कोरोना महामारी काल में दो साल तक ऑनलाइन पढ़ाई और बंदिशों का विद्यार्थियों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। यूनिसेफ के सर्वे के मुताबिक करीब 50 फीसदी विद्यार्थी इस समय मानसिक दबाव में हैं। इसके चलते उनमें सीखने की प्रवृति कम हुई है। ऐसे में अब दोबारा स्कूल में जाने के दौरान कई प्रकार की दिक्कतें भी आएंगी। स्कूल प्रबंधन, अभिभावकों से लेकर शिक्षा विशेषज्ञ भी चिंतित हैं कि बच्चे दोबारा कब तक सामान्य होंगे।
बच्चों को दोबारा सामान्य जीवन में लाने और पढ़ाई से जोड़ने को लेकर केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत राज्य सरकारें और स्कूल प्रबंधन अपने-अपने स्तर पर शिक्षकों को ट्रेनिंग के माध्यम से प्रशिक्षित कर रहे हैं। मकसद है कि छात्रों को गुस्सा किए बगैर सामान्य तरीके से दोस्ताना माहौल में मानसिक दबाव से बाहर लाना है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बच्चों की इसी दिक्कत को समझते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस के साथ मिलकर साइको सोशल स्पोर्ट, मेंटल हेल्थ सर्विस पर काफी काम किया जा रहा है।
18 घंटे तक बेटी करती है स्क्रीन पर पढ़ाई
नर्सरी डॉट कॉम के फाउंडर सुमित वोहरा ने कहा कि मेरी दो बेटियां हैं। एक टीनएजर है, जोकि 10वीं सीबीएसई बोर्ड में टॉपर भी रही है। दोनों बेटियों को स्क्रीन टाइम बढ़ने से चश्मा लग चुका है। पहले हर साल छुट्टियों में उन्हें घूमाने ले जाते थे। ऐसे में दो साल से घरों में बंद रहने के बाद उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ गया है। बड़ी बेटी सुबह आठ से दोपहर दो बजे स्कूल की ऑनलाइन क्लास में पढ़ती है। इसके बाद जेईई एडवांस की तैयारी के लिए तीन-तीन कोचिंग चल रही है। कुल मिलाकर वो करीब 18 घंटे पढ़ाई के लिए मोबाइल या कंप्यूटर पर होती है। छोटी बेटी अपने दोस्तों को बहुत याद करती है। दोस्तों से बात करने के लिए घंटों-स्क्रीन पर जुड़ी रहती है। पहले उनको टोकना गलत लगता था पर अब यह उनकी आदत में शुमार हो गया है। ऐसे में उनको दोबारा मोबाइल से दूर करके सामान्य छात्र जीवन से जोड़ना बेहद मुश्किल है। अभिभावक के तौर पर बस हमें एक अप्रैल का इंतजार है कि स्कूल पूरी तरह से खुुलेंगे और हमारे बच्चे दोबारा सामान्य जीवन से जुड़ेंगे। यहां डर भी लगता है कि वे सामान्य जीवन में दोबारा लौट भी पाएंगे या नहीं।
महामारी को समझना बच्चों के लिए मुश्किल था
यूनिसेफ की शिक्षा विशेषज्ञ प्रमिला मनोहरन कहती हैं कि करीब 50 फीसदी छात्रों पर मानसिक प्रभाव पड़ा है। महामारी में दो साल तक मोबाइल, टीवी, कंप्यूटर आदि पर ऑनलाइन पढ़ाई के बाद अब उन्हें ऑफलाइन से जोड़ना थोड़ा मुश्किल होगा। महामारी को समझना बच्चों के लिए बेहद मुश्किल था। दरअसल, स्कूल बंद होने से उनका क्लासरूम ऑनलाइन तो जुड़ा, बल्कि उनकी एक्टिविटी पूरी तरह से बंद हो गई थी। स्कूल में दोस्तों के साथ खेलना, बैठना, घूमना, खाना, मस्ती सब एकदम से बंद हुआ। वे इसके लिए तैयार नहीं थे।
