। जिसके बाद उन्होंने महर्षि कश्यप की मदद मांगी। महर्षि कश्यप ने यज्ञ किया और राजा की पत्नी को आहुकि के लिए बनाई गई खीर दी। जिससे उन्हें पुत्र पैदा हुआ। लेकिन पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। इसके बाद राजा प्रियंवद दुख में डूब गए और बेटे को लेकर श्मशान गए।
उनसे बेटे के जाने का दुख सहन नहीं हुआ और उन्होंने अपने प्राण त्यागने का विचार किया। जब वह अपनी जान देने वाले थे तभी भगवान मानस की पुत्री देवसेना प्रकट हो गईं और राजा से कहा कि उन्हें (देवसेना) षष्ठी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि वह सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से प्रकट हुई हैं। षष्ठी ने राजा से कहा कि वह उनकी पूजा करें और साथ ही दूसरों को भी उनकी पूजा के लिए प्रेरित करें। राजा प्रियंवद ने बेटे की चाह में देवी षष्ठी का व्रत और पूजा दोनों किए। जिसके बाद उन्हें पुत्र की प्रप्ति हुई। माना जाता है कि तभी से छठ पूजा की शुरुआत हुई थी।
छठ पूजा दिवाली के बाद मनाया जाने वाला सबसे बड़ा पर्व है। इस साल ये पूजा 11 नवंबर से शुरू होकर 14 नवंबर तक चलेगी। पूजा का समापन भगवान सूर्य को अर्ध्य देकर होता है। आज यानी 11 नवंबर को नहाय-खाय, 12 नवंबर को खरना, 13 नवंबर को संध्या अर्ध्य और 14 नवंबर को सूर्योदय अर्ध्य है। अगर इस पर्व का इतिहास देखें तो कई कहानियां जानने को मिलती हैं।
इससे जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा कहती है कि ये पूजा भगवान राम और मां सीता से जुड़ी है। एक कथा कहती है कि ये पूजा महाभारत के कर्ण से जुड़ी है। वहीं एक कथा कहती है कि ये पूजा राजा प्रियंवद से जुड़ी है। चलिए आपको प्रत्येक कथा के बारे में विस्तार से बताते हैं-