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Chor Nikal Ke Bhaga Review: अमर कौशिक की ब्रांडिंग पर एक और बट्टा, यामी गौतम की औसत सी ओटीटी फिल्म
सनी कौशल
,
यामी गौतम
,
शरद केलकर
और
इंद्रनील सेनगुप्ता
लेखक
सिराज अहमद
,
अमर कौशिक
और
तृषांत श्रीवास्तव
निर्देशक
अजय सिंह
निर्माता
दिनेश विजन
और
अमर कौशिक
ओटीटी
नेटफ्लिक्स
रिलीज
24 मार्च 2023
रेटिंग
2/5
हिंदी सिनेमा में फिल्म ‘स्त्री’ कहानियों के मामले में एक तरह से अब तक का आखिरी सफल और अभिनव प्रयोग रहा है। अमर कौशिक का नाम वहीं से हिंदी सिनेमा में चमका। उसके पहले औऱ बाद में भी वह फिल्में बनाते रहे हैं लेकिन जैसे ही उनका नाम किसी फिल्म के लेखक के रूप में चमकता है, दर्शकों के आंखों की चमक अब भी बढ़ ही जाती है। फिल्म ‘स्त्री’ ने उन्हें फिल्म कारोबार में भागीदार बनने का हैसियत दी और दिनेश विजन जैसे निर्माताओं की हिम्मत की दाद देनी चाहिए जो उनके हुनर और काबिलियत पर बार बार भरोसा करते आ रहे हैं। दोनों ने मिलकर पिछली बार फिल्म ‘भेड़िया’ बनाई दी। अमर कौशिक उसके निर्देशक भी थे। इस बार फिल्म ‘चोर निकल के भागा’ में अमर का योगदान लेखन और निर्माण में है। दिनेश विजन ने फिल्म में पैसा लगाया है। कहानी दो शातिरों की है। प्रेम कहानी का तड़का है और परोसा इसे एक हवाई जहाज में होने वाली चोरी के रूप में गया है।
चोर निकल के भागा
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
दो शातिर चोरों की कहानी
सनी कौशल फिल्म ‘चोर निकल के भागा’ के हीरो हैं। कहानी उन्हीं से शुरू होती है। हवाई अड्डे पर उनसे पूछताछ चल रही है। वहां से कहानी पीछे जाती है। फिर और थोड़ा पीछे जाती है। एक लड़के और एक लड़की की बार बार मुलाकातें होती हैं। लड़की पीछा छुड़ाने की कोशिश करती दिखती है। लड़का हार नहीं मान रहा है। दोनों में प्यार होता है। शादी से पहले ही लड़की गर्भवती हो जाती है। एक हमले में उसके पेट में चोट लगती है। फिर कहानी में हीरों के कारोबार का छौंका लगता है। दोनों मिलकर एक चोरी की योजना बनाते हैं। चोरी हवाई जहाज में होनी है। और, हवाई जहाज को उड़ान के दौरान अपहृत किए जाने के हादसे से ये चोरी थोड़ा और रहस्यमयी बनाने की कोशिश की जाती है। हवाई जहाज अपने गंतव्य से भटकता है। एक आतंकवादी को रिहा किए जाने की मांग की जाती है। आतंकवादी को लेकर रॉ का डिप्टी चीफ हवाई अड्डे पर पहुंच भी जाता है और फिर मामला दूसरी पगडंडी पकड़ लेता है। एक के बाद एक खुलासे होते हैं और अंत तक आते आते मामला सीक्वल का सुरसुरी छोड़ खत्म हो जाता है।
चोर निकल के भागा
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
अमर कौशिक की एक और कमजोर कहानी