इसका असर यह हुआ कि उनमें सीखने में दिक्कत पैदा हुई है। क्योंकि सीखने के लिए मन बिल्कुल मुक्त होना चाहिए। अब जब महामारी के दौर से निकलकर दोबारा सामान्य जीवन शुरू हो रहा है तो फिर सभी को बहुत धैर्य के साथ बच्चों को आगे बढ़ने में मदद करनी होगी। अभिभावक, स्कूल, शिक्षकों का कर्त्तव्य है कि उनको मनपसंद माहौल दिया जाए। स्कूल आते ही मैथ्स, साइंस से जोड़ने से पहले उन्हें दोस्तों के खेलकूद, ड्राइंग, संगीत, ड्रामा, थियेटर या फिर उनकी मनपसंद एक्टिविटी को करने का मौका मिलना चाहिए। शिक्षकों और अभिभावकों को धैर्य, सहनशीलता के साथ बच्चों के मन को समझना होगा। उन्हें गुस्सा करने की बजाय प्रेम से समझाएं।
अब मोबाइल न मिलने पर गुस्से में चिल्लाने लगते हैं बच्चे
एक अभिभावक ममता ने बताया कि महामारी से पहले कभी हफ्ते में एक या दो बार बच्चों को गेम्स खेलने के लिए मोबाइल दिया जाता था, लेकिन ऑनलाइन क्लासेज के चलते स्क्रीन टाइम छह से आठ घंटे तक पहुंच गया था। अब मोबाइल की ऐसी आदत पड़ गई है कि न मिलने पर गुस्से से चिल्लाने लगते हैं। जब घर से बाहर जाना बंद था तो मोबाइल के बहाने उन्हें रोका जाता था पर अब यह उनकी कमजोरी बन गई है। स्कूल जाने के नाम से परेशान हो जाते हैं। कहते हैं कि स्कूल नहीं, ऑनलाइन क्लास में ही पढ़ाई करनी है। इसके अलावा खाना, उठना, सोना, पढ़ने का सारा टाइम-टेबल खराब हो चुका है। दोबारा सामान्य जीवन में उन्हें लाने के लिए बेहद दिक्कत होगी।
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कोरोना महामारी काल में दो साल तक ऑनलाइन पढ़ाई और बंदिशों का विद्यार्थियों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। यूनिसेफ के सर्वे के मुताबिक करीब 50 फीसदी विद्यार्थी इस समय मानसिक दबाव में हैं। इसके चलते उनमें सीखने की प्रवृति कम हुई है। ऐसे में अब दोबारा स्कूल में जाने के दौरान कई प्रकार की दिक्कतें भी आएंगी। स्कूल प्रबंधन, अभिभावकों से लेकर शिक्षा विशेषज्ञ भी चिंतित हैं कि बच्चे दोबारा कब तक सामान्य होंगे।
बच्चों को दोबारा सामान्य जीवन में लाने और पढ़ाई से जोड़ने को लेकर केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत राज्य सरकारें और स्कूल प्रबंधन अपने-अपने स्तर पर शिक्षकों को ट्रेनिंग के माध्यम से प्रशिक्षित कर रहे हैं। मकसद है कि छात्रों को गुस्सा किए बगैर सामान्य तरीके से दोस्ताना माहौल में मानसिक दबाव से बाहर लाना है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बच्चों की इसी दिक्कत को समझते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस के साथ मिलकर साइको सोशल स्पोर्ट, मेंटल हेल्थ सर्विस पर काफी काम किया जा रहा है।
18 घंटे तक बेटी करती है स्क्रीन पर पढ़ाई