तापसी पन्नू की तरह ही यामी गौतम धीरे धीरे ओटीटी की रानी बनती जा रही हैं। उनकी फिल्में सिनेमाघरों तक अब कब पहुंचेंगी, पता नहीं। सनी कौशल का हाल भी कुछ कुछ ऐसा ही है। दोनों मिलकर फिल्म ‘चोर निकल के भागा’ में एक ऐसी कहानी पेश करने की कोशिश करते हैं जिसके विचार में काफी कुछ नया नजर आता है लेकिन परदे पर इसे पेश करने का तरीका ऐसा है कि एक नए निर्देशक की बोहनी का बंटाधार करने में फिल्म कोई कसर नहीं छोड़ती। पहले तो ये फिल्म पटकथा के स्तर पर इतनी झोल वाली है कि इसे ठीक करने के लिए एक अतिरिक्त लेखक की जरूरत निर्माताओं को पड़ी। फिर ये फिल्म क्लाइमेक्स में आकर ये बताती है कि जो कुछ हवाई जहाज में होता रहा, वह दरअसल में कुछ और हो रहा था। यानी कि दर्शकों को पहले झांसे में रखा जाता है और फिर उस झांसे की असल कहानी दिखाई जाती है। घंटे भर बोर करने के बाद पटरी पर आती दिखने वाली फिल्म इसके साथ ही रनवे से उतर जाती है।
चोर निकल के भागा
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
यामी गौतम और सनी कौशल रहे बेअसर
निर्देशक के रूप में अजय सिंह ने अमर कौशिश की एक ऐसी कल्पना को फिल्म के रूप में पेश करने की कोशिश की है जिसके विचार ने जाहिर है पूरी टीम को बहुत उत्साहित किया होगा। लेकिन, दो घंटे की फिल्म के रूप में ‘चोर निकल के भागा’ की ये कहानी वैसी बन नहीं पाई जैसी ये हो सकती थी। फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी पटकथा के अलावा इसके मुख्य कलाकारों का अभिनय भी है। सनी कौशल की हिंदी सिनेमा बनाने वालों तक आसान पहुंच अपने पिता एक्शन निर्देशक शाम कौशल और बड़े भाई विकी कौशल तक है। फिल्में उन्हें मिल भी जा रही हैं लेकिन इसका फायदा बतौर अभिनेता उठाने में वह बार बार विफल हो रहे हैं। उनके अभिनय में आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव के रंग नजर आते हैं। अपना स्वाभाविक अभिनय उनके पास है नहीं। यामी गौतम परदे पर खूबसूरत बहुत दिखती हैं लेकिन भावुक दृश्यों में भी उनके अभिनय की कमजोरियां परदे पर साफ नजर आती हैं।
चोर निकल के भागा
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
सिनेमैटोग्राफी ही फिल्म की असल हीरो
ले देकर फिल्म ‘चोर निकल के भागा’ को संभालने की जिम्मेदारी आ जाती है शरद केलकर और इंद्रनील सेनगुप्ता पर। लेकिन दोनों के किरदार एकरस हैं। उनमें कहीं दोनों को अपनी अभिनय कला दिखाने की चुनौती ही नहीं मिलती। फिल्म का बड़ा हिस्सा चूंकि हवाई जहाज में फिल्माया गया है तो फिल्म का बजट अच्छा खासा नजर आता है। स्पेशल इफेक्ट्स भी अच्छे हैं। वहां भी पैसा खूब लगाया गया है लेकिन फिल्म की पटकथा और इसके मुख्य कलाकारों में उतनी मेहनत नहीं की गई है। विशाल मिश्रा का बनाया एक गाना है जिसे विशाल ने खुद ही रश्मीत कौर के साथ गाया भी है। गाने के बोल क्या थे, फिल्म खत्म होने के बाद याद नहीं रहते। हां, फिल्म की सिनेमैटोग्राफी प्रभावी है। जियानी जियानेली ने इसके लिए मेहनत भी खासी की है। चारु ठक्कर ने फिल्म के संपादन में काम अच्छा किया है लेकिन दिक्कत फिल्म की ये है कि इसमें दर्शकों को बांध कर रख पाने लायक कुछ खास मसाला ही नहीं है।
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