नर्सरी डॉट कॉम के फाउंडर सुमित वोहरा ने कहा कि मेरी दो बेटियां हैं। एक टीनएजर है, जोकि 10वीं सीबीएसई बोर्ड में टॉपर भी रही है। दोनों बेटियों को स्क्रीन टाइम बढ़ने से चश्मा लग चुका है। पहले हर साल छुट्टियों में उन्हें घूमाने ले जाते थे। ऐसे में दो साल से घरों में बंद रहने के बाद उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ गया है। बड़ी बेटी सुबह आठ से दोपहर दो बजे स्कूल की ऑनलाइन क्लास में पढ़ती है। इसके बाद जेईई एडवांस की तैयारी के लिए तीन-तीन कोचिंग चल रही है। कुल मिलाकर वो करीब 18 घंटे पढ़ाई के लिए मोबाइल या कंप्यूटर पर होती है। छोटी बेटी अपने दोस्तों को बहुत याद करती है। दोस्तों से बात करने के लिए घंटों-स्क्रीन पर जुड़ी रहती है। पहले उनको टोकना गलत लगता था पर अब यह उनकी आदत में शुमार हो गया है। ऐसे में उनको दोबारा मोबाइल से दूर करके सामान्य छात्र जीवन से जोड़ना बेहद मुश्किल है। अभिभावक के तौर पर बस हमें एक अप्रैल का इंतजार है कि स्कूल पूरी तरह से खुुलेंगे और हमारे बच्चे दोबारा सामान्य जीवन से जुड़ेंगे। यहां डर भी लगता है कि वे सामान्य जीवन में दोबारा लौट भी पाएंगे या नहीं।
महामारी को समझना बच्चों के लिए मुश्किल था
यूनिसेफ की शिक्षा विशेषज्ञ प्रमिला मनोहरन कहती हैं कि करीब 50 फीसदी छात्रों पर मानसिक प्रभाव पड़ा है। महामारी में दो साल तक मोबाइल, टीवी, कंप्यूटर आदि पर ऑनलाइन पढ़ाई के बाद अब उन्हें ऑफलाइन से जोड़ना थोड़ा मुश्किल होगा। महामारी को समझना बच्चों के लिए बेहद मुश्किल था। दरअसल, स्कूल बंद होने से उनका क्लासरूम ऑनलाइन तो जुड़ा, बल्कि उनकी एक्टिविटी पूरी तरह से बंद हो गई थी। स्कूल में दोस्तों के साथ खेलना, बैठना, घूमना, खाना, मस्ती सब एकदम से बंद हुआ। वे इसके लिए तैयार नहीं थे।
इसका असर यह हुआ कि उनमें सीखने में दिक्कत पैदा हुई है। क्योंकि सीखने के लिए मन बिल्कुल मुक्त होना चाहिए। अब जब महामारी के दौर से निकलकर दोबारा सामान्य जीवन शुरू हो रहा है तो फिर सभी को बहुत धैर्य के साथ बच्चों को आगे बढ़ने में मदद करनी होगी। अभिभावक, स्कूल, शिक्षकों का कर्त्तव्य है कि उनको मनपसंद माहौल दिया जाए। स्कूल आते ही मैथ्स, साइंस से जोड़ने से पहले उन्हें दोस्तों के खेलकूद, ड्राइंग, संगीत, ड्रामा, थियेटर या फिर उनकी मनपसंद एक्टिविटी को करने का मौका मिलना चाहिए। शिक्षकों और अभिभावकों को धैर्य, सहनशीलता के साथ बच्चों के मन को समझना होगा। उन्हें गुस्सा करने की बजाय प्रेम से समझाएं।
अब मोबाइल न मिलने पर गुस्से में चिल्लाने लगते हैं बच्चे
एक अभिभावक ममता ने बताया कि महामारी से पहले कभी हफ्ते में एक या दो बार बच्चों को गेम्स खेलने के लिए मोबाइल दिया जाता था, लेकिन ऑनलाइन क्लासेज के चलते स्क्रीन टाइम छह से आठ घंटे तक पहुंच गया था। अब मोबाइल की ऐसी आदत पड़ गई है कि न मिलने पर गुस्से से चिल्लाने लगते हैं। जब घर से बाहर जाना बंद था तो मोबाइल के बहाने उन्हें रोका जाता था पर अब यह उनकी कमजोरी बन गई है। स्कूल जाने के नाम से परेशान हो जाते हैं। कहते हैं कि स्कूल नहीं, ऑनलाइन क्लास में ही पढ़ाई करनी है। इसके अलावा खाना, उठना, सोना, पढ़ने का सारा टाइम-टेबल खराब हो चुका है। दोबारा सामान्य जीवन में उन्हें लाने के लिए बेहद दिक्कत होगी।